scorecardresearch
 

कुछ मीठी, कुछ खारी है फिल्म फेस्टिवल में धूम मचा रही गिरीश मलिक की फिल्म जल

फिल्म रिव्यूः जलएक्टरः पूरब कोहली, तनिष्ठा चटर्जी, कीर्ति कुल्हाड़ी, यशपाल शर्मा, मुकुल देव, सैदा जूल्स, रवि गोसाईंडायरेक्टरः गिरीश मलिकड्यूरेशनः 2 घंटा 16 मिनटस्टारः 5 में 3.5

Advertisement
X
पूरब कोहली, कीर्ति कुल्हा़ड़ी और तनिष्ठा की फिल्म जल का पोस्टर
पूरब कोहली, कीर्ति कुल्हा़ड़ी और तनिष्ठा की फिल्म जल का पोस्टर

फिल्म रिव्यूः जल
एक्टरः पूरब कोहली, तनिष्ठा चटर्जी, कीर्ति कुल्हाड़ी, यशपाल शर्मा, मुकुल देव, सैदा जूल्स, रवि गोसाईं
डायरेक्टरः गिरीश मलिक
ड्यूरेशनः 2 घंटा 16 मिनट
स्टारः 5 में 3.5

हम सबकी जमीन कभी न कभी सूख जाती है. सब तरफ तपती रेत जलाती है. मगर हम ठहरते नहीं. नमी को टटोलने के लिए यकीन का मंत्र पढ़ते हैं. उस कुंए की तलाश और फिर खोद में जुट जाते हैं, जो हमें पानी देगा. जमीर देगा, ताकि ताजादम हो हम दुनिया को जिंदा रख सकें. फिल्म जल भी ऐसा ही कुछ जतन करती है. इसमें कच्छ के रण में सिर्फ पानी की तलाश नहीं है. इसके सहारे लोगों का मिलना. उनके भीतर के राक्षस और देवता का मिलना और कुछेक बार तलछटी में बसे खारेपन के साथ जिंदा रहना. ये सब है. फिल्म जल देखिए, अगर आपको प्रयोगात्मक फिल्में पसंद हैं. अगर कुछ नए किस्म का सिनेमा देखना चाहते हैं. विशुद्ध मनोरंजन के लिए जाना चाहते हैं, तो यह फिल्म आपके लिए नहीं है.

Advertisement

जल कहानी है गुजरात के कच्छ के एक गांव की. यहां रहता है बक्का. पानी का देवता. बक्का एक अनाथ नौजवान है जो अपने दोस्त राकला और उसकी बहन कजरी के घर पर रहता है. अपने तंतर मंतर और अनुभूति के जरिए गांव को बताता है कि कहां खुदाई करने पर पानी मिलेगा. एक गांव पड़ोस में भी है, जो उतना सूखा नहीं है क्योंकि उनके पास कुंआ है. सिर्फ कुंआ ही नहीं, केसर भी है. मुखिया की बेटी. जो बक्का को खूब नमकीन लगती है.

इन सबकी जिंदगी में कुछ तब्दीली आती है एक विदेशी मेम की आमद के साथ. मैडम रूस से आई हैं. माइग्रेटरी बर्ड्स फ्लैमिंगो की तलाश में. ये पंखियां हर साल एक खास मौसम में रण में बसेरा करने आती हैं. मैडम आती हैं और पाती हैं कि रण ज्यादा खारा हो चला है और इसके चलते पंखियां मर रही हैं. वह अपने स्तर पर पानी के लिए सरकारी तंत्र को जुटा खुदाई शुरू करती है. पहले एक टूरिस्ट गाइड जुटता है और फिर उसके सहारे गांव वाले भी जुटते हैं. यहां पर भी आखिर में मशीन के साथ बक्का का हुनर काम आता है. उसे केसर भी मिल जाती है. मगर जब मशक्कत गांव के लिए मशीन के जरिए पानी तलाशने की आती है तो जैसे किस्मत भाप बन बादलों में चली गई हो. आखिर में सबका पानी मरता नजर आता है. सबका रंग बदल जाता है. सब रण से सूखे हो जाते हैं लड़ते-लड़ते.

Advertisement

पूरब कोहली ने बक्का का रोल अच्छा किया है. एक अरबन इमेज वाले एक्टर को ऐसी चुनौतीपूर्ण भूमिका करते देख अच्छा लगा. कीर्ति कुल्हाड़ी कजरी के रोल में एक सुंदर सांवलापन लाने में सफल रही हैं. एक सीन है, जिसमें वह एक आदम भेड़िए की हवस से केसर को बचाने के लिए खुद को पेश कर देती है. उस वक्त की गरगराहट, गुर्राहट और फिर बेबसी अरसे तक दिमाग पर चिपकी रहती है. तनिष्ठा की एक्टिंग में कुछ गुंजाइश रह जाती है. यशपाल शर्मा, राहुल सिंह और रवि गोसाईं जैसे एक्टर्स ने अपने-अपने किरदार खूब निभाए हैं.

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है. ये काम मुश्किल हो जाता है, जब आपके पास दिखाने के लिए ज्यादा वैरिएशन न हों. यानी रेत, सूख, कुछ पानी और उनके बीच के मानुष. इन्हीं ऑब्जेक्ट के साथ दुनिया कैसे रची जाए, इसे गहराई से समझ फिल्म शूट हुई है.

फिल्म में कुछ खामियां भी नजर आईं. एक तो इसकी गति. कुछ हटकर फिल्में बनाने का मतलब ये नहीं कि उसकी कहानी को खूब भटकने दिया जाए. एडिटिंग भी ज्यादा चुस्त होनी चाहिए थी, ताकि ड्यूरेशन कुछ कम रहती.

जल में बतौर म्यूजिक डायरेक्टर काम किया है सोनू निगम और बिक्रम घोष ने. गाया है शुभा मुदगल ने. मगर इन सब हैवीवेट नामों के बावजूद तरावट नहीं आती. डायरेक्टर गिरीश मलिक ने नैरेशन की जो टेक्नीक अपनाई है, उसमें कंटीन्यूटी का अभाव है. एक वक्त के बाद ये अखरने लगता है. ऐसा लगता है जैसे एक सीन के बाद बत्ती लुप हो जाती हो और फिर नए सीन के साथ पर्दे पर रौशनी आती हो.

Advertisement

फिल्म जल को फेस्टिवल सर्किट में काफी पसंद किया गया है. अच्छी बात ये है कि अब इस तरह की फिल्में बाकायदा सिनेमाघरों में भी रिलीज हो रही हैं. अब तय करने की बारी आपकी है.

देखें फिल्म जल का ट्रेलर

Advertisement
Advertisement