बिहार विधानसभा चुनाव में नेपाल की खास दिलचस्पी रहती है. देश अलग है, लेकिन राजनीतिक उलटफेर पर नेपालियों का खास ध्यान रहता है. वैसे कहा तो ये जाता है कि नेपाल और बिहार के लोगों की एक दूसरे के यहां रिश्तेदारियां हैं. वैवाहिक संबंध भी होते हैं, लेकिन राजनीति में दिलचस्पी का कारण कुछ और ही है. जानकारों की मानें तो बिहार की राजनीति का नेपाल से व्यापारिक संबंधों पर असर दिखाई देता है, यही कारण है कि नेपाल का व्यापारी वर्ग बिहार चुनाव पर नजर बनाए रखता है.
नेपाल से है बेटी-रोटी का संबंध
बिहार और नेपाल के बीच बेटी-रोटी का संबंध कहा जाता है. बिहार के नेपाल सीमा से सटे इलाकों में भाषा, संस्कृति दोनों जगहों की एक जैसी ही है. ऐसा माना जाता है कि बिहार की राजनीति में सक्रिय अपने रिश्तेदारों को नेपाल के लोग मदद भी करते हैं. हालांकि इस मदद का बखान कभी खुलकर नहीं किया जाता है. बिहार नेपाल सीमा के रक्सौल से सटे बीरगंज उघोग वाणिज्य संघ के अध्यक्ष गोपाल केडिया ने बताया कि उनकी शादी बिहार से हुई है. इस वजह से वहां की राजनीति में दिलचस्पी रहती है.
कोरोना के चलते सीमाएं बंद हैं, लेकिन सोशल मीडिया आदि के माध्यम से वहां के चुनाव की जानकारी लेते रहते हैं. उन्होंने कहा कि बिहार से व्यापार भी होता है. ऐसे में बिहार सरकार के नीति निर्धारण से व्यापारिक लाभ और हांनि भी होती रहती है. यही वजह है कि बिहार में सरकार किसकी बनेगी, ये जानने के लिए उत्सुकता रहती है.
नेपाल के व्यापारी पर टिकट दिलाने का आरोप
रक्सौल में विधानसभा चुनाव तीसरे चरण में होना है. नामांकन प्रक्रिया 13 अक्टूबर से शुरू हो चुकी है. टिकट को लेकर दौड़ शुरू हो गई है. इस बीच कुछ दिन पहले ही नेपाल के व्यापारी अशोक वैद्य का नाम तेजी से उछला. आरोप था कि नेपाली व्यापारी द्वारा अपने एक व्यक्ति को टिकट दिलाने के लिए साढ़े तीन करोड़ रुपये में बात की गई है.
हालांकि इस मामले में पुष्टि किसी भी स्तर से नहीं हो सकी. जब इस बारे में अशोक वैद्य से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि मैं एक व्यापारी हूं. कोई प्रत्याशी जीते या हारे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है. इतना जरूर है कि यदि व्यापारी का हित देखने वाली पार्टी सत्ता में आई, तो व्यापारी का दर्द जरूर समझेगी.
(रिपोर्ट: गणेश शंकर)
ये भी पढ़ें: