छह दशकों के इतिहास में मथुरा संसदीय सीट ने किसी भी महिला प्रत्याशी के सर जीत का सेहरा नहीं बांधा है. इसबार नमो लहर में ग्लैमर की नाव पर सवार हेमा मालिनी ने अगर चुनावी सागर पार कर लिया, तो वो यहां से जीतने वाली पहली महिला प्रत्याशी होंगी.
मथुरा के मतदाताओं ने कभी महिला प्रत्याशी को संसद तक नहीं पहुंचाया. ये क्षेत्र पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की कर्मभूमि रही है. फिर भी 1984 में यहां से लोकदल के टिकट पर चुनावी दंगल में उनकी पत्नी गायत्री देवी हार गईं. कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह ने उन्हें एक लाख वोटों के अंतर से हराया. ये इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर का दौर था जिसमें लोकदल के सारे समीकरण बह गए.
दो दशक बाद 2004 में मथुरा सीट से चौधरी चरण सिंह की बेटी और पार्टी अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह की बहन डॉक्टर ज्ञानवती ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल के टिकट पर भाग्य आजमाया. रालोद और समाजवादी पार्टी में गठबंधन के बावजूद ज्ञानवती हार गईं. उन्हें हराने वाले भी कांग्रेस के मानवेंद्र सिंह ही थे.
इससे पहले 1996 में निर्दलीय ललतेश शर्मा चार अंकों में भी वोट नहीं जुटा पाई थीं.
वही 1999 में निर्दलीय कटोरी देवी को सिर्फ 1,410 वोट मिले.
इसबार हेमा मालिनी के सामने जीतना ही नहीं, इस सीट का इतिहास बदलने की भी चुनौती है. वहीं रालोद अपने प्रत्याशी जयंत चौधरी के चुनाव प्रचार की कमान उनकी पत्नी चारु को सौंपने पर विचार कर रहा है.