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शाम को ‘लंच’, तड़के ‘डिनर’ करते थे बप्पी दा, रुला देती है संघर्ष की कहानी!

"बप्पी दा को इंडस्ट्री में 50 साल हो गए थे. उन्होंने जबरदस्त टाइम देखा है. म्यूजिक इंडस्ट्री को एक नया आयाम बप्पी दा ने ही दिया था. डिस्को कल्चर उन्हीं की देन है. वेस्टर्न और इंडियन म्यूजिक की जुगलबंदी को बाप्पी दा ने बढ़ावा दिया था."

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उदित नारायण, बप्पी लाहिड़ी
उदित नारायण, बप्पी लाहिड़ी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • किंग की तरह जीते थे बप्पी दा
  • 27 दिसंबर को घर पर रखी थी ग्रैंड पार्टी
  • खाने-पीने के शौकीन थे बप्पी लाहिड़ी

Bappi Lahiri Passes Away: लता मंगेशकर के बाद म्यूजिक की दुनिया के एक और महान कलाकार, बप्पी लाहिड़ी इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं. म्यूजिक इंडस्ट्री के लिए यह बहुत बड़ा लॉस है. अपने शानदार गानों से हर किसी को थिरकाने वाले बप्पी लाहिड़ी हमेशा के लिए खामोश हो गए हैं. सिंगर्स सदमे में हैं और यकीन नहीं कर पा रहे हैं. हाल ही में आजतक डॉट इन संग बातचीत में उदित नारायण ने बप्पी दा को श्रद्धांजलि देते हुए उनसे जुड़े कुछ अनसुने और अनकहे किस्सों के बारे में बताया. 

"बप्पी दा संग मेरी जो बॉन्डिंग रही है, उसे किसी रिश्ते में बांध नहीं सकते हैं. गुरू, बड़ा भाई, कंपोजर जो भी कह लें, हमने इसे परिभाषित करने की कोशिश भी नहीं की थी. अपने स्ट्रगल के दिनों से उनसे मिलता रहा हूं. अभी तो वह जुहू में रहते हैं, लेकिन पहले संजय खान के बंग्ले के पास उनका फ्लैट हुआ करता था. वहां अक्सर मैं जाया करता था. वह अपने मां-पिताजी के साथ रहते थे. उस वक्त वह एक दिन में पांच-छह स्टूडियो में गाना गाया करते थे. उनके पास वक्त नहीं होता था. बहुत बिजी होने के बावजूद वह हम जैसे लोगों से मिल लेते थे. चाय पिला देते थे, किस्से सुना दिया करते थे. उनके साथ घर जैसा रिलेशन तब से लेकर आजतक बरकरार रहा है. हालांकि, मैंने उनके साथ बहुत ज्यादा काम नहीं किया. मुश्किल से 15 फिल्मों में उन्होंने मुझसे गाना गवाया होगा. प्रकाश मेहरा की दलाल फिल्म, अफसाना प्यार का में आशा जी के साथ गाने का उन्होंने मुझे मौका दिया था."

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किशोर दा संग दिया पहला मौका
एक फिल्म थी, 'कह दो प्यार है' जो कभी बनी नहीं. उसमें किशोर दा, सुरेश वाडकर और मुझसे उन्होंने गाना गवाया था. हालांकि, यह फिल्म बनकर भी रिलीज नहीं हुई. मैं उस वक्त बहुत नया था. ऐसे दिग्गजों के बीच जाकर गाना रिकॉर्ड करना, मेरे लिए काफी मुश्किल बात थी. बप्पी दा ही थे, जिन्होंने मुझे यह विश्वास दिलाया कि मैं उनके साथ गा सकता हूं. मुझे किशोर दा संग गाने का पहला मौका बप्पी दा ने ही दिया था. महबूब स्टूडियो में उस गाने की रिकॉर्डिंग थी. एक और फिल्म पहलाज निहलानी जी की थी. इस फिल्म से मुमताज जी अपना कमबैक करने जा रही थीं. प्रसनजीत उसमें लीड एक्टर थे. जब भी कोलकाता में शोज करने जाते थे तो उनसे मुलाकात होती रहती थी.

डिस्को कल्चर उन्हीं की देन है
बप्पी दा को इंडस्ट्री में 50 साल हो गए थे. उन्होंने जबरदस्त टाइम देखा है. मैं उस दौर का साक्षी रहा हूं, जब प्यारे मोहनलाल जी, कल्याण आनंद जी जैसे बड़े-बड़े दिग्गज रूल किया करते थे तो उनके बीच अपनी अलग पहचान बनाते हुए बप्पी दा ने हंगामा मचा दिया था. म्यूजिक इंडस्ट्री को एक नया आयाम बप्पी दा ने ही दिया था. डिस्को कल्चर उन्हीं की देन है. वेस्टर्न और इंडियन म्यूजिक की जुगलबंदी को बाप्पी दा ने बढ़ावा दिया था.

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अपना स्ट्रगल किसी को बताया नहीं
बप्पी दा ने कभी अपना स्ट्रगल हमसे शेयर नहीं किया. हालांकि, उनकी मां हमेशा किस्से सुनाया करती थीं. मां कहती थीं कि खार डांडा रोड के एक छोटे से कमरे में उनका परिवार रहा करता था. काफी स्ट्रगल किया था. उनकी मां के कहे किस्सों ने मुझे रूला दिया था. उनके प्रति इज्जत और बढ़ गई थी.

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बप्पी दा को होता था किडनैप होने का डर
बप्पी दा संग तो किस्से इतने सारे हैं, जिसे शेयर करूं तो खत्म न हों. बप्पी दा के गोल्ड के शौक से तो हर कोई वाकिफ है. जब भी उन्हें देखा तो कम से कम पांच लाख का सोना तो वह गले में ही पहनते थे. यह शौक उन्हें भीड़ से अलग करता था. वह एकदम किंग की तरह जीते थे. दादा से अक्सर मजाक किया करते थे कि हम आपको किडनैप करेंगे तो वैसे ही लखपती बन जाएंगे. वह खुद कहा करते थे कि कहीं कोई मुझे किडनैप कर लेगा तो पच्चीस तीस लाख ऐसे ही मिल जाएगा.

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27 दिसंबर को घर पर रखी थी पार्टी
बप्पी दा एक लंबे समय से बीमार चल रहे थे, लेकिन इसके बावजूद उनके कहने पर परिवार वालों ने 27 दिसबंर को एक ग्रैंड पार्टी का आयोजन किया था. इस पार्टी में ही उनसे मेरी आखिरी मुलाकात हुई थी. इंडस्ट्री के सारे सिंगर्स, कंपोजर्स आए हुए थे. एक्टर्स भी पहुंचे थे. उस वक्त वह व्हीलचेयर पर बैठे हुए थे और ड्रेसअप किया हुआ था. वह बोल पाने की स्थिती में नहीं थे, लेकिन उनकी आंखों में चमक गजब की थी. वह सबसे मुस्कुराते हुए मिल रहे थे. उन्होंने गाना नहीं गाया था, लेकिन हम सिंगर्स मिलकर जैमिंग कर रहे थे. मैं तो वहां चार से पांच घंटे रूका रहा था.

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रात को लंच और अल सुबह होता था डिनर
बप्पी दा के खान-पान को लेकर कई तरह के किस्से रहे हैं. खाने-पीने के शौकीन तो इतने थे कि जिनका कोई हिसाब नहीं, लेकिन जब वह अपने करियर के पीक पर थे. अपने काम पर इतने मशगूल हो जाया करते थे कि उनके पास खाने-पीने का वक्त नहीं बचता था. वह दोपहर का खाना शाम के सात-आठ बजे खाया करते थे. डिनर तीन-चार बजे मॉर्निंग में करते थे. उनके खाने का कोई फिक्स शिड्यूल नहीं हुआ करता था.

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