इसमें कोई दोराय नहीं है कि नसीरुद्दीन शाह बॉलीवुड जगत के सबसे बड़े स्टार हैं. उन्होंने 4 दशक से भी ज्यादा लंबे समय में इंडस्ट्री में एक खास मुकाम हासिल किया है. 80 के दशक में पैरेलल सिनेमा में अपना बड़ा योगदान देने वाले एक्टर नसीरुद्दीन शाह मानते हैं कि उन्होंने अपने करियर के दौरान कुछ फिल्मों का चयन करने में भूल की. मगर इसमें कोई दोराय नहीं है कि आज भी वे उम्र के इस पड़ाव पर थियेटर से भी जुड़े हुए हैं और अच्छे कंटेंट पर काम करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. हाल ही में वे अमेजन प्राइम पर आई अपनी वेब सीरीज बंदिश बैंडित को लेकर सुर्खियों में रहे. ये एक म्यूजिकल वेब सीरीज है जो अगस्त की शुरुआत में रिलीज की गई थी. वेब सीरीज ने संगीत प्रेमियों समेत सभी का ध्यान आकर्षित किया. इस तरह के कंटेंट पर बॉलीवुड में कम ही काम हुआ है. आइए जानते हैं ऐसी फिल्मों के बारे में जो संगीत आधारित थीं.
बैजू बावरा (1952)- जो संगीत प्रेमी हैं उन्होंने बैजू बावरा का नाम जरूर ही सुना होगा. मुगल काल में तानसेन को चुनौती देने वाले बैजू बावरा का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है. बैजू बावरा फिल्म अपने समय की सुपरहिट फिल्म मानी जाती है. फिल्म में बैजू बावरा के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दिखाया गया था. फिल्म में उस समय के स्टार एक्टर भारत भूषण नजर आए थे. फिल्म में कई सारे गानें थे और ये गाने आज भी लोगों द्वारा पसंद किए गए. फिल्म का म्यूजिक नौशाद ने दिया था और इसके गाने मोहम्मद रफी ने गाए थे. मन तड़पत हरि दर्शन को आज, ओ दुनिया के रखवाले और तू गंगा की मौज आज भी पॉपुलर हैं.
सुशांत के साथ पार्टी में की थी चेतन भगत ने मुलाकात, मांगे थे फिटनेस टिप्स
अलाप (1977)- अमिताभ बच्चन, रेखा, ओम प्रकाश और संजीव कुमार के अभिनय से सजी ये म्यूजिकल फिल्म लोगों के दिलों में उतर गई थी. फिल्म में अमिताभ बच्चन ने एक ऐसे शख्स का रोल प्ले किया था जो क्लासिकल संगीत के प्रति काफी ज्यादा लगाव रखता है मगर उससे घर में उसके पिता चाहते हैं कि वो कोई सम्मानजनक नौकरी करे ताकि समाज में उनका नाम खराब ना हो. फिल्म में ओम प्रकाश ने अमिताभ बच्चन के पिता का रोल प्ले किया था. फिल्म में दोनों के बीच का वैचारिक मतभेद आज के जमाने की भी कड़वी सच्चाई है. जनरेशन गैप और करियर को लेकर चुनाव और उसकी समय पर काउंसलिंग को लेकर देश में बहुत काम किया जाना बाकी है. यहां तक कि आमिर खान की सुपरहिट फिल्म 3 ईडियट्स में भी आर माधवन के किरदार के जरिए इस मुद्दे को रखा गया था.
कभी हां कभी ना (1994)- 90 का दशक, नया दौर, सितार और हरमोनियम की जगह गिटार ने ले ली. मगर संगीत को करियर के तौर पर समाज द्वारा वो स्कोप तब तक भी नहीं मिल पाया था. नए-नवेले शाहरुख खान के किरदार की संगीत के प्रति दीवानगी, पढ़ाई में मन ना लगना, उनके घरवालों को नागवार गुजरा. खासकर उनके पिता का रोल प्ले करने वाले अंजान श्रिवास्तव उनसे इस बात से काफी हैरान नजर आए और उनके करियर को लेकर चिंतित भी. मगर शाहरुख खान के किरदार ने ये ठान लिया था कि उन्हें संगीत में ही करियर बनाना है. जो उनका मन चाहता है उन्हें वही करना है. समय लगा, जनरेशन गैप को फिल होने में मगर इस फिल्म में तो हैपी इंडिग देखने को मिली. शाहरुख के पिता उनके करियर के चुनाव पर राजी हुई और उन्होंने माना कि वक्त के साथ-साथ नौजवानों के मन में काम करने के अंदाज और इच्छा को लेकर विस्तार हुआ है जो आगे जाकर बड़ी संभावनाओं में तब्दील हुआ.
सुशांत को इंसाफ दिलाने जुटे हर धर्म के लोग, एक साथ पढ़ा गायत्री मंत्र
रॉकऑन (2008)- रॉकऑन फिल्म तक आते-आते संगीत ने करियर के तौर पर एक अच्छा खासा स्कोप बना लिया था. भारत में 90 के दशक से पनपा बैंड क्रेज अब करियर के रूप में एक बड़े अवसर के तौर पर चिन्हित किया जाने लगा था. परिवार और समाज में भले ही वैसी स्वीकृति कुछ वाजिब कारणों से नहीं मिल सकी, मगर यंग्स्टर्स के लिए म्यूजिक में करियर बनाने के बड़े अवसर इस समय तक बन चुके थे. ऐसे ही एक बैंड की कहानी थी ये फिल्म. जो इंडस्ट्री में ट्रेंड सेटर भी मानी जाती है.
रॉकस्टार (2011)- संगीत का स्वरूप भी वक्त के साथ बदलता रहा है. पहले के समय में जहां संगीत को सुकून और प्यार करने के इजहार के तौर पर देखा जाता था वहीं बदलते वक्त के साथ इसे बात रखने या भड़ास निकालने के विभिन्न माध्यमों में से एक मान लिया गया. जब रणबीर सिंह ने गिटार उठा ऑडियंस के सामने गाया- सड्डा हक, एत्थे रख. गाने में यंग्स्टर्स की फ्रस्टेशन साफ देखने को मिली. फिल्म को पसंद किया गया.
नए जमाने के साथ म्यूजिक में बढ़ता स्कोप
इसके बाद से तो सोशल मीडिया का दौर जैसे-जैसे सक्रिय हुआ संगीत में करियर की संभावनाओं ने भी फैलना शुरू किया. जनरेशन गैप की बाधा हटनी शुरू हुई. भले ही पूरी तरह से नहीं हटी है मगर आज हर दूसरे यंगस्टर्स के हाथ में गिटार है, दिल में संगीत और जुबां पर बोल. जो सरल होते माध्यमों से लोगों तक पहुंच रहे हैं, सुने जा रहे हैं और अपनाए भी जा रहे हैं. पुराने गानों को नए अंदाज मिल रहे हैं और भारत में संगीत को नया मुकाम. इसी बीच नसीरुद्दीन शाह की ये नई वेब सीरीज हमें संगीत के उड़ रहे सुरों को ना सिर्फ उसकी जड़ों से दोबारा जोड़ती है बल्कि ये भी बताती है कि आज भी क्लासिक म्यूजिक एक साधना है और इसमें जो शक्ति ये वो किसी योग से कम नहीं.