महेश परमार की खिड़की टूटी तो अहमदाबाद के 14 वर्षीय लड़के ने पुली तकनीक से उसकी मरम्मत कर दी. यह तकनीक उसने हफ्ते भर पहले ही क्रेजी साइंस लैब वर्कशॉप में सीखी थी. शहर के रेस्पायर एक्सपीरिएंशियल लर्निंग्स (आरईएल) की वर्कशॉप में परमार को कागज के एक आसान से किट और कुछ प्लास्टिक के टुकड़ों से सिखाई गई थी.
आरईएल की संस्थापक 23 वर्षीय मोनिका यादव कहती हैं, 'आप जब देखते हैं तो यकीन करने लगते हैं लेकिन जब आप कुछ करते हैं, उसे समझते हैं, वही सबसे महत्व का है. इससे आप अपने सीख हुए हुनर का इस्तेमाल रोजमर्रा के काम में करते हैं.'
आरईएल बच्चों की खातिर साइंस को आसान और मजेदार बनाने के लिए आसान किट बनाती है. किट में प्लास्टिक बोतल, कागज, धागे, वगैरह सामान्य घरेलू चीज होती हैं. शिक्षा के क्षेत्र में लगे लोग देश भर में पढ़ाई-लिखाई को आसान बनाने के लिए नए-नए तरीके ईजाद कर रहे हैं और इसके लिए प्रायोगिक किट, कठपुतलियों और संगीत, वगैरह का इस्तेमाल करते हैं.
अपने आप करो
शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े लोग इस पर काफी जोर देते हैं कि बच्चे खुद नए-नए प्रयोग करें और चीजों को सीखें. मसलन, हैदराबाद के बटर फ्लाई फील्ड्स में एक सेंटर हैं जिसे बच्चों के लिए 'इनोवेशन स्पेस' कहा जाता है. यहां बच्चे साइंस के विभिन्न एक्सपेरिमेंट्स किट को खुद आजमाते हैं और देखकर सीखते हैं.
बटरफ्लाई फील्ड्स के संस्थापक और आईआईटी ग्रेजुएट 35 वर्षीय के. शरत चंद्र कहते हैं, 'हमारी डीआइवाइ (डू इट योरसेल्फ) किट किसी खास वैज्ञानिक सिद्धांत का मॉडल होती है और बच्चे इससे उस सिद्धांत को आसानी से समझ जाते हैं.'
इसी तरह, चेन्नई में 2003 में शुरू की गई यूनिसेफ की एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग (एबीएल) पढ़ाई की ऐसी सामग्री मुहैया कराती है जिससे बच्चे की रीडिंग, राइटिंग और कैलकुलेशन में दिलचस्पी पैदा हो जाती है. पाठ्यपुस्तकों को इसी सामग्री में समाहित कर लिया जाता है और बच्चा सीखने में सीढ़ी-दर-सीढ़ी बढ़ता जाता है.
इसमें उम्र के हिसाब से तरह-तरह के रंगों वाली हर क्लास के लिए अलग सामग्री होती है, जानवरों के लोगो होते हैं और ब्लैकबोर्ड स्टूडेंट्स की आंख की सीध में होता है. मैथमेटिक्स में थ्री-डायमेंशनल मटीरियल और तरह-तरह के कार्ड इस्तेमाल किए जाते हैं.
पढ़ाई में मदद करने वाले ऐप्स और टेक्नोलॉजी आधारित दूसरे गजट के विपरीत ये मटीरियल्स आम आदमी के लिए हैं और सरकारी तथा निजी स्कूलों, शहरों और गांवों, सबके लिए हैं. बटर फ्लाई फील्ड्स के किट का असर पिछले सात साल में 4,500 स्कूलों और 10 राज्यों के बीच छह लाख स्टूडेंट्स तक हुआ है.
आरईएल के सस्ते किट से अहमदाबाद के गरीब परिवारों के बच्चे साइंस सीख रहे हैं. एबीएल की किट तमिलनाडु के 37,000 सरकारी और नगर निगम के स्कूलों में प्रयोग में लाए जा रहे हैं.
काम और खेल
शिक्षा के क्षेत्र के लोगों की अब मान्यता है कि खेल और पढ़ाई साथ-साथ चलनी चाहिए. इसी से वे पाठ और तरह-तरह के सिद्धांतों को बताने के लिए कठपुतलियों वगैरह का इस्तेमाल करते हैं. वडोदरा में मुख्यालय वाला कक्षा एक रचनात्मक ऑडियो-विजुअल प्रोग्राम है, जिसका मकसद स्कूलों में पारंपरिक पढ़ाई में मदद करना है.
इस प्रोग्राम की संचालक 28 साल की रुक्मिणी ठाकोर लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से ग्रेजुएट हैं और 500 लेसंस का एक प्रोग्राम बनाया है जो राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की श्रेणी में आते हैं. इसे मजेदार बनाने के लिए इसमें कठपुतली नाच, गीत, प्रयोग, खेलकूद, किस्सागोई, नाटक, वगैरह शामिल किए गए हैं. इनमें सभी विषयों इंग्लिश, हिंदी, मैथमेटिक्स और पर्यावरण वगैरह के पाठ हैं.
ठाकोर कहती हैं, 'पढ़ाई के तरीके बच्चों को जोड़ते हैं, उनमें दिलचस्पी पैदा करते हैं और स्थानीय अध्यापकों को प्रशिक्षित भी करते हैं.' पढ़ाई को मजेदार बनाने के विचार की प्रेरणा से थिएटर ग्रुप कलसूत्री हवा, गणित और जिंदगी की बुनियादी समझ के सिद्धांतों को समझाने के लिए हाथ के बने पुतले बनाता है.
कलसूत्री की संस्थापक 64 वर्षीया मीना नायक कहती हैं, 'इनसे हर संदेश आसान बन जाता है. आप इनके जरिए हवा और खनिज जैसे विषयों की जानकारी भी दे सकते हैं.' उन्होंने हाल ही में एक पात्र विटामिन-सी बनाया और उसे बच्चों के साथ विटामिन के लाभ पर बातचीत करते दिखाया. बच्चों के काउंसलर भी शिक्षा में ऑडियो-विजुअल सामग्रियों और पुतलों, वगैरह के लाभ पर बात करते हैं. मुंबई स्थित मनोवैज्ञानिक 42 वर्षीया विमला जैन कहती हैं, 'स्टुडेंट अध्यापकों के बदले कठपुतलियों की बातें ज्यादा समझते हैं. यह खुले संवाद और पढ़ाई का अच्छा तरीका है.'
लगातार पढ़ाई
बटरफ्लाई फील्ड्स के शरत चंद्र के मुताबिक, स्टूडेंट्स के लिए इन तरीकों से सबसे बड़ा लाभ यह है कि हर बच्चा खुद या फिर टीम के हिस्से के रूप में सक्रिय हिस्सेदारी करता है. चंद्र कहते हैं, 'यह उबाऊ से दिलचस्प पढ़ाई की ओर कदम है. प्रायोगिक तरीकों से कोई बच्चा सीखता है तो उस हर सिद्धांत को उसके लिए समझना आसान हो जाता है, जो कक्षा या किताबों में पढ़ाया जाता है.' दूसरी ओर, एबीएल स्कूलों में बच्चों के न आने, लड़कियों की तादाद बढ़ाने और ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्कूल में लाने की समस्याओं पर भी विचार कर रहा है.
इन नए तरीकों से परंपरागत व्यवस्था टूटती है और तरह-तरह की सामग्रियों, औजारों और विचारों से नई सक्रियता आ रही है, इसलिए नई पीढ़ी में नई विचार आ रहे हैं.
-साथ में मोना रामावत और सारन्या चक्रपाणि.