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शिवसेना का गढ़ है बुलढाणा लोकसभा सीट, क्या इस बार कायम रहेगी सत्ता

बुलढाणा लोकसभा ऐसी सीट थी जहां कभी सीट एक हुआ करती थी और सांसद दो थे. दरअसल, आजादी के बाद देश में हुए पहले दो आम चुनावों में विदर्भ के भंडारा, अकोला व बुलढाणा निर्वाचन क्षेत्रों से एक साथ दो-दो सांसद निर्वाचित होते थे. इसमें एक खुले प्रवर्ग से व एक आरक्षित (अनुसूचित जाति) वर्ग से चुने जाते थे.

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बुलढाणा लोकसभा सीट पर दो दशकों से जीतती आ रही है शिवसेना.
बुलढाणा लोकसभा सीट पर दो दशकों से जीतती आ रही है शिवसेना.

महाराष्ट्र के विदर्भ में आने वाली बुलढाणा लोकसभा सीट पिछले दो दशकों से शिवसेना का गढ़ रही है. यहां से 2014 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना की टिकट पर प्रताप राव जाधव चुनाव जीतकर सांसद बने थे. उन्होंने यहां पर एनसीपी के प्रत्याशी कृष्ण राव इंगले को चुनाव हराया था.

मालूम हो कि प्रताप राव जाधव बुलढाणा लोकसभा सीट से लगातार दो बार जीतकर आ रहे हैं. इस बार भी शिवसेना उन्हें मैदान में उतार सकती है. वहीं, एनसीपी लगातार दो बार चुनाव में हार झेलने के बाद नए प्रत्याशी पर दांव खेल सकती है. गौरतलब है कि महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी 50:50 के फार्मूले पर चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस व राकांपा अपने हिस्से में से मित्र दलों के लिए कुछ सीटें छोड़ेंगे. इनमें बुलढाणा लोकसभा सीट भी शामिल है. एनसीपी इस बार यहां से मजबूत प्रत्याशी चुनाव में उतार सकती है.

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क्या रहा है सीट का इतिहास....

बुलढाणा लोकसभा सीट लगभग 40 से ज्यादा वर्ष तक कांग्रेस का गढ़ रही है. यहां सबसे पहले चुनाव 1951 में हुआ था उस वक्त यहां एक सीट से दो सांसद गोपालराव बाजीराव खेडकर और लक्ष्मण भातकर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. मालूम हो कि गोपालराव बाजीराव खेडकर महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के पहले अध्यक्ष भी थे.

आपको बता दें कि बुलढाणा लोकसभा ऐसी सीट थी जहां कभी सीट एक हुआ करती थी और सांसद दो थे. दरअसल, आजादी के बाद देश में हुए पहले दो आम चुनावों में विदर्भ के भंडारा, अकोला व बुलढाणा निर्वाचन क्षेत्रों से एक साथ दो-दो सांसद निर्वाचित होते थे. इसमें एक खुले प्रवर्ग से व एक आरक्षित (अनुसूचित जाति) वर्ग से चुने जाते थे.

इसी वजह बुलढाणा से पहले आम चुनाव में ही दो सांसद निर्वाचित हुए. 1952 में आरक्षित वर्ग से लक्ष्मण भातकर व खुले प्रवर्ग से कांग्रेस के गोपालराव खेड़कर चुनाव जीते थे. 1957 में हुए दूसरे आम चुनाव में बुलढाणा से आरक्षित सीट खत्म कर दी गई.

इसके बाद 1957 के लोकसभा चुनाव में शिवराम रांगो राणे चुनाव जीतकर आए. इसके बाद वो 1962, 1967 में भी चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे. लेकिन शिवराम रांगो राणे के 1970 में निधन के बाद यहां दोबारा लोकसभा चुनाव हुए. इस बार भी यहां कांग्रेस जीतकर आई और वाय एस शिवराम जीतकर लोकसभा पहुंचे. वो यहां से 1971 में भी फिर चुनाव जीते.

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जब 30 साल में पहली बार हारी यहां कांग्रेस....

1977 के लोकसभा चुनाव में रिपब्लिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (खोब्रागड़े) ने कांग्रेस के जीत का सिलसिला तोड़ा और यहां पहली बार दौलत गुंजाजी गवई चुनाव जीते. हालांकि, इसके अगले ही लोकसभा चुनाव यानि कि बालचंद्र रामचंद्र वासनिक कांग्रेस को यहां जीत दिलाने में कामयाब रहे. उनके बाद बेटे मुकुल वासनिक कांग्रेस की टिकट से 1984 में यहां से चुनाव जीते.

बस एक ही बार जीती बीजेपी...

1989 में यह सीट बीजेपी ने पहली बार फतह की. सुखदेव नानाजी काले यहां से चुनाव जीतकर पहुंचे. हालांकि, 1991 में मुकुल वासनिक यहां दोबारा जीते और कांग्रेस की वापसी कराई. इस बार बीजेपी यहां कोई कमाल नहीं कर पाई.

शिवसेना का उदय...

1996 में शिवसेना के आनंदराव विठोबा अडसुल बुलढाणा लोकसभा सीट पर पहली बार जीतकर आए और इस सीट पर सेना का खाता खोला. शिवसेना ने यहां के विधानसभा क्षेत्रों में भी पैर पसारे. लेकिन 1998 के चुनाव में मुकुल वासनिक ने बाजी पलटते हुए चुनाव जीता. यह शिवसेना की यह पहली हार थी.

शिवसेना ने इस सीट पर आनंदराव विठोबा अडसुल को दोबारा उतारकर दांव खेला. उन्होंने 1999, 2004 में जीत दर्ज की. इसके बाद आनंदराव विठोबा अडसुल ने अमरावती की सीट संभाली और 2009 में यहां प्रताप राव जाधव खड़े हुए. उन्होंने 2009 और 2014 में लगातार इस सीट से जीत हासिल की.

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क्या है विधानसभा क्षेत्रों की स्थिति...

बुलढाणा लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीट आती है. इसमें बुलढाणा और चिखली विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्ज़ा है. वहीं, सिंधखेड राजा और मेहकर विधानसभा सीट पर शिवसेना और खामगांव और जलगांव जामोद सीट पर बीजेपी का कब्जा है.

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