हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह राज्य के ऐसे दिग्गज नेता हैं जिन्हें ना भ्रष्टाचार के आरोपों से शिकस्त मिली न ही कांग्रेस के आपसी मतभेद से नुकासान हुआ. अपने जबरदस्त प्रचार अभियान के बाद वीरभ्रद कांग्रेस को राज्य में फिर सत्ता में वापस ले आये हैं.
वीरभद्र छठी बार राज्य के मुख्यमंत्री बनने के लिये तैयार हैं. ऐसा हुआ तो यह उनका एक रिकार्ड होगा.
अपने पांच दशकों के राजनीतिक करियर में वीरभद्र सात बार विधायक, पांच बार संसद सदस्य और पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं.
वह चार बार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं और मौजूदा लोकसभा में मंडी ससंदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. वीरभद्र 1983 से 1985, 1985 से 1990, 1993 से 1998 और 2003 से 2007 ते मुख्यमंत्री रह चुके हैं. आज उन्होंने जीत दर्ज करने के बाद कहा, ‘ कांग्रेस अध्यक्षा ही तय करेंगी कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा.’
वीरभद्र के लिये यह चुनाव उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी चुनौती थी. उनके लिये यह आर या पार की लड़ाई थी क्योंकि वह अकेले मैदान में थे जिन पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगाये जा रहे थे. मतभेद की शिकार हुयी हिमाचल कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में उस समय जीत दर्ज की है जब केंद्र में पार्टी पर भ्रष्टाचार और महंगाई को लेकर हमले हो रहे हैं.
राजनीतिक कद्दवार सिंह पर भी चुनाव से ठीक पहले व्यक्तिगत रूप से भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गये थे. उनके विरोधी सुखराम भी अब उनके समर्थन में आ गये हैं. उन्हंे 2009 में केंद्रीय मंत्री बनाया गया था.
हालांकि वीरभद्र के लिये विवाद और संघर्ष नये नहीं है. वीरभद्र के पुत्र विक्रमादित्य को राज्य युवा कांग्रेस का प्रमुख बनाया जाना रद्द कर दिया गया था.