विवेक अग्निहोत्री निर्देशित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ 11 मार्च को रिलीज हो रही है. कश्मीरी पंडितों का दर्द बयां करती इस फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती, अनुपम खेर, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी और पुनीत इस्सर अहम भूमिका में हैं. पिछले दिनों मीडिया के लिए फिल्म मेकिंग की स्क्रीनिंग रखी गई. इस मौके पर विवेक अग्निहोत्री ने aajtak.in से बात की.
ये फिल्म नहीं है, मेरे लिए मिशन है
विवेक अग्निहोत्री कहते हैं, ‘मैं इस फिल्म को एक सवाल के साथ शुरू करना चाहता हूं. आपको अगर आप ही के घर से निकाल दिया जाए, तो कैसा लगेगा? यह सवाल ही आपको परेशान कर देगा, तो जरा सोचें, उन मासूम कश्मीरी पंडितों का, जो रातो-रात अपने ही घर से अलग होकर रिफ्यूजी टैंट में रहने को मजबूर हुए. कितनों ने अपनी जान भी गंवा दी. मैंने जब पूरे वर्ल्ड में ट्रैवल करते हुए कश्मीरी पंडितों से बात की, तो मुझे एहसास हुआ कि ये बात जरूर आनी चाहिए.
‘द कश्मीर फाइल्स’ के हर शॉट के बाद मैं और विवेक रोते थेः Anupam Kher
India is at war.
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) February 21, 2022
But nobody is telling you.
Not anymore.
Pl watch the trailer of the most Brutally Honest story of Kashmir Genocide.
Pl share ONLY if you like it. #TheKashmirFiles #RightToJustice
https://t.co/xBpSNZVTnh
विवेक कहते हैं ‘द कश्मीर फाइल्स मेरे लिए फिल्म नहीं बल्कि एक मिशन बन गई है. मैं इस दौरान 700 से ज्यादा फर्स्ट जनरेशन विक्टिम से मिला, जिनमें कइयों के पैरेंट्स का कत्ल उनकी आंखों के सामने हुआ. कइयों की मां-बहन का रेप किया गया. कइयों के परिवार वालों को जिंदा जला दिया गया. मैं वर्ल्ड के कोने-कोने में जाकर उनसे मिला, उनकी दास्तां सुनी और यह वीडियो संजोया है’.
विवेक की ये फिल्म रिलीज के साथ ही विवादों में घिर गई है. एक ओर जहां इसे प्रोपेगेंडा फिल्म करार दिया जा रहा है, तो दूसरी ओर इस फिल्म के एक सीन पर आपत्ति जताते हुए उनके खिलाफ फतवा जारी करने की धमकी भी दी जा रही है. इसपर विवेक कहते हैं, ‘मुझे समझ नहीं आता कि कुछ वर्ग के लोग हमारी फिल्म को प्रोपेगेंडा करार देने पर क्यों तुले हैं. कश्मीर विवाद पर बहुत सी फिल्में बनी हैं. लेकिन ज्यादातर रिसर्च की हुई फिल्मों में मैंने पाया है कि ये फिल्में आतंकवाद को सही ठहराती नजर आती हैं’.
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विवेक कहते हैं कि अभी तक बनी फिल्में बताती हैं कि आर्मी के लोग रेप करते हैं और उन्हें मारते हैं इसलिए स्थानीय लोग बंदूक उठाते हैं. आप बता दें कि वर्ल्ड की किस इंडस्ट्री ने आतंकवाद को जस्टिफाई किया है. लेकिन हमारे देश में तो न केवल टेरेरिज्म को ग्लोरिफाई किया गया है बल्कि ऐसी फिल्मों को नेशनल अवॉर्ड्स तक मिले हैं. ये कहां का इंसाफ है? मेरा यह सवाल है कि एक फिल्म जो कश्मीर नरसंहार पर बनी है, तो उसे रोकने की इतनी कोशिश क्यों की जा रही है. क्यों नहीं उसे मेन स्ट्रीम का सपोर्ट मिल रहा है. क्यों नहीं चर्चा हो रही है.
विवेक कहते हैं, ‘जब मेरी फिल्म का ट्रेलर रिलीज हुआ, तो किसी भी नामी क्रिटिक ने इसे तवज्जो नहीं दीं. मेरी फिल्म के ट्रेलर को आम लोगों ने मगर भरपूर पसंद किया. अपनी सच्ची कहानी सुनाने के लिए हमें देश में इस तरह से अलग-थलग किया जा रहा है.