हर साल देशभर में से लाखों उम्मीदवार IAS, IPS
बनने का ख्वाब देखकर UPSC की परीक्षा देते हैं.
जिसके बाद कुछ इन पदों के लिए ऐेसे उम्मीदवारों का
सेलेक्शन होता है जिन्होंने जमकर मेहनत की हो.
IAS, IPS बनने के लिए यूपीएससी मेंस
परीक्षा का आयोजन किया जा रहा है. इसी मौके पर हम
आपको ऐसे शख्स की कहानी बताने जा रहे हैं जिन्हें
IPS बनने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा. जिसके
बाद उन्होंने ये मुकाम हासिल किया. ये कहानी
उन सभी परीक्षार्थियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो
यूपीएससी की परीक्षा दे रहे हैं.
इस शख्स का नाम सूरज सिंह परिहार है. वह उत्तर
प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले हैं. बचपन में उन्होंने तय
कर लिया था कि वह बड़े होकर देश और समाज की
सेवा करेंगे और एक बड़े अधिकारी बनेंगे. बता दें, बचपन
में सूरज अपने दादाजी के साथ रहते थे. जहां उन्होंने
गांव में ही कक्षा 5वीं तक पढ़ाई की. बता दें, उनके दादा
उन्हें महापुरुषों की कहनियां सुनाया करते थे. जिनसे वह
काफी प्रेरित होते थे.
गांव में पांचवी तक पढ़ाई करने के बाद वह अपने माता
पिता के साथ कानपुर के जाजमऊ आ गए जहां उन्होंने
हिंदी मीडियम स्कूल में दाखिला लिया. बचपन से ही
सूरज एक होनहार छात्र थे. वह पढ़ाई के साथ- साथ
खेल, क्रिएटिव राइटिंग और कविता लिखने में भी हमेशा
आगे रहते थे.
साल 2000 में, उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर
नारायणन के हाथों रचनात्मक लेखन और कविता के
लिए राष्ट्रीय बाल श्री पुरस्कार भी जीता था. उन्होंने यूपी
बोर्ड से कक्षा 12वीं का पेपर दिया. जिसमें उन्होंने 81
प्रतिशत अंक हासिल किए थे. बोर्ड परीक्षा में अच्छे नंबर
आने के बाद वह खुश थे कि उन्हें एक बेहतरीन कॉलेज
में एडमिशन मिल जाएगा.
सूरज ने IPS बनने का सपना देखा था, लेकिन
परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी. वह
आगे पढ़ना चाहते थे और यूपीएससी परीक्षा देना चाहते
थे, जिसके बाद उन्होंने प्राइवेट स्टूडेंट के तौर पर
एक कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई शुरू कर दी. और
खर्चा चलाने के लिए अपने दोस्त के साथ मिलकप
अश्विनी के साथ मिलकर एक किराए के कमरे में अंग्रेजी
सिखाने का कोचिंग संस्थान शुरू किया. बता दें, सूरज
एक संयुक्त परिवार में रहते थे. जिसमें पिता एकमात्र
कमाने वाले थे. ऐसे में सूरज घरेलू आय में अपना
योगदान देना चाहते थे.
आपको बता दें, सूरज ने अंग्रेजी पढ़ाने का कोचिंग सेंटर
तो शुरू कर दिया लेकिन उनकी खुद की अंग्रेजी अच्छी
नहीं थी. एक तो वह खुद हिंदी मीडियम से पढ़ थे. वहीं
उनके घर पर भी अंग्रेजी बोलने का माहौल नहीं था.
लेकिन सूरज ने हार नहीं मानी.
हालांकि, सूरज अच्छी तरह से अंग्रेजी पढ़, लिख और
समझ सकते थे, लेकिन बातचीत कर पाना बड़ा मुश्किल
था.इसके बाद सूरज ने अंग्रेजी सीखने के लिए अंग्रेजी में
न्यूज पेपर को पढ़ना शुरू किया, अंग्रेजी चैनलों को
देखना और आईने के सामने खड़े होकर खुद से बातचीत
करना शुरू किया. जिसके बाद ये भाषा सीख ली.
वहीं उनके कोचिंग सेंटर करीबी 100 स्टूडेंट्स ने
रजिस्ट्रेशन कराया था. लेकिन मकानमालिक से लड़ाई
के चलते उन्होंने कोचिंग सेंटर को बंद कर दिया. जिसके
बाग उन्होंने हिन्दुस्तान यूनिलीवर में मार्केटिंग की नौकरी
जॉइन की लेकिन असफल रहे. जिसके बाद उन्होंने एक
कॉल सेंटर में नौकरी की विज्ञापन देखा. जिसमें
उम्मीदवारों का चयन वॉक इन इंटरव्यू के माध्यम होना था. कॉल सेंटर में EXL में कॉल सेंटर एक्जीक्यूटिव के लिए नौकरी थी. वह जानते थे कि बीपीओ में उन्हें अच्छा पे-स्केल मिलेगा. कॉल सेंटर में आवेदन करने के बाद उनका चयन हो गया.
सूरज 19 साल के थे जब उन्होंने कॉल सेंटर की नौकरी मिली. जिसके बाद वह अपना घर छोड़कर नोएडा शिफ्ट हो गए. सूरज घर में पैसों की मदद करना चाहते थे इसलिए नौकरी की. उनका लक्ष्य यूपीएससी की परीक्षा देना था.
जब सूरज नोएडा आए और आवाज और उच्चारण के लिए टेस्ट हुआ था तो वह फेल हो गए. जिसके बाद उन्हें वापस जाने के लिए कहा गया, लेकिन सूरज ने मैनजर कनिष्क से एक मौका और मांगा. सूरज को एक महीने का अल्टीमेटम दिया गया. जिसमें उन्होंने जमकर मेहनत की. उन्होंने री-टेस्ट पास किया. इतना ही नहीं "द वॉल ऑफ फेम" में भी जगह बनाई. जिसके बाद उन्हें कंपनी से 60 प्रतिशत अप्रेजल मिला. पर सूरज अपनी इस सफलता के लिए खुश नहीं थे. क्योंकि वह जानते थे कि ये नौकरी उनका भविष्य नहीं है. जिसके बाद उन्होंने नौकरी को छोड़ दिया और यूपीएससी की तैयारी करने लगे.
जिसके बाद यूपीएससी की कोचिंग के लिए वह दिल्ली आए और कोचिंग लेने लगे. लेकिन 6 महीने में ही उनके जमा किए हुए पैसे खत्म हो गए. जिसके बाद वह आर्थिक स्थिति से जूझने लगे. जिसके बाद उन्होंने आठ बैंकों में पीओ की परीक्षा के लिए आवेदन किया और सभी को क्रैक भी कर लिया. उन्होंने बैंक ऑफ़ महाराष्ट्र में नौकरी जॉइन कर ली, जहां उन्होंने ठाणे की शाखा में चार महीने तक काम किया. इसी के साथ SBI में भी उनका चयन हो गया. इस परीक्षा में ऑल इंडिया में उनकी सातवीं रैंक हासिल आई थी. SBI के साथ उन्होंने आगरा, दिल्ली और रुड़की में एक साल तक काम किया. उन्हें चमोली में बैंक प्रबंधक के रूप में
प्रमोशन मिला तो फिर से उन्होंने अपने जीवन को लेकर बड़ा फैसला लिया. उन्होंने फैसला लिया कि वह इस पद से भी नौकरी छोड़ देंगे. वह जानते थे कि अगर उन्होंन इस पद पर नौकरी की तो अपना लक्ष्य कभी पूरा नहीं कर पाएंगे.
वहीं इसी बीच उन्होंने SSC कंबाइंड ग्रेजुएट लेवल की परीक्षा पास कर ली जिसमें उन्होंने ऑल ओवर इंडिया में 23 रैंक हासिल की थी. जिसके बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह से यूपीएससी को समर्पित कर दिया.
साल 2011 में उन्होंने यूपीएससी का पहले अटेंप्ट दिया. उस समय वह SBI में काम कर रहे थे. इस साल मेंस क्लियर कर इंटरव्यू तक पहुंचे थे, लेकिन कुछ अंकों से रह गए. दूसरा अटेंप्ट 2012 में दिया जिसमें वह मेंस परीक्षा भी पास नहीं कर पाए. लेकिन तीसरे अटेंप्ट में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली. उनका चयन भारतीय राजस्व सेवा में हुआ.
लेकिन उनका सपना IPS बनने का था ऐसे में उन्होंने चौथी बार अटेप्ट देने का फैसला लिया. आपको बता दें, सरकार ने परीक्षा देने की सीमा को पांच बार कर दिया और आयु सीमा में भी 2 साल की बढ़ोतरी कर दी थी.
इसलिए सूरज को दो और मौके यूपीएससी परीक्षा देने में मिले. जहां उन्होंने ऑल ओवर इंडिया में 189 रैंक हासिल की. 30 साल की उम्र में IPS अधिकारी बन गए. आखिरकार उनका सपना पूरा हो गया. बता दें, उन्होंने नक्सल प्रभावित क्षेत्र में जागरूकता फैलाने के लिए कविताएं भी लिखी है.