फिल्म रिव्यू: बुलेट राजा
एक्टर: सैफ अली खान, सोनाक्षी सिन्हा, जिमी शेरगिल, राज बब्बर, विद्युल जामवाल, गुलशन ग्रोवर, रवि किशन, माही गिल (गेस्ट अपीयरेंस)
डायरेक्टर: तिग्मांशु धूलिया
ड्यूरेशन: 2 घंटे 18 मिनट
स्टार: पांच में से दो
हमारे यूपी में बसे गांव में एक बुधू कक्का थे. बुजुर्ग थे और एकनाली बंदूक टांगकर चलते थे. उन्होंने ही तमंचे के पापा यानी बंदूक से हमारा परिचय करवाया. कंधे पर एक माला होती थी उनके. कारतूस की. उसमें दो तरह के दाने होते थे. एलजी और भरवां. एलजी यानी असल कारतूस जो जब किसी को लगे तो जान से जाए. और भरवां, यानी इस्तेमाल किए कारतूस को दोबारा तैयार करना. शादी-बियाह के मौकों पर फायर ठोंकने के लिए. जबर आवाज करने वाला. डायरेक्टर तिग्मांशु धूलिया ने अब तक खूब एलजी फायर मारे. हासिल से लेकर पान सिंह तोमर और साहिब बीबी गैंगस्टर तक. हम इसके शिकार हुए और उनके मुरीद हो गए. मगर बेहद निराशा के साथ लिखना पड़ रहा है कि बुलेट राजा की बुलेट भरवां है. इसमें आवाज तो बहुत है, मगर मारक दम नहीं. कमर्शल सिनेमा बनाने के फेर में उन्होंने भांति-भांति के कचरे भर दिए हैं अपने जबर डायलॉग्स, पेचदार कहानी और कुछ उम्दा असल से लगते किरदारों के बीच.
बुलेट राजा कहानी है लखनऊ में परिवार के साथ रहने वाले गठीले बदन के नौजवान राजा मिश्रा की.नौकरी की तलाश में भटकते राजा की एक दिन हो जाती है फाइट और पीटते-बचते वह पहुंचते हैं एक बारात में. यहां उनकी मुलाकात होती है रुद्रा से. उसी दिन रुद्रा के घर पर उनके रिश्ते के दगाबाज चाचा लल्लन अपने फौज फाटे के साथ कर देते हैं हमला. मोर्चा संभालते हैं राजा और रुद्रा और इसके बाद वह गुंडई के चंगुल में शुरुआती हिचक के बाद जरूरत के तर्क के तहत फंस जाते हैं.
जेल से निकल कर जब दोनों एक कांड को अंजाम देते हैं राजनीतिक संरक्षण में तो उनकी जरायम की दुनिया में बोहनी हो जाती है. फिर दोनों एक नेता के बाहुबली बन अपना भोकाल टाइट करते हैं.राजा-रुद्रा की कभी बुलेट तो कभी बुलेरो सवार जोड़ी के जलवे के सामने कोई दुश्मन नहीं टिक पाता. इसी दौरान उनकी एक धनपशु के सामने एड़ लग जाती है. तभी दिलफेंक राजा की मुलाकात एक बंगाली बाला से होती है, जो बिलात सीधी है.अब फिल्म एक्शन से लाइन बदल इश्क की पटरी पर खिसकने लगती है. मगर सियासत स्यात देखकर तो चलती नहीं. सो घूम फिरकर राजा और रुद्रा फिर मारधाड़ एक्शन और रोमांच की दुनिया में लौटते हैं. कुर्बानी होती है और बदला लेने का ठौर पैदा हो जाता है.
इस दौरान कई राजनीतिक, पुलिस वाले और धनकुबेर इस चौसर पर अपनी चालें चलते हैं. कुछ देर के लिए चंबल के चौकीदार यानी अरुण सिंह मुन्ना नाम के पुलिस वाले भी आते हैं और अपनी भूमिका अदा करते हैं. साइड में कतल के इल्जाम से फारिग होने के लिए इंतजार में राधा बन गए एक एक्स होने की कगार पर पहुंचे बाहुबली हैं, जो कमबैक के फेर में फुनफुनाते रहते हैं. अब जब ये सब आएंगे तो गर्मी तो बढ़ेगी ही. मगर इतनी भी क्या कि आदमी अनखिया कर सब निपटने का इंतजार करने लगे.
अब बैठाते हैं फिल्म समीक्षक वाली पंचायत. फिल्म में रुद्रा के रोल में पतली मूंछ का बाना धरकर आए जिमी शेरगिल ने अच्छा काम किया है. मगर इस बार उनका रोल सपोर्टिंग था. मेन लीड वाले सैफ अली खान औसत रहे. दिक्कत ये है कि इस तरह के यूपी माफिया के रोल के लिए खुद उनके लंगड़ा त्यागी के किरदार ने पैमाने बहुत ऊंचे कर दिए हैं. माना कि त्यागी देहाती था और राजा मिसरा शहरी है, मगर नब्बे के दशक में लखनऊ और दूसरी यूनिवर्सिटी से निकले माफिया लौंडे इतने भी हल्के नहीं थे कि पट से आशिकी में गीले हुए जाएं और फिर चट से खुंखार चट्टान में तब्दील हो जाएं.
सोनाक्षी सिन्हा के हिस्से एक बार फिर शरमाना इतराना और दो गाने आए. तमंचे पर डिस्को में वह कतई मामूली लगीं और देसी अदा मुंबई के डिस्क में उनसे दूर ही रही. हां रोमांटिक ट्रैक सामने है सवेरा में जरूर उनकी संभावनाओं का सहर कुछ नजर आया. बाकी सुमेर यादव के रोल में रवि किशन के लिए गुंजाइश थी और उन्होंने इसे बखूबी निभाया भी. राज बब्बर नेता के रोल में औसत रहे तो विद्युल जामवाल एक्शन करते हुए भले दिखे, मगर एक्टिंग का उन्हें पूरा का पूरा ककहरा सीखना है. माही गिल का आइटम नंबर इस भरवां फिल्म का एक और कमजोर छर्रा रहा.
एक एक्टर का और जिक्र जरूरी है. नाम है राजीव गुप्ता. ये वही राजीव हैं, जिन्हें आप पान सिंह तोमर में बतौर पुलिस इंस्पेक्टर देख चुके हैं और जो पान सिंह दद्दा के धमकाने पर, हे वर्दी हमको क्षमा कर दो वाला डायलॉग बोलते हैं. और याद करना हो तो साहिब बीवी गैंगस्टर के उस नेता को याद करिए जो साहिब के गरियाने पर मिमियाती मगर घाघ महीन आवाज में कहता है कि अच्छा जी, बड़ी अच्छी बात बोली आपने, नोट कर लेता हूं. राजीव के हिस्से यहां एक नेता का रोल आया, ज्यादा कुछ करने को नहीं था, मगर जितना था, उतने में जमे. इन्हें आप जल्द ही आमिर खान की पीके में भी देखेंगे.
तिग्मांशु धूलिया हमारी फिल्म इंडस्ट्री के कुछ बेहद संभावनाशील, प्रतिभाशाली और असल फिल्मकारों में से हैं. उनकी काबिलियत का अंदाजा बतौर कास्टिंग डायरेक्टर बैंडिट क्वीन में दिखा तो बतौर डायलॉग राइटर इरफान और आशुतोष राणा वाली फिल्म हासिल से. निर्देशक वह कितने कमाल के हैं यह पान सिंह तोमर ने हमें बताया. मगर इस फिल्म में उनके भीतर के जीनियस के बस कुछ टीजर ट्रेलर ही नजर आए. जबर पंच वाले डायलॉग्स में या कई जगह यूपी की राजनीति और बदमाशी के संबंध और विरोधाभास में. मगर फिल्म गौने में बांधी जाने वाली नाना प्रकार के पकवानों से सजी डलिया की तरह होता है, जिसमें लड्डू के साथ मैदा वाली पूड़ी और कुछ नमकीन भी बांधा जाता है. इस बार उनकी डलिया में एक ही किस्म का और बाजारू सा माल दिखा. वह बड़ी स्टार कास्ट और बॉक्स ऑफिस पर अंधाधुंध कमाई के मोह में अपने असल सिनेमा के साथ समझौता कर बैठे.
फिल्म के गाने ठूंसे गए से लगते हैं. टाइटल ट्रैक के साथ फिल्म शुरू होती है और अभी आप सीट पर अपनी पोजिशन ले ही रहे होते हैं कि माही गिल का आइटम नंबर डॉन्ट टच माई बॉडी आ लगता है माथे पर.इसके बाद सटा के ठोंको बर्दाश्त करिए और तब तक हाजिर है तमंचे पर डिस्को, जो आरडीबी के रैप के साथ फिर भी कुछ मिनट गुजरवा देता है. कोलकाता की गलियों में शूट किया गया स्लो रोमांटिक नंबर सामने है सवेरा अच्छा है, मगर तब तक गानों का कोटा उफनने लगा होता है.
फिल्म जहां भी जितनी भी चलेगी और याद रहेगी तो अपने डायलॉग्स के लिए. इनमें से कई आप ट्रेलर के दौरान सुनते हैं और उम्मीद से भर जाते हैं. मसलन, ब्राह्मण रूठा तो रावण या फिर हम आएंगे तो गर्मी बढ़ाएंगे.मगर बुलेट राजा में हर किरदार इतना कुछ बोलता है कि उनके बीच इन पंच सा असर देते डायलॉग्स को सहेजना मुश्किल हो जाता है. फिल्म में सैफ और जिमी की केमिस्ट्री जमी है, मगर उसके लिए ज्यादा वक्त नहीं निकल पाया. छोटे रोल वाले एक्टर अच्छा असर छोड़ते हैं.फिल्म फर्स्ट हाफ में घिसटती है भूमिका बनाने के चक्कर में और सेकंड हाफ में अच्छी रफ्तार पकड़ती है.
तो बुलेट राजा देखिए अगर आपको हिंदी प्रदेश की कट्टे तमंचे के तेवरों वाली भाषा का लुत्फ उठाना है, वहां की गुंडई के कुछ सीन देखने हैं और धांय धांय वाला धांसू तेवर पसंद है. ये टोटल मसाला फिल्म है, मगर इसमें कुछ बहुत नया नवेला नहीं है. इसमें वो तिग्मांशु नहीं है, जिसे हम अब तक जानते आए हैं और उसके प्रति अपना प्यार जताते आए हैं. फिल्म में बुलेट गाड़ी है, बुलेट कारतूस है मगर बुल यानी सांड़ वाला बैठा तो मस्त और चला तो खूंखार तेवर नहीं.