अमिताभ बच्चन और रेखा को लेकर बहुत सारी कहानियां हैं- कुछ पर्दे पर, और बहुत सी पर्दे के पीछे. लेकिन बहुत कम कहानियां इतनी सीधी और खुलकर बताई गई हैं- जैसे कि ये. रणजीत ने एक ऐसा किस्सा याद किया जिसमें रेखा की एक पर्सनल रिक्वेस्ट की वजह से उनकी डायरेक्टोरियल डेब्यू फिल्म की कास्टिंग ही बदल गई.
रेखा ने क्यों छोड़ी थी फिल्म
2015 में रेडिफ के साथ बातचीत में रणजीत बोले, "एक्टिंग छोड़ने के बाद मैंने एक स्क्रिप्ट लिखी और तय किया कि मैं एक फिल्म डायरेक्ट करूंगा जिसमें धर्मेंद्र, रेखा और जया प्रदा होंगे.'' ये एक बेहतरीन शुरुआत लग रही थी. रेखा, जो उनकी पुरानी दोस्त और उनकी पहली फिल्म 'सावन भादों' की को-स्टार थीं, इस प्रोजेक्ट का हिस्सा थीं. वो बोले कि, “रेखा और मैं अच्छे दोस्त रहे हैं क्योंकि मैंने अपनी जिंदगी का पहला शॉट उन्हीं के साथ 'सावन भादों' में दिया था,”
लेकिन 'कारनामा' नाम की इस फिल्म को जल्दी ही एक ऐसा मोड़ मिला जिसका फिल्मों से कोई लेना-देना नहीं था. रणजीत ने बताया कि “'कारनामा' का पूरा पहला शेड्यूल इवनिंग शिफ्ट में था. एक दिन रेखा ने मुझे फोन करके कहा कि क्या मैं शूटिंग की टाइमिंग सुबह कर सकता हूं, क्योंकि वह शाम का वक्त अमिताभ बच्चन के साथ बिताना चाहती थीं.” हालांकि ये एक निजी रिक्वेस्ट थी, लेकिन उसे माना नहीं जा सका. “मैंने विनम्रता से मना कर दिया, तो रेखा ने फिल्म छोड़ दी और साइनिंग अमाउंट वापस कर दिया.”
फिल्म पर पड़ा असर
इसका असर तुरंत दिखा. फिल्म की शूटिंग में देरी हुई, धर्मेंद्र ने दूसरे प्रोजेक्ट्स में काम शुरू कर दिया और उन्होंने रेखा की जगह अनीता राज को लेने का सुझाव दिया. आखिरकार 'कारनामा' फरहा, किमी काटकर और विनोद खन्ना के साथ पूरी हुई. रणजीत ने कहा कि “फिल्म का बिजनेस औसत रहा जब वो 1990 में रिलीज हुई.” रणजीत ने इसके बाद 1992 में 'गजब तमाशा' नाम से एक और फिल्म बनाई, जिसमें अनु अग्रवाल और राहुल रॉय थे, लेकिन वो फिल्म भी नहीं चली.
अमिताभ बच्चन और रेखा की ऑनस्क्रीन कैमिस्ट्री, खासकर 'सिलसिला' (1981) में, लंबे समय से लोगों की चर्चा का विषय रही है. इस पर सालों से बातें, खबरें और कयास लगते रहे हैं. 'सिलसिला' भले ही उनकी सबसे यादगार और चर्चित फिल्म हो, लेकिन उन्होंने कई और फिल्मों में साथ काम किया जिसमें उनकी केमिस्ट्री खूब सराही गई. उनकी कुछ यादगार फिल्में हैं- 'मुकद्दर का सिकंदर' (1978), 'मिस्टर नटवरलाल' (1979), 'सुहाग' (1979), 'दो अंजाने' (1976), और 'राम बलराम' (1980).