बिहार की राजधानी पटना में कांग्रेस की सबसे शक्तिशाली कमेटी कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक हो रही है. आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस बिहार में CWC की बैठक कर रही है, जो विधानसभा चुनाव की सियासी तपिश के बीच आयोजित की गई है. इतना ही नहीं, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने जिस तरह से बिहार पर ध्यान केंद्रित किया है, उससे कांग्रेस के सियासी मकसद को समझा जा सकता है.
कांग्रेस साढ़े तीन दशक से बिहार की सत्ता से बाहर है, जिसके चलते उसके तमाम बड़े नेता पार्टी छोड़कर चले गए हैं. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की बैसाखी के सहारे कांग्रेस बिहार में अपनी राजनीति को आगे बढ़ाती रही है, लेकिन अब कांग्रेस दोबारा से खड़े होने के लिए बेताब है.
बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस ने अपने संगठन में बदलाव किया और उसके बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में यात्रा निकालकर सियासी माहौल बनाने की कवायद की. अब चुनावी तपिश के बीच कांग्रेस अपनी वर्किंग कमेटी की बैठक पटना में कर रही है, जिसमें अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे नेताओं ने शिरकत की है.
आजादी के बाद पहली बार CWC की बैठक
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बिहार की चुनावी जंग में कांग्रेस अपने खोए हुए सियासी आधार और विश्वास को पाने की जद्दोजहद में जुटी है. कांग्रेस अपनी पुरानी सियासी जमीन तो तलाश रही है और अब वो केवल आरजेडी की बैसाखी के सहारे राजनीति नहीं करना चाहती. आरजेडी से सम्मानजनक सीटों की मांग ही नहीं कर रही, बल्कि जीत की गारंटी वाली सीटें भी चाहती है. सीट शेयरिंग की बातचीत के बाद कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बिहार के पटना में एकजुट हुआ है.
आजादी के बाद पहली बार पटना में हो रही कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे विधानसभा चुनाव का एजेंडा तय करते नजर आए. उन्होंने नीतीश कुमार पर निशाना साधा तो किसान से लेकर पलायन और रोजगार के मुद्दे पर एनडीए (NDA) को कठघरे में खड़ा करते नजर आए. खड़गे ने कहा कि बीजेपी नीतीश कुमार को सेवानिवृत्त मान चुकी है और वो उन्हें बोझ मानती है.
खड़गे ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर भारत एक बेहद चुनौतीपूर्ण और चिंताजनक दौर से गुजर रहा है. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी मुसीबतें नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की नाकामी और कूटनीतिक विफलता का नतीजा है. प्रधानमंत्री जिनको 'मेरे दोस्त' बताकर ढिंढोरा पीटते हैं, वही दोस्त आज भारत को संकट में डाल रहे हैं. इसके साथ ही एसआईआर का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि बिहार की तर्ज पर अब देशभर में लाखों लोगों के वोट काटने की साजिश रची जा रही है.
दलित-ओबीसी को साधने का कांग्रेस दांव
बिहार के सियासी समीकरण को देखते हुए कांग्रेस का ध्यान दलित, ओबीसी और मुस्लिम वोटों पर है. राहुल गांधी से लेकर तमाम कांग्रेसी नेता भी दलित-ओबीसी के इर्द-गिर्द अपना सियासी ताना-बाना बुन रहे हैं. खड़गे ने कहा कि 'वोट चोरी' का मतलब, दलित, आदिवासी, पिछड़ा, अति-पिछड़ा, अल्पसंख्यक, कमजोर और गरीब के राशन की चोरी, पेंशन चोरी, दवाई चोरी, बच्चों की स्कॉलरशिप और परीक्षा की चोरी.
कांग्रेस 'वोट चोरी' के मुद्दे को कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने की कोशिश कर रही है, ताकि इसे सीधे आम जनता की जिंदगी से संबंधित दिखाया जा सके. रणनीति यह है कि मतदाता सूची से नाम कटने का मतलब है कि लाभार्थी योजनाओं से भी बाहर होना. इतना ही नहीं, खड़गे ने कहा कि बिहार की 80 प्रतिशत आबादी ओबीसी, ईबीसी, और दलित-आदिवासी वर्गों की है. इस तरह से उन्होंने साफ कह दिया कि जातिगत जनगणना में दलित और ओबीसी के साथ नाइंसाफी न हो और आरक्षण में पारदर्शिता भी बनाई जाए.
युवा और किसानों को साध रही कांग्रेस
कांग्रेस ने बिहार में अपने चुनावी अभियान का आगाज बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे पर किया था. पश्चिम चंपारण से कन्हैया कुमार ने एक यात्रा निकाली थी, जो विभिन्न जिलों से होते हुए पटना में समाप्त हुई थी. इस यात्रा का नाम 'नौकरी दो, पलायन रोको' रखा गया था. पलायन और नौकरी के मुद्दे पर कांग्रेस ने पदयात्रा निकालकर शिक्षा, नौकरी और पलायन का सियासी नैरेटिव सेट किया था.
खड़गे ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी में रोजगार के मुद्दे पर कहा कि 2 करोड़ नौकरियों का वादा अधूरा रहा. युवा रोजगार के बिना भटक रहे हैं. नोटबंदी और गलत जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार दिया. बिहार में बेरोजगारी दर 15 प्रतिशत से ऊपर है. हर साल लाखों युवा पलायन करते हैं. भर्ती घोटाले की वजह से युवा आज सड़कों पर आंदोलन करके पुलिस की लाठी खाते हैं. साथ ही खड़गे ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने वादे के मुताबिक किसानों की आय दोगुनी नहीं कर पाए. 2020-21 के तीन काले कानूनों की वजह से आंदोलन चला, 750 से अधिक किसान शहीद हो गए.
तेलंगाना फॉर्मूले पर बिहार फतह का प्लान
कांग्रेस तेलंगाना फॉर्मूले पर बिहार की चुनावी बाजी जीतने का ताना-बाना बुन रही है. तेलंगाना चुनाव से पहले कांग्रेस ने वहां पर CWC की बैठक करके सियासी माहौल बनाया था, जिसके बाद कांग्रेस की सरकार बनी थी. बात साल 2023 की है, तेलंगाना में विधानसभा चुनाव की सियासी हलचल के बीच कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता हैदराबाद में जुटे थे, वहां से चुनावी हुंकार भरी थी, इसका फायदा पार्टी को मिला और कांग्रेस की सरकार बनी थी. अब उसी तरह बिहार चुनाव से पहले कांग्रेस पटना में पार्टी के वर्किंग कमेटी की बैठक कर रही है.
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी की इस बैठक को बेहद अहम माना जा रहा है. पार्टी का दावा है कि मीटिंग बिहार में सत्ता परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. बिहार चुनाव में कांग्रेस खुद को केंद्र में रखने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस इस बैठक के जरिए कार्यकर्ताओं में भी जान फूंकने की कोशिश करेगी, जिसे राहुल गांधी ने अपने वोटर अधिकार यात्रा के जरिए चार्ज कर रखा है.
वहीं, बीजेपी नेता शाहनवाज हुसैन ने कांग्रेस की पटना में हो रही वर्किंग कमेटी पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनाव के चलते कांग्रेस को बिहार की याद आई है. बीजेपी नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कांग्रेस कार्य समिति की 85 साल बाद हो रही बैठक को राजनीति से प्रेरित बताया. रविशंकर ने कहा कि पटना में कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक हो रही है जो कई तरह के सवाल पैदा कर रही है. इससे पहले जब बिहार में लालू यादव का जंगलराज था तब क्यों बैठक नहीं की, अब कांग्रेस को अचानक बिहार की 85 साल बाद क्यों याद आ गई.
राहुल कांग्रेस को बना रहे 'आत्मनिर्भर'
राहुल गांधी ने बिहार में कांग्रेस के चुनावी अभियान का आगाज सामाजिक न्याय के साथ किया था. 18 जनवरी को पटना में 'संविधान रक्षा' के नाम पर आयोजित कार्यक्रम में राहुल गांधी ने शिरकत की थी. राहुल ने सामाजिक न्याय का नारा बुलंद करते हुए जातिगत जनगणना और दलित-पिछड़ों की भागीदारी का मुद्दा उठाया था. फरवरी में राहुल गांधी पासी समाज से आने वाले जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती में शामिल हुए थे. राहुल गांधी ने बिहार में अगस्त से पहले तक पांच दौरे किए थे, वो सभी आरक्षण, संविधान और सामाजिक न्याय के मुद्दे पर थे.
राहुल ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर रतन लाल से लेकर अली अनवर और दशरथ मांझी के बेटे को पार्टी से जोड़ा. राजेश राम जैसे दलित नेता को कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी तो सुशील पासी को सह-प्रभारी नियुक्त किया. इसके अलावा आरक्षण की मांग और सामाजिक न्याय की बात करके कांग्रेस को उभारने का दांव चला. ऐसे ही 17 दिनों तक बिहार में वोटर अधिकार यात्रा निकालकर कांग्रेस में सियासी ऊर्जा भरते नजर आए.
राहुल गांधी की सियासी एक्सरसाइज के बाद कांग्रेस के हौसले बुलंद हैं. कांग्रेस ने वर्किंग कमेटी की बैठक में 30 एजेंडों पर प्रस्ताव पारित करके मिशन-बिहार को फतह करने की कवायद की. साथ ही कांग्रेस ने कहा कि 2025 विधानसभा चुनाव न सिर्फ बिहार के लिए बल्कि पूरे देश के लिए मील का पत्थर साबित होगा. यहीं से मोदी सरकार के भ्रष्ट शासन की उलटी गिनती और अंत की शुरुआत होगी. इस तरह कांग्रेस बिहार में खुद को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ा चुकी है, लेकिन क्या कांग्रेस दोबारा से अपनी पुरानी साख वापस हासिल कर पाएगी?