फिल्म: वन बाई टू
कास्ट: अभय देओल, प्रीति देसाई, रति अग्निहोत्री, जयंत कृपलानी, दर्शन जरीवाला
डायरेक्टर: देविका भगत
स्टार: दो स्टार (**)
पहली नजर का प्यार अब बॉलीवुड में बिकाऊ नहीं रहा. इसलिए रोमांटिक कॉमेडी बनाते हुए फिल्ममेकर उसमें नए ट्विस्ट डालने की कोशिश करते हैं. लेकिन उस पीढ़ी के लिए जो इश्क में गिरफ्तार होने के मुकाबले अपनी महत्वाकांक्षाओं से ज्यादा संचालित होती है, एक बैलेंस बनाना जरूरी होता है. जो अकसर फिल्ममेकर नहीं कर पाते.
'वन बाई टू' फील गुड टाइप फिल्म है जो प्यार को करियर के सपने और युवा पीढ़ी की तमन्नाओं के बरक्स भी समझने की कोशिश करती है.
फिल्म की जो एकमात्र ताजी अप्रोच है, वह भावनाओं को समझने और केंद्रीय किरदारों को आम लोगों की तरह दर्शाने में नजर आती है. खराब बात यह है कि फिल्म ठीक से लिखी नहीं गई. अकाल्पनिक ट्रीटमेंट ने भी फिल्म को अच्छा नहीं बनने दिया.
एक मुंबईकर अमित (अभय देओल) और समारा (प्रीति देसाई) की कहानी है. अमित एक पकाओड है. 9 से 5 वाली नौकरी करता है. उसके कुछ छिपे हुए म्यूजिकल सपने हैं. उसकी गर्लफ्रेंड अभी अभी उसे छोड़कर गई है. समारा जिसकी मां एल्कॉहलिक हैं, बेहतर जिंदगी की तलाश में है. उसे एक ब्रेक चाहिए जो उसे स्टार डांसर और कोरियोग्राफर बना दे. स्क्रीनप्ले ऐसा है कि अमित और समारा की जिंदगियां एक-दूसरे से मिलने लगती हैं.
डायरेक्टर देविका भगत की यह पहली फिल्म है. इससे पहले वह जब तक है जान, आइशा, लेडीज वर्सेज रिकी बहल और बचना ऐ हसीनों जैसी फिल्मों के स्क्रीनप्ले लिख चुकी हैं. लेकिन लिखना, फिल्म डायरेक्शन से बिल्कुल अलग है. उनका नैरेशन और कसा हुआ हो सकता था. रोमांटिक-कॉमेडी के लिहाज से फिल्म में पर्याप्त दिलचस्प सीन्स भी नहीं हैं.
अभय ने हमेशा की तरह ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई है. प्रीति देसाई सुंदर तो लगी हैं, लेकिन उतनी सहज नहीं. हालांकि सपोर्टिंग कास्ट ने ठीक काम किया है. लेकिन जाहिर तौर पर उनका काम देखने के लिए आप अपनी जेब ढीली करना नहीं चाहेंगे.
फिल्म के म्यूजिक को ठीक तरह से प्रमोट न किए जाने पर अभय ने नाराजगी जताई थी. लगता है कि वह सही थे. अमित त्रिवेदी के दो गाने वाकई अच्छे बन पड़े हैं.