यूपी के बहराइच जिले की सबसे पुरानी तहसील है नानपारा. नानपारा नगरपालिका क्षेत्र भी है और इसी के नाम पर है नानपारा विधानसभा सीट. अंग्रेजों के समय नेपालगंज की ओर उत्तर दिशा से आने वाली मैलानी (लखीमपुर) और उत्तर पश्चिम दिशा से आने वाली मीटर गेज रेल लाइन से जुड़े नानपारा में रेलवे जंक्शन भी है. बहराइच के बाद नानपारा ही जिले का सबसे बड़ा शहरी क्षेत्र है.
नानपारा को जिला बनाने की मांग भी होती रही है. नानपारा बहराइच लोकसभा क्षेत्र के तहत आता है. इस विधान सभा क्षेत्र के तहत बलहा और शिवपुर के आंशिक इलाकों के साथ ही नवाबगंज विकास खंड के इलाके आते हैं. नानपारा विधानसभा सीट बहराइच जिले की सबसे पुरानी और महत्वपूर्ण विधानसभा सीट में से एक है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
नानपारा विधानसभा सीट के सियासी अतीत की बात करें तो यहां एक समय भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का भी वर्चस्व रहा है. नानपारा विधानसभा सीट के मतदाताओं ने 1977 से 2017 तक समाजवादी पार्टी को छोड़कर लगभग हर दल के उम्मीदवार को विधानसभा में अपने प्रतिनिधित्व का मौका दिया है. इस सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार में मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह को काफी लगाव रहा.
नानपारा सीट से 1977 और 1993 में भाकपा के फजलुर्रहमान अंसारी चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. 1980, 1991, 1996 और 2002 में इस सीट से बीजेपी के जटाशंकर सिंह, 1985 और 1989 में कांग्रेस और जनता दल के टिकट पर देवता दीन, 2007 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के वारिस अली विधायक निर्वाचित हुए. निवर्तमान विधायक माधुरी वर्मा 2012 में कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुईं थीं.
2017 का जनादेश
नानपारा विधानसभा सीट से 2017 के विधानसभा चुनाव में नौ उम्मीदवार मैदान में थे. चुनाव से पहले 2012 में कांग्रेस के टिकट पर जीतीं माधुरी वर्मा पाला बदलकर बीजेपी में आ गईं. बीजेपी के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरी माधुरी वर्मा ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी सपा और कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी वारिस अली को करीब 19 हजार वोट के अंतर से हरा दिया था. बसपा के अब्दुल वाहिद तीसरे स्थान पर रहे.
विधायक का रिपोर्ट कार्ड
नानपारा विधानसभा सीट से विधायक माधुरी वर्मा का दावा है कि 2017 से अब तक सड़क निर्माण में काफी तीव्र गति से कार्य हुआ है. इमामगंज से शिवपुर ब्लॉक तक 19 करोड़ की लागत से सड़क चौड़ीकरण, नानपारा से नवाबगंज तक ढाई करोड़ की लागत से सड़क मरम्मत, तीन करोड़ की लागत से सरदार पुरवा से डल्ला पुरवा तक नई सड़क का निर्माण समेत कई सड़कों का निर्माण और मरम्मत कराया गया.
पूर्व विधायक दिलीप वर्मा की पत्नी माधुरी वर्मा की छवि दलबदलू नेता की रही है. 2010 से 2012 के बीच माधुरी वर्मा पहली बार बहराइच श्रावस्ती क्षेत्र से बसपा समर्थित उम्मीदवार के रूप में विधान परिषद सदस्य निर्वाचित हुई थीं तो 2012 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा सदस्य. 2017 में बीजेपी से विधानसभा पहुंचीं तो इस दफे पार्टी नहीं छोड़ी है लेकिन सपा के करीब नजर आ रही हैं.
माधुरी वर्मा को लेकर कहा जाता है कि इनकी राजनीतिक दिशा और दशा दिलीप वर्मा ही तय करते हैं. माधुरी वर्मा को अपने पति दिलीप वर्मा की विवादित कार्यशैली के चलते सीएम योगी की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा है. दरअसल 16 नवम्बर 2018 को दिलीप वर्मा ने एक मामले में नानपारा में दलित तहसीलदार मधुसूदन आर्य को उनके चैम्बर में थप्पड़ जड़ दिया था. जब मामले ने तूल पकड़ा तो नानपारा कोतवाली में मौजूद एडीएम और एडिशनल एसपी के सामने ही नानपारा पुलिस क्षेत्राधिकारी पर भी हमला कर दिया.
सपा के टिकट पर चुनाव लड़ सकती हैं माधुरी
इन घटनाओं को लेकर दिलीप वर्मा के खिलाफ मामला दर्ज हुआ और उन्हें जेल भी जाना पड़ा. इसके बाद से दिलीप वर्मा बीजेपी के लिए गले की हड्डी बने हुए थे लेकिन नानपारा क्षेत्र में उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता के चलते बीजेपी उनके खिलाफ कोई कदम उठाने से कतराती रही. जिला पंचायत चुनाव में बीजेपी से किनारा कर दिलीप वर्मा ने बीजेपी समर्थित उम्मीदवार के सामने अपनी पुत्री को निर्दलीय चुनाव मैदान में उतार दिया. दिलीप वर्मा ने पार्टी में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी मांगी जिसके बाद बीजेपी ने अनुशासनहीनता के आरोप में उन्हें पार्टी की सदस्यता से निलंबित कर दिया.
दिलीप वर्मा इसके बाद सपा में शामिल हो गए जिसके बाद माधुरी वर्मा ने भी बीजेपी से किनारा कर लिया. माधुरी वर्मा बिना इस्तीफा दिए ही अघोषित रूप से सपा की सदस्यता ले ली है. माधुरी वर्मा के इस दफे सपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरने के कयास लगाए जा रहे हैं. विधायक माधुरी वर्मा जनसंख्या नियंत्रण के प्रस्तावित मसौदे के दौरान भी सुर्खियों में रही थीं. इनके सात बच्चे हैं.