बीजेपी को यूपी की जंग जिताने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी ने जहां पूरा जोर लगा रखा है वहीं बीजेपी के अपने 'गांधी' हानिकारक साबित होते दिख रहे हैं. हम बात कर रहे हैं वरुण गांधी की. चुनाव प्रचार के दौरान वे यूपी में मौन रहे लेकिन चौथे चरण के मतदान के ठीक पहले इंदौर में वरुण गांधी कांग्रेस नेता के कार्यक्रम में शामिल हुए. वहां वरुण ने बयानों के ऐसे तीर छोड़े जो बीजेपी और मोदी सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर सकती है. यूपी के चुनावी समर में राहुल और अखिलेश के बाद वरुण का नंबर तीसरे पायदान पर आता है और इस वजह से कुछ लोग इन्हें यूपी का तीसरा लड़का भी कहते हैं. आखिर क्या है वरुण की पार्टी में नाराजगी की वजह?
चुप्पी तोड़ी, मोदी सरकार की दुखती रग पर रखा हाथ
पीलीभीत के सांसद और बीजेपी के युवा नेता वरुण गांधी ने अपनी लंबी चुप्पी तोड़ दी है. वो मंगलवार को इंदौर के एक स्कूल में 'विचार नए भारत का' का विषय पर बोलने के लिए पहुंचे थे. इस विषय पर बोलते हुए वरुण गांधी ने हर उस विषय पर अपनी बात रखी जिसपर अबतक केंद्र की मोदी सरकार विपक्षी पार्टियों से घिरती रही है. वरुण गांधी ने हैदराबाद के दलित पीएचडी छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या, अल्पसंख्यकों की बढ़ती मुश्किलें, किसानों की आत्महत्या और विजय माल्या का विदेश भाग जाना सहित बढ़ती जीडीपी की हकीकत के बारे में भी अपनी बात रखी. ऐसा माना जा रहा है कि ये सारे के सारे वो मुद्दे हैं जिनपर केंद्र की बेजेपी सरकार घिरती रही है. राजनीतिक पंडितों की मानें तो वरूण अपने बयान से यूपी में बीजेपी लिए मुश्किलों की दीवार खड़ी कर रहे हैं.
'वरुण गांधी स्वतंत्र विचार रखते है, RSS का बैकग्राउंड नहीं'
जानकार ऐसा कहते हैं कि वरुण गांधी का आरएसएस से कोई जुड़ाव नहीं है. वो मुद्दों पर स्वतंत्र राय भी रखते हैं. पार्टी की कमान जब राजनाथ सिंह के हाथों में थी तो वरुण की स्थिति पार्टी में अच्छी थी. लेकिन जैसे ही पार्टी की कमान अमित शाह के हाथों में गई वरुण गांधी को पार्टी से किनारा किया जाने लगा. कुछ महीनों पहले एक न्यूज वेबसाइट से बात करते हुए राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे ने कहा था, ’वरुण गांधी की संघ की पृष्ठभूमि नहीं है. वह स्वतंत्र रूप से सोचने वाले व्यक्ति हैं. मोदी और शाह की बीजेपी उत्तर प्रदेश में किसी मज़बूत नेतृत्व को विकसित नहीं करना चाहती है.’
खुद को पार्टी में किनारा किए जाने से हैं दुखी
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और अमित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद से ही वरुण गांधी को पार्टी में किनारा किया जाने लगा. 2014 में बीजेपी ने वरुण को राष्ट्रीय महासचिव के पद से हटा दिया था. 12 जून 2016 को इलाहाबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान वरुण ने पार्टी नेताओं के सामने शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की जो अमित शाह और मोदी को रास नहीं आई. पार्टी ने इस विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में उन लोगों के टिकट काटे जो किसी न किसी तरह से वरुण गांधी के करीबी थे. पार्टी ने उन्हें स्टार प्रचारकों के अपने पहले लिस्ट में शामिल नहीं किया. दूसरे लिस्ट में वरुण का नाम सामने आया. इसे भी नाराजगी की वजह माना जा रहा है. कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि वरुण बहुत पहले से पार्टी छोड़ने का मन बना चुके हैं. ऐसे में वरुण गांधी यूपी चुनाव के दौरान हर वो काम कर सकते हैं जिससे पार्टी कमजोर हो.
बीजेपी भी वरुण को नहीं मानती अपना

अपने इलाके में प्रभावी हैं वरुण
यूपी के इस चुनाव में 45 उम्मीदवारों के टिकट इस वजह से कटे हैं कि वो वरुण के करीबी हैं. ये सारे के सारे उम्मीदवार निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. जाहिर है कि इससे पार्टी को नुकसान होगा. ये सारे के सारे बीजेपी के विधायक हैं. इन उम्मीदवारों को चुनाव जीतवाने के लिए वरुण पूरी कोशिश कर रहे हैं. यह भी माना जाता है कि वरुण गांधी इन इलाकों में खासे प्रभावी हैं.