
1977 में अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना की एक फिल्म आई 'परवरिश'. दिवाली पर आई सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्मों में से एक रही 'परवरिश' को बनाया मनमोहन देसाई ने, जो बड़ी स्क्रीन पर पूरे तामझाम के साथ मसालेदार कहानियां बनाते थे. अमिताभ और विनोद जैसी जोरदार ऑनस्क्रीन जोड़ी का जलवा तो था ही, फिल्म के गाने भी बहुत पॉपुलर हुए. लेकिन साथ ही इस फिल्म के बाद एक नया शब्द खूब चल निकला- सुप्रीमो. ये 'परवरिश' के विलेन का नाम था. और इस विलेन का किरदार निभाया था कादर खान ने. सुप्रीमो उस दौर का एक कूल विलेन था. वो टेक्नोलॉजी का खूब इस्तेमाल करता था और उसके पास छुपकर भाग निकलने के लिए एक पर्सनल सबमरीन थी.
'सुप्रीमो' शब्द ऐसा चल निकला कि 1983 में आई 'पुकार' जब शूट हो रही थी, तब फिल्म में काम कर रहे रणधीर कपूर अपने साथी हीरो अमिताभ बच्चन को इसी नाम से बुलाया करते थे. कम ही लोगों को याद रहता है कि 80s में अमिताभ बच्चन पर एक कॉमिक्स आई थी जिसका नाम 'सुप्रीमो' था. इस कॉमिक्स के क्रिएटर पम्मी बक्षी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि रणधीर का अमिताभ को 'सुप्रीमो' बुलाना ही इस कॉमिक्स के टाइटल की वजह बना. कॉमिक्स में अमिताभ एक सुपरहीरो थे. यानी कादर खान के विलेन किरदार का नाम, सुपरहीरो अमिताभ बच्चन की पहचान बना.

विलेन कादर खान का भौकाल
90s का सिनामाई दौर जीने वाली जनता को कादर खान मजेदार कॉमेडी फिल्मों के लिए ज्यादा याद रहते हैं. 'दूल्हे राजा' 'बोल राधा बोल' और 'हीरो नंबर 1' जैसी कितनी ही फिल्मों में गोविंदा के साथ कादर खान की कॉमेडी वाली जुगलबंदी, 90s के हिंदी सिनेमा की सबसे मजेदार चीजों में से एक है. लेकिन कॉमेडी के लिए ज्यादा याद किए जाने वाले कादर खान 70s और 80s के दौर में स्क्रीन पर खूंखार विलेन बनकर भी खूब पॉपुलर हुए.

अमिताभ बच्चन की अल्टीमेट हिट 'कुली' में कादर खान ने विलेन जफर खान का रोल किया. कहानी में जफर, सलमा को लेकर हद दर्जे की सनक में था. उसने सलमा का परिवार तबाह कर डाला और उसे उसके बेटे इकबाल से दूर कर डाला. मतलब, सलमा को पाने के लिए सारी हदें पार करने को तैयार. 'डर' में शाहरुख का सनकी आशिक किरदार राहुल मेहरा, ऑलमोस्ट जफर का ही कोई दूर का रिश्तेदार लगता है.

'अंगार' (1992) में कादर खान मुंबई के गॉडफादर जहांगीर खान बने. कादर साहब का ये किरदार दोबारा देखने पर आपको समझ आएगा कि इसका कैरेक्टर आर्क कितना बेहतरीन था, और बाद की फिल्मों के कितने ही विलेन्स के लिए इस किरदार ने टेक्स्टबुक का काम किया होगा. 'दो और दो पांच' और 'खून का कर्ज' जैसी कितनी ही फिल्मों में कादर खान ने ऐसे विलेन किरदार निभाए जिनसे आदमी खूब नफरत करने लगे. लेकिन फिर कहानी में ट्विस्ट आया और अपनी गहरी आवाज, दमदार पर्सनालिटी से विलेन किरदारों में जान फूंक देने वाले कादर खान, ज्यादातर कॉमेडी करने लगे. ऐसा क्यों हुआ, इसकी वजह उनके बेटे से जुड़ी थी, जो उन्होंने खुद बताई थी.
बेटे की बात से बदले कादर खान के किरदार
एक पुराने इंटरव्यू में कादर खान ने बताया था कि उन्होंने अपने बेटे अब्दुल कुद्दुस की वजह से बॉलीवुड फिल्मों में विलेन के रोल से दूरी बना ली थी. उन्होंने कहा, 'मेरा बड़ा बेटा कुद्दुस जब अपने दोस्तों के साथ खेलकर लौटता, तो उसके कपड़े फटे होते. एक विलेन के तौर पर, अंत में मैं हमेशा मार खाता था. उसके दोस्तों और क्लासमेट्स ने उसे कहा कि तुम्हारे पापा लोगों को मारते हैं और फिर अंत में खुद मार खाते हैं.'
कादर साहब ने कहा कि बच्चों के इस खेल में उनके बेटे को बहुत परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. उन्होंने आगे कहा, 'मेरा बेटा ऐसे कमेंट्स से गुस्सा हो जाता और लड़ बैठता. एक दिन जब वो सर पर चोट के साथ वापिस लौटा, मैं बहुत अपसेट हो गया और तय किया कि मैं अब विलेन के रोल नहीं स्वीकार करूंगा. एक कॉमेडी फिल्म, 'हिम्मतवाला' बन रही थी और उसके बाद मैंने कॉमिक रोल करने शुरू कर दिए.'
एक बेहतरीन अभिनेता, दमदार राइटर और जानदार शख्सियत कादर खान ने 31 दिसंबर 2018 को इस दुनिया से विदा ली. निधन से कुछ साल पहले से उनकी हेल्थ काफी बिगड़ती चली गई थी और वो सुपरान्यूक्लियर पाल्सी से जूझ रहे थे. अपनी हाजिरजवाबी और तेज तर्रार डायलॉगबाजी के लिए मशहूर कादर साहब को अंतिम समय में बोलने में तक में तकलीफ का सामना करना पड़ता था.
कुछ किस्सों के अंत बड़े दुखद होते हैं. जैसे इसी किस्से में जिस बेटे की वजह से कादर खान ने अपने किरदारों में बदलाव कर लिया, अब वो भी इस संसार में नहीं है. 2021 में कुद्दुस खान ने भी अपनी आखिरी सांस ली और कनाडा के मिसीसॉगा में, कुद्दुस को भी उसी मीडो-वेल सिमेट्री में दफ्नाया गया, जहां कादर खान साहब को सुपुर्द-ए-खाक किया गया था.