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AIMIM ने बिहार में बदली रणनीति, 32 उम्मीदवारों में कट्टर हिंदू से लेकर विवादास्पद मुस्लिम चेहरा शामिल

साल 2020 में AIMIM की सफलता मुख्य रूप से सीमांचल बेल्ट (अररिया, किशनगंज, कटिहार, और पूर्णिया) तक सीमित थी. लेकिन इस बार ओवैसी नए मैदानों में किस्मत आजमा रहे हैं. उनकी यह रणनीति 'केवल मुस्लिम' टैग को हटाकर AIMIM की अपील को धार्मिक रेखाओं से परे ले जाने की है.

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ओवैसी ने पूर्वी चंपारण सीट से राणा रंजीत को टिकट दिया है. (Photo: PTI)
ओवैसी ने पूर्वी चंपारण सीट से राणा रंजीत को टिकट दिया है. (Photo: PTI)

असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM ने बिहार में अपनी सियासी रणनीति को बदल दिया है. पार्टी सीमांचल केंद्रित नजरिए से हटकर व्यापक सामाजिक प्रयोग की ओर बढ़ रही है. आगामी विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी की 32 उम्मीदवारों की लिस्ट में एक अनोखा मिश्रण है. इसमें कट्टर हिंदू नेता से लेकर विवादास्पद मुस्लिम नेता तक शामिल हैं. ये सभी उम्मीदवार राजनीतिक संदेश देने के लिए चुने गए हैं. ओवैसी ने यह कदम केंद्रीय और उत्तरी बिहार में पार्टी की उपस्थिति का विस्तार करने के मकसद से उठाया है.

AIMIM ने ढाका (पूर्वी चंपारण) में राणा रंजीत को टिकट दिया है, जो अपने 'आई लव महादेव' नारे के लिए पहचाने जाने वाले एक दक्षिणपंथी हिंदू नेता हैं. शेरघाटी (गया) में, पार्टी के उम्मीदवार शान-ए-अली पर 2016 में एक पुलिस अधिकारी की हत्या के आरोप हैं. 

वहीं, महुआ (वैशाली) से पार्टी के उम्मीदवार बच्चा राय 2016 के टॉपर घोटाले में मुख्य आरोपी हैं. कोचाधामन और बालटमपुर में अख्तरुल ईमान और आदिल हसन जैसे वफादार पारंपरिक आधार का प्रतिनिधित्व करते हैं.

महागठबंधन के गढ़ पर निशाना

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ओवैसी की हालिया महुआ (वैशाली) और ढाका (पूर्वी चंपारण) की यात्राएं मध्य और उत्तरी बिहार में पार्टी की उपस्थिति का विस्तार करने के उनके इरादे को रेखांकित करती हैं. ओवैसी ने 32 उम्मीदवारों की सूची जारी की है, जिसमें से ज्यादातर सीटें परंपरागत रूप से महागठबंधन के गढ़ रही हैं. यह RJD के मुस्लिम और यादव के मुख्य वोट बैंक में सेंध लगाने और छोटे जाति समूहों तथा हाशिये पर पड़े हिंदुओं को अट्रैक्ट करने की एक कोशिश है.

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इन तमाम विकल्पों के पीछे ओवैसी का बड़ा टारगेट 'सिर्फ मुस्लिम' टैग को हटाना और धार्मिक सीमाओं से परे AIMIM की अपील का विस्तार करना है. ढाका और महुआ में उनके हाल के दौरे जाति-आधारित समुदायों, पिछड़े समूहों और यहां तक कि निराश हिंदू मतदाताओं तक पहुंचने के इस बदलाव को उजागर करते हैं, जो NDA और महागठबंधन दोनों द्वारा अनदेखा महसूस करते हैं.

छोटे गठबंधनों की ओर रुख

2020 के उलट, जब AIMIM ने मायावती की बीएसपी और RLSP के साथ गठबंधन किया था, इस बार ओवैसी छोटे जाति गठबंधनों को बनाने की संभावना तलाश रहे हैं. वह खुद को बिहार की द्विध्रुवीय राजनीति में एक स्वतंत्र विघ्नकर्ता के रूप में स्थापित कर रहे हैं. इंडिया टुडे के सूत्रों के मुताबिक, तेज प्रताप यादव के साथ गठबंधन की बातचीत संभवतः सफल नहीं होगी, क्योंकि ओवैसी ने महुआ सीट से राय को मैदान में उतारा है और तेज प्रताप खुद उसी सीट से चुनाव लड़ रहे हैं.

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