फिल्म: जय हो डेमोक्रेसी
डायरेक्टर: बिक्रमजीत सिंह भुल्लर और रंजीत कपूर
स्टार कास्ट: ओम पूरी, अन्नू कपूर, सीमा बिस्वास, सतीश कौशिक, आदिल हुसैन, गृशा कपूर, आमिर बशीर, बेंजामिन गिलानी
अवधि: 96 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग:1.5 स्टार
भारत पाकिस्तान के संबंधों, युद्ध और बॉर्डर को लेकर कई फिल्में बन चुकी हैं. अधिकांश फिल्में गंभीर किस्म की होती हैं लेकिन इस बार सरहद के साथ साथ हमारे मंत्रियों और नियम कानूनो के ऊपर एक व्यंग्य करने की कोशिश की गई है. अब क्या ये व्यंग्य सफल है या विफल, आइए पता करते है.
कहानी
भारत पाकिस्तान के बॉर्डर पर घट जाती है एक बेवकूफी भरी घटना. यह घटना तो आप फिल्म , और उसकी वजह से न्यूज चैनल खबर चलाना शुरू करते हैं. मंत्रियों के कान तक ये बात पहुंचती है और फिर एक समिति का गठन किया जाता है जो संविधान के नियमों के हिसाब से इस विषय पर निष्कर्ष निकालने की कोशिश करती है.
अब क्या जवानों की इस बेतुकी समस्या का हल ये मंत्री बैठक के दौरान निकाल पाते हैं? इसी को प्रदर्शित करने की कोशिश की है फिल्मकार ने. मंत्रियों की कमेटी में कृपाशंकर पाण्डेय (ओम पुरी),रामलिंगम (अन्नू कपूर),हरफूल सिंह चौधरी (सतीश कौशिक),मोहिनी देवी (सीमा बिस्वास),मेजर बरुआ (आदिल हुसैन),मिसेस बेदी (रजनी गुजराल) हैं.
फिल्म की शुरुआत में अब्राहम लिंकन , महात्मा गांधी के लोकतंत्र सम्बंधित कथनों को दर्शाया गया तो लगा की काफी रोचक कहानी होगी. जिस पल सरहद की बेवकूफी भरी घटना होती है तो भी लगता है की मनोरंजन से भरी होगी ये फिल्म. हालांकि जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है कहानी ढीली पड़ने लगती है .
एक ही वक्त पर मंत्रियों का किसी भी बात पर हंसाने की कोशिश करना, तो दूसरी तरफ न्यूज को बड़े ही तर्कहीन तरीके से दिखाया जाना झुंझलाहट पैदा करता है. आखिरकार फिल्म आपको बोरियत से भर देती है. 96 मिनट की फिल्म बड़ी लगने लगती है. शोरगुल के साथ साथ व्यंग्य के रूप में 'कुछ भी' दिखाया गया है.
फिल्म के किरदारों की अगर बात करें तो कमजोर कहानी की वजह से कोई चरित्र अच्छे से उभर नहीं पाता. अन्नू कपूर, आदिल हुसैन, सतीश कौशिक, ओम पुरी, सीमा बिस्वास जैसे शानदार कलाकारों की फिजूलखर्ची पर आपको बुरा लगेगा. व्यंग्य के नाम पर बस नेताओं की लड़ाई, अपशब्दों का प्रयोग करना, संसद में अश्लील फिल्में देखना, और किसी भी बात का मुद्दा बनाना भी दिखाया गया है.
सरहद की समस्या का विषय मंत्रियों के बैठक में कहीं गायब सा ही हो जाता है. संवाद कहीं कहीं आपको हंसाते हैं जैसे, 'फौजी का सबसे बड़ा सपना है छूटी पर जाना'. फिल्म के द्वारा एक सवाल भी पूछा गया है की 'आखिर नेता लोग अपने बच्चों को फ़ौज में क्यों नहीं भेजते?'
क्यों देखें: अगर आप अनु कपूर , ओम पुरी , आदिल हुसैन या सतीश कौशिक के फैन हैं तो ही देखें अन्यथा पैसा और वक़्त किसी और काम पर लगा सकते हैं.
क्यों न देखें: इसके लिए आपको पर्याप्त कारण दिए जा चुके हैं.