बॉलीवुड फिल्मों में जब भी सबसे आइकॉनिक विलेन्स की बात होती है, तो एक्टर अजित का नाम हमेशा बहुत ऊपर लिया जाता है. 'सारा शहर मुझे लायन के नाम से जानता है' डायलॉग सुनते ही लोगों को अजित याद आ जाते हैं. अपनी धाकड़ पर्सनालिटी और दमदार आवाज और स्टाइलिश स्टाइल में विलेन के किरदारों को यादगार बना देने वाले अजित के बेटे शहजाद खान ने भी फिल्मों में ही करियर बनाया.
अपने पिता की ही तरह, तमाम फिल्मों में विलेन के किरदारों में नजर आए शहजाद को लोग 'अंदाज अपना अपना' फिल्म से याद रखते हैं. आमिर खान और सलमान खान स्टारर इस कल्ट कॉमेडी फिल्म में शहजाद ने फिल्म के फनी विलेन्स में से एक भल्ला का रोल किया था. अब शहजाद ने बताया है कि इंडस्ट्री के नामी एक्टर्स में से एक का बेटा होने के बावजूद उन्होंने कैसे सिर्फ अपने दम पर करियर बनाया. उन्हें कभी अपने पिता का सपोर्ट नहीं मिला, बल्कि उनके पिता अजित ने उनकी जिंदगी 'मुश्किल और सख्त' बना दी थी.
'सख्त' पिता थे अजित
शहजाद ने बताया कि उनके पिता ऑनस्क्रीन जितने कड़क दिखते थे, ऑफस्क्रीन भी उनकी पर्सनालिटी वैसी ही थी. सिद्धार्थ कन्नन के साथ एक बातचीत में शहजाद ने बताया कि जब उन्होंने अजित के सामने पहली बार एक्टर बनने की बात कही थी, तो उनका क्या रिएक्शन था. शहजाद ने कहा, 'जब मैंने अपने पिता को पहली बार बताया कि मैं एक्टर बनना चाहता हूं तो उन्होंने मुझे एक अजीब सा लुक दिया और बोले- मियां, मैं तुम्हारे लिए कोई फिल्म नहीं बनाऊंगा, मैं तुम्हें लॉन्च नहीं करूंगा. तुम जाओ और स्ट्रगल करो और मेरा नाम इस्तेमाल करने की कोशिश मत करना. और, मुझे किसी से फोन पर बात भी मत करवाना.'
शहजाद ने उसी दिन तय कर लिया था कि वो कभी अपने पिता से मदद नहीं लेंगे और इसकी जगह उन्होंने अपने दोस्तों से मदद ली थी. उन्होंने बताया, 'मेरे दोस्तों ने मेरा फोटो सेशन करवाने में मदद की थी.'
शहजाद से जब पूछा गया कि उनके पिता ने उन्हें फिल्मों में रोल दिलाने या उन्हें प्रमोट करने में मदद क्यों नहीं की? तो उन्होंने बताया, 'मेरे पिता ने अपने समय के सबसे बड़े सुपरस्टार्स में से एक राजेंद्र कुमार के बेटे, कुमार गौरव को फेल होते देखा था. उनकी पहली फिल्म सुपरहिट थी, मगर फिर उनके करियर का ग्राफ गिर गया. तो उन्हें लगा 'जब हीरो के बेटे का ये हाल हो सकता है, तो मैं तो कैरेक्टर एक्टर हूं. शायद अपनी जगह वो सही थे.'
10वीं के बाद बंद हो गयी थी पॉकेट मनी
शहजाद ने बताया कि उनके पिता बहुत सख्त आदमी थे और उन्होंने 10वीं के एग्जाम होते ही उन्हें पॉकेट मनी देना बंद कर दिया था. उन्होंने बताया, 'वो बहुत स्ट्रिक्ट थे. मेरे साथ जितना जुल्म हो सकता था उन्होंने किया. मैंने सब सहा. मेरे 10वीं के एग्जाम के बाद उन्होंने मुझे कहा- 'हम तुम्हें पॉकेट मनी नहीं दे सकते, हम तुम्हें सिर्फ खाना देंगे. ये मेरे दोस्त का ऑफिस है, जाओ और काम करो. जो भी तुम कमाओगे, वो तुम्हारा होगा.'
शहजाद ने इससे पहले कभी बस या ट्रेन में सफर नहीं किया था, इसलिए उनके लिए बैंडस्टैंड और कोलाबा के बीच ट्रेवल करना बहुत बड़ा चैलेंज था. शहजाद ने बताया, 'मेरे पैर में फ्रैक्चर हो गया था क्योंकि मुझे पता नहीं था कि ट्रेन पर चढ़ना-उतरना कैसे है. एक महीने दर्द में रहने के बाद, उन्होंने (अजित ने) मुझे कहा कि काम पर वापस जाओ.'
उन्होंने आगे कहा, 'मेरे पिता ने मुझे सख्त और मुश्किल जिंदगी दी. हालांकि, अब मैं उसके लिए शुक्रगुजार हूं, तब मैं रात में ये सोचकर रोता रहता था कि मैंने ऐसा क्या किया है जो ये सब झेल रहा हूं?'
शहजाद खान ने हिंदी सिनेमा में अपना सफर मंसूर खान की फिल्म 'कयामत से कयामत तक' से शुरू किया था. उन्होंने कई फिल्मों में काम किया और 'अंदाज अपना अपना' में तेजा के साथी, भल्ला के रोल में पॉपुलर हुए. वो आखिरी बार 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' में नजर आए थे, जिसमें उन्होंने 'डेंजर मनी भाई' का किरदार निभाया था.