कोरोना लॉकडाउन के बीच इंडिया टुडे ग्रुप की ई-कॉन्क्लेव सीरीज में मशहूर इतिहासकार और दार्शनिक युवाल नोआ हरारी खास मेहमान थे. बता दें कि विज्ञान की बेस्टसेलर किताबें सैपियंस: ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ ह्यूमनइंड (2014), होमो डेस: ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टुमॉरो (2016) और 21 लेशंस फॉर 21st सेंचुरी (2018) किताबों से वो पूरी दुनिया में छा गए.
हरारी का जन्म 1976 में इजराइल में रहने वाले पूर्वी यूरोपीय और लेबनानी मूल के साथ एक धर्मनिरपेक्ष यहूदी परिवार में हुआ था. 44 साल के हरारी ने यरूशलेम के हिब्रू विश्वविद्यालय में इतिहास का अध्ययन किया और ऑक्सफोर्ड में डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की. द गार्जियन में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार हरारी एक शाकाहारी हैं और वह दिन में दो घंटे ध्यान करते हैं.
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हरारी कहते हैं कि मेडीटेशन उन मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है जो वास्तव में मायने रखते हैं. वह एक समलैंगिक हैं और अपने पति के साथ यरुशलम के बाहर एक कृषि सहकारी संस्था मोघव में रह रहे हैं. उनकी पुस्तकों को पढ़ने का एक आनंद यह है कि वह पाठकों को लगातार जोड़ते हैं. उन्हें पता है कि उनका पाठक क्या सोच रहा है और क्या जानना चाहता है. इसलिए वो ऐसे व्यक्ति की तरह लिखते और बोलते हैं जो अत्यधिक परेशान नहीं है.
इंडिया टुडे से बातचीत में हरानी ने कहा कि कोरोना एक बड़ी महामारी जरूर है, लेकिन इससे लड़ना आसान है. उन्होंने कहा कि इस महामारी से लड़ने के लिये दुनिया को साथ आना पड़ेगा, लेकिन अफसोस की बात है कि एक-दूसरे पर आरोप लगाये जा रहे हैं. युवाल ने कहा कि इस तरह की नफरत को दूर कर सबको साथ आना पड़ेगा ताकि इस चुनौती से पार पाया जा सके.
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युवाल से जब कोरोना महामारी और दुनिया में पहले आयी महामारी के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि कोरोना पर हम बेहतर स्थिति में हैं. ये महामारी मध्य काल में आई ब्लैक डेथ के लिहाज से काफी कम है. हमारे पास इस महामारी को जानने समझने के लिये तकनीक है और इसे रोकने के साइंटिफिक तरीके हैं. लेकिन मध्य काल के ब्लैक डेथ की बात की जाये तो वो किसी को समझ ही नहीं आया, कैसे लोग मर रहे हैं, कैसे रोका जाये, कुछ लोग उसे ईश्वर का दंड मान रहे थे.