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'गंगूबाई' का मुकदमा सुनते हुए जस्टिस इंदिरा ने सुनाई दर्दनाक सच्ची घटना, कोर्टरूम में पसरा सन्नाटा

जस्टिस बनर्जी ने बताया कि उसके साथ हुई घटना सोचकर आज भी मेरी कंपकंपी छूट जाती है. एक रात में भोगे नरक की वजह से वह लड़की HIV पॉजिटिव हो गई. मैं जब उससे मिली तो उसने इस तरह मेरा हाथ पकड़ा और पूछा कि आखिर मैंने क्या किया है? मेरा कसूर क्या है? यह वाक्य बोलते-बोलते जस्टिस बनर्जी काफी भावुक और गंभीर हो गईं.

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गंगूबाई काठियावाड़ी
गंगूबाई काठियावाड़ी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • गंगूबाई काठियावाड़ी फिल्म की रील स्टोरी पर उठे कानूनी विवाद
  • सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस इंदिरा ने सुनाई रियल स्टोरी
  • जस्टिस बनर्जी हुईं भावुक

फिल्म 'गंगूबाई काठियावाड़ी' 25 फरवरी को रिलीज के लिए तैयार है. फिल्म पर रोक लगाने की अपील वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने 14 साल की एक लड़की की आपबीती सुनाई जो उस लड़की ने उनसे खुद साझा की थी. कहानी सुनाते हुए वह खुद भी काफी भावुक हो गईं. जस्टिस बनर्जी ने बताया कि वह कई सालों तक लीगल एड सोसाइटी का हिस्सा रही हैं. कोलकाता हाईकोर्ट की जज रहते समय वह लीगल सर्विसेज अथॉरिटी की चेयरपर्सन भी रहीं.

जस्टिस ने सुनाई कहानी
जस्टिस बनर्जी ने अदालत में बताया कि वर्षों पहले की बात है. एक बार मुझे देह व्यापार में झोंकी गई महिला के बारे में पता चला. आज भी जब मैं उसके बारे में सोचती हूं तो परेशान हो जाती हूं. वह 14 साल की लड़की थी. परिवार में कोई नहीं था. उसे दो वक्त का भोजन भी नहीं मिल रहा था. उसके पड़ोस में रहने वाली महिला, जिसे लोग मासी कहते थे, वही उसकी देखभाल करती थी. एक दिन उस चाची ने उससे कहा कि तुम मुंबई आ जाओ. यहां तुम्हें नौकरी-खाना सब कुछ मिलेगा. गरीबी से मुक्ति और काम की युक्ति सोचकर वह मुंबई जाने के लिए तैयार हो गई. वह वहां गई तो दुश्चक्र में फंस गई. चाची के जाल में फंसने के बाद कई लोगों ने उसके साथ दुष्कर्म किया. रोज उसे कई लोगों को संतुष्ट करना होता था. एक रात तो कई लोगों ने युवा लड़की के साथ असुरक्षित रेप किया. वह काफी रोई, चिल्लाई. आखिरकार एक रात आए एक आदमी को उसकी दीन-दशा पर दया आ गई. उसने उस मजबूर दुखियारी लड़की को वहां से छुड़ाकर एक NGO को सौंप दिया. उस एनजीओ की पहल पर बाद में मीडिया ने उसके मामले को जोरशोर से उठाया.

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जस्टिस बनर्जी ने बताया कि उसके साथ हुई घटना सोचकर आज भी मेरी कंपकंपी छूट जाती है. एक रात में भोगे नरक की वजह से वह लड़की HIV पॉजिटिव हो गई. मैं जब उससे मिली तो उसने इस तरह मेरा हाथ पकड़ा और पूछा कि आखिर मैंने क्या किया है? मेरा कसूर क्या है? यह वाक्य बोलते-बोलते जस्टिस बनर्जी काफी भावुक और गंभीर हो गईं. कोर्ट रूम का माहौल भी संजीदा हो गया. जब वह यह कहानी बता रही थीं तो अदालत में सब खामोश थे. शांति तब टूटी जब भंसाली प्रोडक्शन्स की ओर से दलील दे रहे सीनियर एडवोकेट अर्यमा सुंदरम ने कहा कि माइ लेडीशिप! यह मामला उस तरह का नहीं है. यहां तो उस पीड़ित महिला की हिम्मत की प्रशन्सा हो रही है. यह फिल्म उन्हें बदनाम नहीं करती है, बल्कि उनके साहस और आत्मविश्वास के लिए उन्हें महिमामंडित करती है. यह तो एक सेक्स वर्कर की गरिमामयी कहानी है जो राजनीतिक रूप से प्रमुखता से बढ़ी है.

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इस फिल्म पर सवाल उठा कर इसे विवादों में घसीटा जा रहा है. वह भी ऐसे दावेदार के द्वारा जो इस फिल्म की नायिका के असल व्यक्तित्व यानी असली गंगूबाई काठियावाड़ी का दत्तक पुत्र होने का दावा तो करता है पर इसका कोई सबूत नहीं देता. अदालत ने फिर इसी दलील पर याचिका खारिज भी कर दी थी. हालांकि, अदालत उठ जाने के बाद भी वकील उस कहानी की चर्चा करते रहे जो उनके भी जहन में उतर चुकी थी.

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