scorecardresearch
 

'मोहे का कन्यामान परम्परा या रीति रिवाजों के विरोध में नहीं, इसका उद्घोष है– परंपरा वही, सोच नई!'

फिल्म में दुल्हन के भीतर चल रहे मानसिक ऊहापोह को दिखाया गया है. जो ऐसे मौके पर हर लड़की के लिए स्वाभाविक है. उसके मन में अनेक प्रकार के सवाल हैं, जो वह एकाकी संवाद के माध्यम में दर्शकों के समक्ष रखती है.

Advertisement
X
आलिया भट्ट
आलिया भट्ट
स्टोरी हाइलाइट्स
  • ब्रांड मोहे के नए एड में दिखीं आलिया भट्ट
  • दुल्हन बनीं आलिया ने एड में दिया खास मैसेज

नई मोहे एड फिल्म पर उठते सवालों के बाद ब्रांड का पक्ष सामने आया है. कंपनी के मुताबिक नई फिल्म में सब कुछ वही रहता है, बस एक नए दृष्टिकोण की बात की गई है- ‘क्यों सिर्फ कन्यादान...नया विचार – कन्यामान! इस विज्ञापन फिल्म में इस रिवाज को चुनौती नहीं दी जा रही है, बल्कि इसी रिवाज का पालन आधुनिक संदर्भों में किया गया है. जहां दूल्हा और दुल्हन दोनों की समान भागीदारी है और वे बराबर रूप से एक दूसरी की जिम्मेदारी वहन करते हैं.

कंपनी के मुताबिक फिल्म में दुल्हन के भीतर चल रहे मानसिक ऊहापोह को दिखाया गया है. जो ऐसे मौके पर हर लड़की के लिए स्वाभाविक है. उसके मन में अनेक प्रकार के सवाल हैं, जो वह एकाकी संवाद के माध्यम में दर्शकों के समक्ष रखती है.निसंदेह उसका परिवार उसे भरपूर प्यार और सम्मान देता है और कामना करता है कि उसे जीवन में सब कुछ अच्छे से अच्छा मिले. पर वह घड़ी एक बड़े परिवर्तन की है- बेटी से एक बहू बनने का परिवर्तन.
 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

A post shared by Mohey (@moheyfashion)

कन्यामान आधुनिक युग की दुल्हन का प्रतिनिधित्व करता है, जो वैवाहिक जीवन में भी, अन्य क्षेत्रों की तरह, पूर्ण रूप से समानता की आशा रखती है और उसका प्रयास करती है. कन्यादान का वास्तविक अर्थ कन्यामान ही है- यानि नारी को सम्मान और समानता का अधिकार! ‘कन्यामान’ – यह परम्परा का निर्वाह करते हुए, उसी परम्परा को नयी सम-सामयिक वैचारिक पृष्ठभूमि प्रदान करता है और यह संदेश समाज के सभी वगों में प्रभावशाली तरीके से संप्रेषित हो रहा है.

Advertisement


श्री श्री रविशंकर भी कन्यामान के समर्थन में बोले। उन्होंने स्पष्ट कहा - श्रुतियों में विशेष रूप से कन्यादान जैसा कुछ नहीं है. स्मृतियों में बाद में केवल पाणिग्रह है – यानि हाथ पकड़ना. यह वैदिक संस्कृति का शब्द है जिसका आशय है कि ‘आप मेरी पत्नी या मेरे पति के रूप में हाथ पकड़ते हैं‘. पर समय के साथ साथ इसमें विकृतियां आ गईं और फिर कन्यादान को पाणिग्रहण का अंग बना दिया गया.

विवाह के बाद भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मौलिकता बनी रहे इस नए अर्थ को बड़े ही खूबसूरत और सृजनात्मक तरीके से इस विज्ञापन में सम्बोधित किया गया है. यह विज्ञापन ‘कन्यामान’ का जश्न है जो आजकल काफी चर्चा में है. समाज के कई वर्गों – युवाओं, महिलाओं, माता-पिताओं ने इसे खूब सराहा और कन्यामान के उत्तम विचार को कन्यादान से सर्वोपरि माना है. अनगिनत लड़कियां खुलकर इसके समर्थन में आ रही हैं, क्योंकि वे अपने व्यक्तिगत अनुभवों से इसे जोड़ पा रही हैं. 


कंपनी के मुताबिक ब्रांड मोहे की तरह, अन्य सभी ब्रांड्स को भी तमाम प्रतिकूलताओं और विरोध के बावजूद इसी तरह महिलाओं के समर्थन में यानी इस विचार के समर्थन में एकजुटता से खड़े रहना चाहिए.

Advertisement
Advertisement