कुछ समय पहले कर्नाटक में हिजाब को लेकर हुए विवाद में कई लोगों ने अपनी-अपनी राय रखी है. सोशल मीडिया पर अपने कपड़ों को लेकर चर्चा में रहने वाली उर्फी जावेद ने भी आजतक डॉट इन से इस पर खुलकर बातचीत की है.
अगर उसे हिजाब में आजादी महसूस होती है, तो पहनने दें
उर्फी कहती हैं, मुझे इस बारे में बात करने में कोई दिक्कत नहीं है. वूमेन जो चाहे वो पहन सकती है. कोई क्या पहनता है हम इस चीज पर किसी का एजुकेशन डिसाइड नहीं कर सकते है. मेरा बस यही एक प्वाइंट मैं समझती हूं कि स्कूल का एक कायदा है. हमारे देश में रिलीजन हमेशा से सेंसिटिव टॉपिक रहा है. हिजाब पहनने से वो औरतें कुछ गलत नहीं कर रही हैं. अगर ये चीज मेरे साथ होती तो मेरा प्वाइंट बस यही होता कि फ्रीडम फॉर ऑल. लड़की खुद डिसाइड कर सकती है कि उसे क्या पहनना है. अगर उन्हें अपने आप को कवर करना इंपॉवर कर रहा तो ठीक है. औरतों की लड़ाई सालों से इस चीज पर थी कि वह अपनी चॉइस कर सके उसे क्या पहनना है क्या नहीं.
उर्फी आगे कहती हैं, पर्दा रखने को सब नीची निगाहों से क्यों देखते हैं. अगर किसी पर थोपी नहीं जा रही है, तो यह कतई गलत नहीं है. लड़कियां अपनी मर्जी से पहनना चाह तो रही हैं, तो गलत नहीं है. मेकअप लाली, लिपस्टिक पोत के नहीं आ रही है, असल श्रृंगार तो उनके अंदर की आजादी से ही झलकती है.
मैंने कभी हिजाब नहीं पहना
मैंने बचपन से ही हिजाब कभी नहीं पहना. मेरी मम्मी इसे फॉलो नहीं करती थीं. मेरे रिलेटिव्स फॉलो करते हैं. मेरी नानी अभी तक बुरखा पहनती है. पर ये उनकी चॉइस है. अगर महिला किसी भी कपड़ों में खुद को इंपॉवर कर रही हैं ,तो उसमें कोई दिक्कत नहीं है. बेटी बढ़ाओ बेटी पढ़ाओ कितना चल रहा है. तो आप इस बेसिस पर किसी बेटी को नहीं रोक सकते क्योंकि उसने हिजाब पहना है. तो फिर बेटी को पढ़ने से क्यों रोक रहे हो.
धर्म का हिजाब से लेना-देना नहीं
धर्म का हिजाब से कोई लेना देना नहीं होता है, यहां लोग अपने हिसाब से चीजों को मोल्ड कर लेते हैं. धर्म की रखवाली भी वैसे लोग कर रहे हैं, जिन्होंने गीता या कुरान कभी पढ़ी नहीं होगी. पहले तो आप पढ़कर आएं, फिर हमें ज्ञान दें. पांच हजार पुरानी चीजें आगे चलकर अपनी सहूलियत के हिसाब से बदलती रहती हैं. आप अपनी सहूलियत का इस्तेमाल कर नफरत फैला रहे हो, तो यह गलत है न.
किसी को फतवा जारी करना है, कर दे
मुझे कई बार मेरी कम्यूनिटी के लोग तस्वीरों में कमेंट कर बुरा-भला कहते रहते हैं. मैं बता दूं, मैं यहां किसी को खुश करने नहीं आई हूं. जिसे जो करना है, वो कर सकता है, मैं वही पहनूंगी, जो मेरा मन करेगा. अब किसी को फतवा जारी करना है, तो कर दे. मुझे फर्क नहीं पड़ता है. ये लोग न मेरा खर्चा उठा रहे हैं और न ही मेरी जिंदगी में कोई योगदान दे रहे हैं, तो मुझे इनकी परवाह क्यों हो.