भारत आज के समय में AI और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ चुका है. देश का लगभग हर बड़ा शहर आज 'स्मार्ट सिटी' बन चुका है. मगर आज भी कुछ ऐसे जिले हैं जहां पर स्वास्थ संबंधित सुविधाएं, सड़क, पानी और घरों का हाल बेहाल है. आज भी वहां इंटरनेट सेवाएं ना के बराबर हैं. ऐसी ही गांव-जिलों की कहानियां लेकर टीवीएफ अपनी वेब सीरीज 'पंचायत' लेकर आया, जिससे हर कोई काफी करीब से जुड़ गया था. मेकर्स ने लोगों को इंटरनेट के जमाने में कुछ जिलों की ऐसी सच्चाई दिखाई जिसे देखना काफी मजेदार था. अब वही फ्लेवर, मेकर्स दोबारा एक कहानी के साथ लेकर आए हैं जिसका नाम 'ग्राम चिकित्सालय' है. तो कैसी है टीवीएफ की नई वेब सीरीज? आईए, आपको बताते हैं...
किस गांव की कहानी लेकर आया 'ग्राम चिकित्सालय'?
'ग्राम चिकित्सालय' की कहानी 'भटकण्डी' के एक देहाती गांव की है जहां एक 'झोलाछाप डॉक्टर' चेतक कुमार (विनय पाठक) लोगों का इलाज करता है. उस पर गांव का हर आदमी आंख मूंदकर भरोसा करता है. चेतक कुमार का अपना प्राइवेट क्लिनिक है, जहां वो लोगों का इलाज गूगल और अनुमान के सहारे करता है. अब उसी गांव में डॉक्टर प्रभात सिन्हा (अमोल पराशर) की एंट्री होती है, जो दिल्ली में अपना खुद का हॉस्पिटल छोड़कर, 'भटकण्डी' गांव की स्वास्थ व्यवस्था सुधारने निकल पड़ता है. मगर उसके साथी फुटानी (आनंदेश्वर द्विवेदी) और गोबिंद (आकाश मखीजा) उसे सही ढंग से सपोर्ट नहीं करते हैं.
इस बीच उसकी मुलाकात डॉ. गार्गी (आकांशा रंजन) से भी होती है जिसके लिए उसके दिल में कहीं ना कहीं सॉफ्ट कॉर्नर बन जाता है. डॉ. प्रभात अपने चिकित्सालय पर एक मरीज के इंतजार में ही बैठा रह जाता है. वो लाख कोशिश करता है, मगर गांव के लोग उसके क्लिनिक पर इलाज के लिए नहीं आते हैं. प्रभात के सामने गांव वालों के अलावा झोलाछाप डॉक्टर और नेता जैसी भी चुनौतियां हैं जिससे उसे पार पाना है. ऐसे में क्या डॉक्टर प्रभात सिन्हा भटकण्डी गांव में स्वास्थ सेवाएं दुरुस्त करने की कोशिश में अपना पहला मरीज ढूंढ पाएगा? ये आपको सीरीज देखकर पता चल जाएगा.
देखें 'ग्राम चिकित्सालय' का ट्रेलर:
स्टोरी में है दम, मगर स्क्रीनप्ले लगा कमजोर
सीरीज की कहानी शुरू से लेकर अंत तक अपने मुद्दे पर टिकी रहती है. हर एपिसोड में मेकर्स ने कोशिश की है कि वो भटकण्डी गांव की कहानी को सही ढंग और सच्चाई के साथ स्क्रीन पर उतार पाएं. लेकिन कहीं ना कहीं वो ऑडियंस को पूरी सीरीज के दौरान बांधे रखने में नाकामयाब नजर आए. 'ग्राम चिकित्सालय' का स्क्रीनप्ले कई जगह कमजोर नजर आया. एपिसोड्स में ऐसे बहुत कम सीन्स हैं जो बाद में आपको याद रहें. कुछ-कुछ जगहों पर कॉमेडी अपना काम करती है, मगर टीवीएफ की इस सीरीज में 'पंचायत' जितना मजा नहीं है.
'ग्राम चिकित्सालय' सीरीज को 'पंचायत' सीरीज के तर्ज पर जरूर बनाया गया, लेकिन इस सीरीज में वो मजा कायम नहीं रह पाया जैसा 'पंचायत' में आज भी लोगों को आता है. 'ग्राम चिकित्सालय' में 'पंचायत' जैसी ही तीन लोगों की तिगड़ी दिखाई गई. मगर उनके किरादर उतने फनी अंदाज में नहीं लिखे गए जितने पंचायत वाले किरदार हैं. हालांकि, सीरीज में कई जगहों पर इमोशन्स का सही ढंग से इस्तेमाल किया गया है, जो आपको किरदारों की पर्सनल कहानी से जोड़ने में कामयाब होता है. अंत के कुछ एपिसोड्स, आपको एक ऐसी सच्चाई से रूबरू करा सकते हैं जिससे आजतक शायद कई लोग अनजान हैं.
एक्टर्स ने दिखाया अपना दम, अमोल पराशर नहीं करेंगे निराश
सीरीज में सभी एक्टर्स की एक्टिंग अच्छी नजर आई है. अमोल पराशर, आकाश मखीजा और आनंदेश्वर द्विवेदी का काम पूरी सीरीज में शुरुआत से लेकर अंत तक अच्छा रहा है. तीनों की तिगड़ी स्क्रीन पर अच्छी तो नजर आती है, लेकिन कहीं ना कहीं वो आपसे करीब से जुड़ने में नाकामयाब होते हैं. अमोल भले ही शो के हीरो हैं, मगर उनके साथ नजर आया हर एक्टर भी कमाल का रहा है. विनय पाठक, जो एक झोलाछाप डॉक्टर का किरदार निभा रहे हैं वो भी अपने कुछ सीन्स से आपको गुदगुदाने में कामयाब होते हैं.
कार्तिक राज, जिन्हें आपने कपिल शर्मा शो में चंदू चायवाला के बेटे का किरदार निभाते देखा होगा, वो भी सीरीज में अपने काम से इंप्रेस करने में कामयाब होते हैं. मगर शो में 'नर्स इंदू' और 'उनके बेटे सुधीर' का किरदार निभा चुके एक्ट्रेस गरिमा विक्रांत सिंह और एक्टर संतू कुमार का काम सबसे कमाल का रहा है. उनके सीरीज में कुछ ही सीन्स साथ में हैं. लेकिन वो आपके दिल को इस कदर छू से जाते हैं, जैसे उनकी कहानी आप बहुत पहले से जानते हों. वहीं, सीरीज में आकांशा रंजन भी हैं जो इससे पहले आलिया भट्ट की 'जिगरा' फिल्म में नजर आ चुकी हैं. उनका काम सीरीज में अच्छा है, उन्हें जितना स्क्रीन टाइम मिल पाया, वो उसमें अपना काम बखूबी करके दिखा पाईं.
क्या 'पंचायत' के बाद 'ग्राम चिकित्सालय' देखने में आएगा मजा?
टीवीएफ ने 'ग्राम चिकित्सालय' को पंचायत के तर्ज पर जरूर बनाया है, मगर ये 'पंचायत' जितना मजेदार और यादगार नहीं है. 'पंचायत' के मेकर दीपक कुमार मिश्रा ने 'ग्राम चिकित्सालय' सीरीज में भी कुछ-कुछ वही करने की कोशिश की है. मगर उनकी ये कोशिश उतनी कारगर साबित नहीं हो पाती जिसके बाद फैंस 'ग्राम चिकित्सालय' को वो मौका दे पाएं, जो उन्होंने साल 2020 में 'पंचायत' सीरीज को दिया था. हालांकि ऑडियंस 'ग्राम चिकित्सालय' को एक मौका जरूर दे सकते हैं. सीरीज में भले ही 'पंचायत' जितना मजा नहीं आए, लेकिन इसकी कहानी और प्लॉट फ्रेश है जिसे एक बार देखना मजेदार लग सकता है. अगर आप टीवीएफ की स्टोरीटेलिंग के फैन हैं, तो 'ग्राम चिकित्सालय' को भी देखना पसंद कर सकते हैं.