अगर आप यह सोचकर पैसा कमाते हैं कि आपको आराम की जिंदगी चाहिए तो यह आपकी सोच हो सकती है, लेकिन मैं आराम की जिंदगी उसको समझता हूं जो आपको काम करने से मिलती है.” यह उस शख्सियत की सोच है जो बचपन में अपने पिता और फिर भाई के साथ साइकिल की दुकान पर पंक्चर लगाने का काम करता था, लेकिन आज वह हिंदुस्तान की तीसरी सबसे बड़ी ब्रायलर कंपनी का कर्ताधर्ता है.
1978 में पिता के निधन के बाद परिवार की जिम्मेदारी उन पर आ गई. उनके बड़े भाई सुल्तान अली ने विरासत में मिली साइकिल की दुकान संभाल ली. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के निवासी बहादुर अली बताते हैं, “अचानक एक डॉक्टर से मुलाकात हुई जिसने हमें पोल्ट्री व्यवसाय के बारे में समझाया और हमने सिर्फ 100 मुर्गियों के साथ काम शुरू कर दिया.”
बहादुर अली स्मरण करते हैं, “यह 1984 की बात है, यहीं से हमारा पोल्ट्री में प्रवेश हुआ.” लेकिन कुक्कुट पालन अलग चीज थी और उसे बेचना दूसरी चीज. वे बताते हैं, “उन सौ मुर्गियों को बेचने में जो कठिनाई महसूस हुई उसे मैंने एक चुनौती के रूप में लिया और सोचा कि क्यों न मैं खुद इसकी मार्केटिंग करूं.” उनके प्रयासों का नतीजा था कि 1996 तक आइबी ग्रुप का टर्न ओवर 5 करोड़ रु. तक पहुंचा. लेकिन वे अपने काम से खुद संतुष्ट नहीं थे और उनकी जिंदगी और व्यवसाय में बदलाव आया दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे एक वल्र्ड पोल्ट्री कांग्रेस से.
अंग्रेजी भाषा से अनजान अली की मदद उनके बेटों और बहनोई ने की और वे हर स्टॉल पर गए. अचानक उनकी मुलाकात एक अमेरिकन कंसल्टेंट से हुई और उसने उन्हें तकनीकों के बेहतर इस्तेमाल के साथ बिजनेस के गुर सिखाए. इस मुलाकात का सबसे रोचक पहलू अली की शब्दों में ही, “मेरा नाम भी नहीं पूछा, बस इतना ही कहा कि आप इतना अच्छा सवाल कर रहे हो, इसलिए जो मेरी नॉलेज है आप ले लो.” उसके बाद उनकी उलझनें दूर हो गईं और फिर उसके आगे-पीछे कुछ नहीं सोचा.
आज अली का आइबी ग्रुप की कुक्कुट पालन क्षमता 50 लाख से अधिक है. उनके उत्पादों में पैकेज्ड दूध, खाद्य तेल, मछली के फीड आदि शामिल हैं. उनका बिजनेस छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, विदर्भ और उड़ी में फैला हुआ है. लेकिन उनका काम ज्यादातर गांवों में है तो कर्मचारियों में भी 90 फीसदी गांव वाले. अली पहले बेचने की चिंता करते हैं, फिर तकनीक के साथ उसका उत्पादन, ताकि सरप्लस न हो. साफ है अली ने अपनी तकदीर खुद लिखी है.