कीर्तिवर्धन भागवत झा आजाद को लोग कीर्ति आजाद के नाम से पुकारते हैं. कीर्ति ने एक क्रिकेट खिलाड़ी से राजनेता तक का सफर तय किया है. उनका जन्म बिहार के पूर्णिया जिले 2 जनवरी 1959 को हुआ था. लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई दिल्ली में पूरी की और राजनीति में कदम भी दिल्ली में ही रखा. 1993 में गोल मार्केट से विधायक बने कीर्ति फिलहाल दिल्ली में कांग्रेस के चुनाव प्रचार समिति के प्रमुख की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.
खूब हुई थी दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा
दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीली दीक्षित की मृत्यु के बाद प्रदेश अध्यक्ष की खाली कुर्सी की जिम्मेदारी मिलने की रेस में कीर्ति आजाद का नाम काफी आगे था. उनके साथ यहां भी बिहार फैक्टर काम कर रहा था. शीर्ष नेतृत्व को उम्मीद थी कि वे मनोज तिवारी के खिलाफ बेहतर नाम हो सकते हैं. लेकिन कांग्रेस के कुछ धड़ों को यह नागवार था कि कोई 'बाहरी' उस कुर्सी पर काबिज हो. शायद यही वजह थी कि सोनिया गांधी ने काफी विचार-विमर्श के बाद सुभाष चोपड़ा के नाम पर अपनी मुहर लगाई.
विश्व विजेता टीम के सदस्य रहे हैं कीर्ति आजाद
कीर्ति आजाद के क्रिकेट करियर बात हो तो 1983 विश्वकप के बिना वह पूरी नहीं हो सकती. कीर्ति 1983 की वर्ल्ड कप विजेता टीम के सदस्य रहे हैं. इंग्लैंड और पाकिस्तान के खिलाफ शानदार पारी खेले जाने के बाद वे काफी लोकप्रिय हो गए थे. कीर्ति एक फेमस क्रिकेट कमेंटेटर भी हैं. कीर्ति की रुचि सामाजिक कार्यों में भी काफी रही है. वे 'कर्म सामाजिक कल्याण संगठन' के संस्थापक सदस्य भी हैं.
कीर्ति आजाद को दिल्ली विधानसभा चुनावों में मिली है अहम जिम्मेदारी
राजनीति और क्रिकेट का कॉकटेल है आजाद परिवार
कीर्ति आजाद के पिता भागवत झा आजाद बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. भागवत झा 14 फरवरी 1988 से 10 मार्च 1989 तक बिहार की सत्ता संभाल चुके हैं. कीर्ति आजाद की पत्नी पूनम भी एक राजनेता हैं. पहले पूनम भी बीजेपी में थीं लेकिन बाद में 13 नवंबर 2016 को उन्होंने आम आदमी पार्टी का दामन थामा.
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आप में उनका सफर ज्यादा लंबा नहीं रहा और आखिरकार पूनम ने 11 अप्रैल 2017 को कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली. पूनम के कांग्रेस में आने के बाद कई कीर्ति के कांग्रेस में जाने की अफावह उड़ती रही जो आखिरकार 2019 में सच साबित हुई. कीर्ति आजाद के दो बेटे हैं सूर्यवर्धन और सौम्यवर्धन. कीर्ति के दोनों बेटे भी अपने पिता की ही तरह क्रिकेट खेल रहे हैं.
कीर्ति ने दिल्ली से ही रखा था राजनीति में कदम
कीर्ति आजाद ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 1993 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के जरिए गोल मार्केट सीट से की थी. आजाद ने उस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार बृज मोहन भामा को हराया था. इसके बाद कीर्ति ने अपनी जन्मभूमि बिहार की तरफ रुख किया. बीजेपी ने 1999 के आम चुनावों में दरभंगा लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया था. उस चुनाव में कीर्ति ने कमाल दिखाते हुए उस सीट से लगातार तीन बार सांसद रहे मोहम्मद अली अशरफ फातमी को 5 हजार से ज्यादा वोटों से धूल चटा दी थी.
कीर्ति आजाद अपने बयानों को लेकर कई बार विवादों में भी पड़ चुके हैं
इस वजह से दरभंगा में मिलता रहा लोगों का प्यार
1999 की जीत के बाद 2004 में बीजेपी ने एक बार फिर उन पर दांव खेला लेकिन इस बार जनता ने उनके बजाय पूर्व सांसद अशरफ फातमी को ही चुना. इसके बाद अगले दो आम चुनावों (2009 और 2014) में कीर्ति आजाद ही दरभंगा के सांसद चुने गए. इन दोनों चुनावों में भी उनके नजदीकी प्रतिद्वंदी कोई और नहीं बल्कि मोहम्मद अली अशरफ फातमी ही रहे. दरभंगा को सीट चुनने के पीछे बड़ी वजह यह मानी जाती रही है कि वहां उनका ससुराल है. और शायद इस बात का फायदा भी उन्हें लगातार मिलता रहा.
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जेटली का विरोध करना कीर्ति को पड़ गया था भारी
31 अगस्त 2009 को कीर्ति को मानव संसाधन विकास समिति का सदस्य भी मनोनीत किया गया था. इसके बाद 9 जून 2013 से उन्हें गृह समिति का सदस्य भी बनाया गया था. 23 दिसंबर 2015 को दिल्ली क्रिकेट एसोसिएशन में कथित अनियमितताओं के सिलसिले में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ आरोप लगाने के लिए बीजेपी से उन्हें निलंबित कर दिया गया था. जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस का हाथ थामने का फैसला लिया. कीर्ति आजाद ने 18 फरवरी 2019 को कांग्रेस की सदस्यता ले ली थी.