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सिक्‍योरिटी गार्ड भज्‍जू श्‍याम कैसे बना दुनिया का मशहूर कलाकार

आदिवासी गोंड कलाकार भज्जू श्याम की किताब 'लंदन जंगल बुक' दुनिया की पांच विदेशी भाषाओं में पब्लिश हुई है.

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Bhajju Shyam
Bhajju Shyam

आदिवासी गोंड कलाकार भज्जू श्याम की किताब 'लंदन जंगल बुक' मंगलवार को दुनिया की पांच विदेशी भाषाओं में पब्लिश हुई है. उनकी यह उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि वे एक साधारण ग्रामीण परिवेश से आते हैं. भारत के एक पिछड़े इलाके से निकलकर अपने कला की छाप उन्होंने सात समंदर पार तक छोड़ी है.

भज्जू श्याम मध्य प्रदेश के जबलपुर के पास स्थित एक गांव पाटनगढ़ के निवासी हैं. उनका बचपन आम आदिवासी लड़कों की तरह ही अभावों में बीता था. उनके माता-पिता के लिए बच्चों को प्राथमिक शिक्षा देना भी एक मुश्किल काम था. कभी किसी के पास कपड़े होते तो किसी के पास स्कूल बैग नहीं यानी हर समय कोई न कोई आर्थिक संकट खड़ा ही रहता था.

मुश्किलों भरा दौर
16 साल की उम्र में घर की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भज्‍जू अमरकंटक चले गए. वहां उन्हें पौधा लगाने का काम मिला. इस नौकरी से न तो खुशी मिली और न ही आर्थिक संकट दूर हुआ. इसके बाद भज्जू ने भोपाल जाने का फैसला किया. वहां उन्हें सिक्योरिटी गार्ड और इलेक्ट्रिसियन की नौकरी मिली लेकिन अपने काम से यहां भी संतोष न हुआ.  1993 में उनके चाचा प्रसिद्ध पेंटर जनगढ़ सिंह ने उन्हें अपने यहां बुलाया और नौकरी देने का वादा किया. बचपन में भज्जू हमेशा घर की दीवारों को पेंट करने में अपनी मां की मदद किया करते थे.

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यहां उन्‍होंने चाचा के साथ मिलकर रंगों के साथ खेलना शुरू किया. चाचा की प्रेरणा और अपनी मेहनत के कारण वे जल्द ही अच्छी पेंटिंग बनाने लेगे. भज्जू को पहली सफलता तब मिली जब दिल्ली की एक प्रदर्शनी के दौरानी उनकी पांच पेंटिंग को लोगों ने खरीदा. भज्जू को इसके कुल 1200 रुपये मिले. उनके लिए उस समय इतना रुपये भी काफी थे. धीरे-धीरे रंगों की यह यात्रा आगे बढ़ने लगी. उनका नाम तेजी से चारों तरफ फैलने लगा. गोंड आर्ट में उन्हें महारत हासिल हो गई थी.

मिल गई पहचान
भज्‍जू को विदेश में अपनी पेंटिंग दिखाने का बड़ा मौका 1998 और 2001 की पेरिस प्रदर्शनी के दौरान मिला. इसके बाद उन्हें लंदन जाने का मौका मिला, जहां उन्होंने करीब दो महीने बिताए. विदेश से आने के बाद भज्जू के पास वहां के बारे में बताने के लिए सैकड़ों कहानियां थीं. वे बताते हैं कि लंदन से लौटने के बाद करीब 10 दिन तक बस एक ही शब्द जुबान पर था लंदन, लंदन और सिर्फ लंदन.

लंदन से आने के बाद भज्जू ने अब तक करीब आठ किताबों का संपादन किया और सैकड़ों की संख्या में चित्र बनाए हैं . इसके अलावा उन्होंने राज्य और देश स्तरीय कई अवॉर्ड भी जीते. हाल ही में उन्हें ओजर आर्ट अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है. यह अवॉर्ड देश भर से आदिवासी कला पर सराहनीय काम करने के लिए दिया जाता है. गोंड आर्ट में उन्होंने क्रिएशंस नाम की किताब भी लिखी है. इसके अलावा नीदरलैंड, जर्मनी, इंग्लैंड, इटली में कई वर्कशॉप का आयोजन भी कराया है.

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चित्रों की खूबसूरती
लंदन के एक मशहूर रेस्‍टोरेंट 'मसाला जोन' में भारतीय संगीत, भारतीय भोजन के साथ-साथ उनकी कला के नमूने भी दिखाए जाते हैं. रेस्‍टोरेंट के मालिक को उनकी पेंटिंग इतनी पसंद थी कि उन्होंने रेस्‍टोरेंट की दीवारों पर पेंटिंग बनाने के लिए उन्हें लंदन बुला लिया. उनके हर चित्र के पीछे कुछ न कुछ कहानी होती है. आदिवासी कथाओं का उनके चित्रों पर गहरा प्रभाव है. भज्जू इन पेटिंग के बारे में कहते हैं कि हजारों साल पुरानी आदिवासी संस्कृति के इस हिस्से को दुनिया के लोग काफी पसंद करते हैं.

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