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मनोज जरांगे के 'यूटर्न' से किसे फायदा, किसे नुकसान? जानिए महाराष्ट्र के सियासी समीकरण

मीडिया से बातचीत करते हुए मनोज जरांगे पाटील ने कहा, “एक समाज के बल पर हम चुनाव नहीं लड़ सकते. मुस्लिम और दलित समुदाय के नेताओं से हमने उम्मीदवारों की लिस्ट मांगी थी, लेकिन वह नहीं मिल पाई, इसलिए इस चुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारेंगे.”

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मनोज जरांगे पाटिल (फाइल फोटो)
मनोज जरांगे पाटिल (फाइल फोटो)

महाराष्ट्र की राजनीति में एक्स फैक्टर के नाम से जाने जाने वाले मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटील ने चुनाव से खुद को अलग कर लिया है. इतना ही नहीं, उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को आदेश दिया है कि मराठा आंदोलन की तरफ से जिन्होंने भी नामांकन दाखिल किया था वह अपना तक नाम वापस लें. मनोज जरांगे पाटील की इस चाल से महायुति (बीजेपी,एनसीपी और शिवसेना गठबंधन) ज्यादा परेशान नजर आ रही है.

मीडिया से बातचीत करते हुए मनोज जरांगे पाटील ने कहा, “एक समाज के बल पर हम चुनाव नहीं लड़ सकते. मुस्लिम और दलित समुदाय के नेताओं से हमने उम्मीदवारों की लिस्ट मांगी थी, लेकिन वह नहीं मिल पाई, इसलिए इस चुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारेंगे.”

उन्होंने राजनीतिक नेताओं पर तंज कसते हुए कहा, “ राजनीति हमारा खानदानी धंधा तो नहीं है. हमने किसी भी पार्टी या नेता को सपोर्ट नहीं दिया है. जो 400 पार का नारा दे रहे थे, उनका क्या हुआ आपने देखा है. मराठा समुदाय का दबदबा कायम रहेगा इसमे कोई शक नहीं. आप सभी को चुपचाप जाना है और वोट कर के वापस आना है. मराठा समुदाय ने अपनी लाइन समझ लेनी चाहिए.” जो महाराष्ट्र की सियासत को जानते हैं उन्हे जरांगे पाटील की इस भाषा से काफी कुछ समझ आता है.

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जरांगे-पाटील चुनाव मे नहीं, तो फायदा किसे?
 
मनोज जरांगे पाटील मराठवाडा से आते है. मराठवाडा मे लोकसभा की 8 सीटे हैं. पिछले लोकसभा चुनाव मे जरांगे पाटील ने देवेंद्र फडणवीस औऱ बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोला था. इसका सबसे बडा नुकसान बीजेपी और शिंदे की शिवसेना को उठाना पडा. मराठवाडा की 8 लोकसभा सीटों मे से 7 सीटे महायुती हार गई. इतना ही नहीं, मराठवाडा से सटे विदर्भ के यवतमाल और पश्चिम महाराष्ट्र के सोलापुर, अहमदनगर और माढा लोकसभा चुनावक्षेत्र मे भी इसका असर दिखा और वहां भी बीजेपी को हार का सामना करना पडा. मराठा समुदाय का गुस्से को दलित और मुस्लिम समुदाय का भी साथ मिला था. और यह वोट बैंक महायुती के हार के लिए जिम्मेदार रही.
 
मनोज जरांगे उम्मीदवार खडे करते तो किसे नुकसान होता?
 
मनोज जरांगे पाटील के उम्मीदवार चुनाव में आए इसलिए महायुती के कुछ नेता जरुर प्रयासरत थे. क्योंकि उन्हें मराठा, दलित और मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगानी थी जिससे महाविकास आघाडी को नुकसान होता. अगर जरांगे पाटील के उम्मीदवार चुनाव मे आते तो मराठा, दलित और मुस्लिम वोटों का डिविजन होना तय था. अगर ऐसा होता, तो महाविकास आघाडी को इसका सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पडता. इसलिए मनोज जरांगे पाटील के चुनाव ना लडने के निर्णय पर शरद पवार ने भी खुशी जाहिर की है. उन्होने कहा, “ महाविकास आघाडी और जरांगे पाटील ने का चुनावी राजनीति से दूर रहना, इना कोई आपसी संबंध नहीं है. मुझे खुशी है कि उन्होंने यह निर्णय लिया. अगर उन्होंने उम्मीदवार उतारे होते तो उसका लाभ बीजेपी को मिलता यह साफ है.”

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…तो अब चुनाव मे क्या होगा?
 
मराठवाडा मे विधानसभा की 46 सीटे है. औऱ पश्चिम महाराष्ट्र मे 70 सीटे हैं. इन दोनों क्षेत्रों में मनोज जरांगे का खासा प्रभाव है. इसलिए हर पार्टी के उम्मीदवार मनोज जरांगे पाटील का सपोर्ट पाने के लिए उनसे मिलने जाता रहा है. लोकसभा चुनावों मे मराठा समुदाय के साथ-साथ संविधान बदलने का प्रचार और मुस्लिम समुदाय को टार्गेट करने की वजह से तीनों समुदाय महाविकास आघाडी के साथ खडे रहे.

इस बार मुस्लिम समुदाय के खिलाफ बीजेपी नेताओं की बयानबाजी की वजह से ज्यादातर यहीं पैटर्न रिपीट होने की संभावना जताई जा रही है. दूसरी ओर महाविकास आघाडी के इसी वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए बीजेपी ने “कटेंगे तो बटेंगे” की लाईन पर अपना प्रचार शुरु किया है. इससे महायुती हिंदू वोटों को एकसाथ रखकर ज्यादा फायदा चाहती है. लेकिन अजित पवार की पार्टी की विचारधारा उसमे बड़ा स्पीड ब्रेकर नजर आती है. क्योंकि वह आज भी सेक्युलर पार्टी के तौर पर ही काम कर रही है. इसलिए अब मनोज जरांगे पाटील के चुनाव ना लड़ने की चाल महायुती को काफी नुकसान पहुंचा सकती है.
 
क्या चुनाव ना लडने के निर्णय के बाद भी मराठा समुदाय जरांगे के साथ रहेगा?
मनोज जरांगे पाटील ने पिछले तीन महींनों से चुनावों मे उतरने की घोषणा कर के मराठा समुदाय को एक आशा दिखाई थी. दिग्गज मराठा नेताओं से हटकर गरीब औऱ मध्यम वर्ग के मराठा युवा इसे एक नए मौके के तौर पर देख रहे थे. मनोज जरांगे ने काफी जगहों पर चुनाव लडने की इच्छा रखनेवालों को नामांकन दाखिल करने को कहा था. अब उन्हें फिर से यू टर्न लेने को कहा जा रहा है, इसका क्या असर समुदाय पर होगा यह अभी साफ नहीं हुआ है. 

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लेकिन साफ तौर पर गरीब और जिनके पास मौकों की कमी है, वह सभी मराठा समुदाय के लोग मनोज जरांगे के साथ है. उन्हे  मराठाओं को ओबीसी मे आरक्षण दिलाने के लिए मनोज जरांगे ने जो लडाई लडी थी, उसपर भरोसा है. अब चुनाव मे लोकसभा का पैटर्न ही रिपीट होगा या कुछ और, यह देखनाअभी बाकी है.

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