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बॉलीवुड

पाकीजा के 49 साल: नरगिस- सुनील दत्त नहीं होते तो हिंदी सिनेमा को नहीं मिलती पाकीजा

मीना कुमारी
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साल 1972 में रिलीज हुई आइकॉनिक फिल्म पाकीजा को रिलीज हुए आज 49 साल हो गए हैं. फिल्म की 49वीं एनिवर्सरी पर हम आपको बताने जा रहे है इस फिल्म से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से. कमाल अमरोही के निर्देशन में बनी मीना कुमारी, राज कुमार और अशोक कुमार जैसे सितारों से बनी इस फिल्म के बारे में कम ही लोग जानते हैं कि अगर नरगिस और सुनील दत्त नहीं होते तो ये फिल्म शायद बनती ही नहीं.

मीना कुमारी
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दरअसल, मीना कुमारी को उनके करियर में जिस फिल्म के लिए सबसे ज्यादा याद किया जाता है वो फिल्म थी पाकीजा. मगर क्या आप जानते हैं कि मीना कुमारी इस फिल्म में काम नहीं करना चाहती थीं.

मीना कुमारी
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कमाल अमरोही जो मीना कुमारी के पति थे वे इस फिल्म के निर्देशक भी थे. कमाल और मीना के बीच बढ़ती दूरियों का असर इस फिल्म पर भी पड़ा और मीना ने इस फिल्म में आगे काम करने से मना कर दिया था.

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मीना कुमारी
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ऐसे में एक ऐतिहासिक फिल्म का अस्तित्व खतरे में पड़ता नजर आया. तभी नरगिस दत्त और सुनील दत्त ने इन दोनों कलाकारों को इस फिल्म को पूरा करने के लिए किसी तरह राजी किया.

मीना कुमारी
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उन दिनों मीना कुमारी की तबीयत काफी खराब रहती थी. मगर इसके बावजूद उन्होंने इस फिल्म की शूटिंग की और ये फिल्म भारतीय सिनेमा के इतिहास की मास्टरपीस मानी जाती है.

पाकीजा का एक सीन
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ये किस्से भी हैं मशहूर
पाकीजा 1972 में जब रिलीज हुई तो फिल्म संगीत पूरी तरह से बदल चुका था. पियानो पर किशोर कुमार की आवाज़ को चेहरा देते राजेश खन्ना सुपर स्टार थे और गानों से शास्त्रीयता गायब हो चुकी थी.

पाकीजा का एक सीन
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पाकीजा का संगीत देने वाले गुलाम मोहम्मद दुनिया से जा चुके थे. लोग कह रहे थे अब पाकीज़ा जैसे गाने नहीं चलेंगे, शंकर-जयकिशन से फिल्म का संगीत दुबारा बनवाया जाए. कमाल अड़ गए कि मैं मरे हुए आदमी का क्रेडिट नहीं छीनूंगा.

पाकीजा का एक सीन
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अंत में 12 में से 6 गानों के साथ पाकीजा रिलीज हुई. फिल्म के म्यूजिक ने इतिहास बनाया. मगर उस साल बेस्ट म्यूजिक का फिल्म फेयर मिला 'बेईमान' फिल्म के लिए शंकर-जयकिशन को. इस फैसले से बेईमान में विलेन का रोल करने वाले प्राण इतना नाराज हुए कि उन्होंने ‘बेईमान’ के लिए मिला अपना अवॉर्ड वापस कर दिया.

पाकीजा का एक सीन
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क्या थी फिल्म की कहानी?
पाकीजा का अर्थ होता है पवित्र. फिल्म में ये शब्द मीना कुमारी के किरदार के लिए इस्तेमाल किया गया है जो कि एक कोठे में काम करके अपनी जिंदगी बिता रही है. वो अपने इर्द-गिर्द बुने गए इस जाल को तोड़ पाने में नाकाम रहती हैं.

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मीना कुमारी
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जब वह बड़ी होती हैं तो साहिबजान कोठेवाली के नाम से मशहूर हो जाती है. नवाब सलीम अहमद खान साहिबजान की सुंदरता और मासूमियत पर मर मिटता है और उसे अपने साथ, भाग चलने के लिए राजी कर लेता है.

मीना कुमारी
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इसके आगे की कहानी दोनों की मोहब्बत की दास्तां सुनाती है. क्या दोनों की मोहब्बत मुकम्मल हो पाई? अगर नहीं तो क्या वजह रही? अगर हां तो ये सब किस तरह हुआ यही फिल्म की कहानी है.

मीना कुमारी
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[Image Source: Instagram]

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