एमसीडी चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार और बीजेपी की हैट्रिक ने आम आदमी पार्टी के लिए भविष्य की राजनीति मुश्किल कर दी है.
हालांकि, अभी विधानसभा चुनाव में करीब 3 साल बचे हैं, लेकिन आने वाले समय में केजरीवाल बीजेपी और कांग्रेस के निशाने पर होंगे ही, साथ ही अपनों के सवालों के जवाब भी उनको देने पड़ सकते हैं.
मुख्यमंत्री केजरीवाल अक्सर एमसीडी के कामकाज और भ्रष्टाचार को लेकर बीजेपी पर आरोप लगाते रहे हैं. केंद्र सरकार को निशाने पर लेते रहे हैं, लेकिन जिस ढंग से एमसीडी चुनाव में बीजेपी भारी बहुमत से जीती है और आम आदमी पार्टी की करारी हार हुई है, उससे केजरीवाल कि दिल्ली में चुनौतियां बढ़ी हैं.
केजरीवाल दिल्ली में काम न होने के लिए एमसीडी और केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराते थे और एमसीडी में भ्रष्टाचार का मुद्दा लेकर चुनाव में भी हो गए थे. केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में बीजेपी ने कोई काम नहीं किया है और उन्होंने खुद के काम को जनता के सामने रखा, लेकिन जनता ने केजरीवाल के दावों और तर्कों को नकार कर बीजेपी को फिर से एमसीडी की सत्ता सौंपी है.
मतलब साफ है कि केजरीवाल को अपनी रणनीति दुबारा बनानी पड़ेगी. उन्हें सोचना पड़ेगा कि आखिर क्या हुआ कि जिस जनता ने 2015 के विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को छप्पर फाड़ कर वोट दिया था, आखिर आज वही जनता केजरीवाल की बातों पर विश्वास क्यों नहीं कर रही है.
यह अलग बात है कि केजरीवाल और उनकी पार्टी के नेता यह कतई मानने को तैयार नहीं है कि उनको जनता ने हराया है. वह आज भी इसी बात को दोहरा रहे थे की BJP की जीत में ईवीएम का कमाल है. लेकिन BJP केजरीवाल की राजनीति को नकारात्मक बता रही है.
बीजेपी के तमाम बड़े नेता चाहे अमित शाह हों या दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी उन सभी ने केजरीवाल की हार के लिए उनकी नकारात्मक राजनीति को जिम्मेदार बताया है.
उनका कहना है कि केजरीवाल ने दिल्ली की जनता के साथ धोखा किया, कोई काम नहीं किया. खाली झूठे वादे किए. दिल्ली की जनता को उनके हाल पर छोड़ दिया. यही वजह रही कि अब दिल्ली की जनता का केजरीवाल से मोहभंग हो गया है. अब केजरीवाल के दिल्ली से दिन लद गए हैं. यह केजरीवाल सरकार पर रेफरेंडम है.
उनको राइट टू रिकॉल के तहत इस्तीफा दे देना चाहिए. इतना नहीं पार्टी के भीतर भी केजरीवाल पर सवाल उठ रहा है. पार्टी सांसद भगवंत मान ने भी हार पर सवाल उठाया है. पार्टी के पुराने साथी कुमार विश्वास भी पार्टी की स्टाइल ऑफ फंक्शन से नाराज बताए जा रहे हैं. उधर दिल्ली आम आदमी पार्टी के संयोजक दिलीप पांडे ने हार की जिम्मेदारी लेते हुए संयोजक पद से इस्तीफा दे दिया.
पंजाब से आम आदमी पार्टी के सांसद भगवान मान ने कहा है कि की पार्टी को अपनी रणनीति को देखना चाहिए, ईवीएम ने नहीं बल्कि हमें खुद ने हराया है.
अन्ना हजारे ने भी आम आदमी पार्टी की हार के लिए पार्टी की कथनी और करनी में फर्क बताया है. इस हार से केजरीवाल चौतरफा घिरते जा रहे हैं. ऊपर से उनकी पार्टी के 21 विधायकों के डिसक्वालिफिकेशन का मामला चुनाव आयोग में लंबित है.
बीजेपी ने अपनी रणनीति साफ कर दी है कि उनका अगला मिशन दिल्ली के विधानसभा चुनाव है. पहले राजौरी गार्डन उपचुनाव की जीत और अब एमसीडी चुनावों में मिली हैट्रिक के बाद बीजेपी केजरीवाल को घेरने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देंगी.
पार्टी को लगता है कि अब विधानसभा चुनाव तक केजरीवाल के खिलाफ माहौल बना कर रखा जाए, ताकि विधानसभा चुनाव में केजरीवाल के हाथ से सत्ता चली जाए.
बीजेपी की रणनीति और पार्टी के भीतर से उठे सवालों को देखते हुए यह साफ है कि अब केजरीवाल के सामने आने वाले समय में चुनौतियां कम नहीं होगी. इन तमाम चुनौतियों के बावजूद अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या केजरीवाल अपने तमाम विधायकों को एकजुट रख पाएंगे और क्या 5 साल तक आसानी से सरकार चला पाएंगे...