मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी रहे बीजेपी नेता संगीत सोम एक बार फिर से सुर्खियों में हैं. उनकी गाड़ी से भड़काऊ चुनाव प्रचार सामग्री मिलने के बाद उनके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है. लेकिन जानकारों का मानना है कि आने वाले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ऐसे और भी मामले सामने आ सकते हैं.
जीत दोहराने का दबाव
इस कयास के पीछे सबसे बड़ी वजह है कि बीजेपी पर 2014 की जीत को दोहराने का दबाव. पिछले आम चुनाव में पार्टी ने राज्य की 80 में से 71 सीटें जीती थीं. विधानसभा के हिसाब से देखा जाए तो ये 403 में से 337 सीटें बनती हैं. जाहिर है यूपी की पेचीदा सियासत में इतनी बड़ी जीत कोई आसान काम नहीं है. खासकर तब जब समाजवादी पार्टी ने आपसी कलह के बाद अब गठबंधन की सियासत की अपना ली है. बीजेपी की बड़ी चिंताओं में मुस्लिम मतदाताओं के समाजवादी पार्टी की तरफ गोलबंद होने की संभावना भी है.
गठबंधन बिगाड़ेगा बीजेपी का खेल?
पश्चिमी यूपी में समाजवादी पार्टी कुछ खास मजबूत नहीं है. बदायूं को छोड़कर इस इलाके के ज्यादातर जिलों में पार्टी के सबसे मजबूत समर्थक यादवों की आबादी बहुत कम है. मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, हापुड, मथुरा, बागपत, नोएडा और गाजियाबाद जैसे जिले जाटों का गढ़ माने जाते हैं. इन जगहों के शहरी इलाकों में बीजेपी की पहले से अच्छी पैठ है. परिवार के झगड़े से उबर कर अखिलेश यादव कांग्रेस और छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन को आखिरी रूप दे रहे हैं.
लेकिन बीजेपी के रणनीतिकारों को चिंता है कि छोटी पार्टियों को साथ लाने से समाजवादी पार्टी का घटता सियासी ग्राफ पलट सकता है. कांग्रेस के साथ आने से पार्टी ज्यादातर जगहों पर बीजेपी को टक्कर देने की हालत में होगी. दोनों पार्टियों का गठजोड़ जीत के लिए बेहद अहम मुस्लिम वोट बैंक को भी एकजुट करेगा. बीजेपी आस लगाए बैठी थी कि मुस्लिमों का समर्थन समाजवादी पार्टी, बीएसपी और कांग्रेस के बीच बंट जाएगा और इसका सीधा फायदा उसे पहुंचेगा. अगर पश्चिमी यूपी में ये गणना गलत साबित हुई तो यही ट्रेंड पूरे प्रदेश में देखने को मिल सकता है.
कांग्रेस फैक्टर
कांग्रेस भले ही लोकसभा चुनाव में सिर्फ दो ही सीट जीत पायी हो, लेकिन लखनऊ, कानपुर, बाराबंकी, गाजियाबाद, सहारनपुर जैसी कई सीटों पर उसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे. अगर पार्टी का वोटबैंक अखिलेश यादव की अगुवाई वाले गठबंधन को समर्थन देता है तो बीजेपी की मुश्किल बढ़ जाएगा. बीजेपी को ये भी चिंता है कि नोटबंदी का असर शहरी वोटरों, खासकर कारोबारियों के वोट पर पड़ सकता है.