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एजुकेशन

जानें- सोनम वांगचुक ने कैसे किया आर्टिफिशियल ग्लेशियर का निर्माण

जानें- सोनम वांगचुक ने कैसे किया आर्टिफिशियल ग्लेशियर का निर्माण
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इस साल रेमन मैग्सेसे पुरस्कार की लिस्ट में दो भारतीयों का भी नाम शामिल है. वहीं उनमें से एक
नाम हैं सोनम वांगचुक का. जहां उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काफी अहम योगदान दिया है वहीं लद्दाख में सूखे की समस्या से निपटने के लिए आर्टिफिशियल ग्लेशियर का आविष्कार कर दिया ताकि जब पानी की कमी हो तो लोगों को आसानी से पानी मिले. आइए जानते हैं कैसे- बनाया ये आर्टिफिशियल ग्लेशियर..


जानें- सोनम वांगचुक ने कैसे किया आर्टिफिशियल ग्लेशियर का निर्माण
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इस आर्टिफिशियल ग्लेशियर का नाम 'आइस स्तूप' यानी बर्फ का स्तूप है. वांगचुक ने पानी की कमी को पूरा करने के लिए आइस-स्तूप तकनीक का आविष्कार किया है. जब लोगों को को इस तकनीक के बारे में पता चला तो पूरी दूनिया में उनका नाम हो गया है.


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शायद ही किसी ने सोचा होगा कि ग्लेशियर को जमाया भी जा सकता है. लेकिन वांगचुक ने ये कर दिखाया. उनकी इस तकनीक से आर्टिफिशियल ग्लेशियरों का निमार्ण होता है जो शंकु यानी कोण की तरह दिखता है.


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इन ग्लेशियरों को जमा दिया जाता है ताकि जब गर्मी में पानी की कमी हो तो इन्हें पिघला कर पानी का इस्तेमाल खेती और अन्य काम में किया जाए.
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बता दें, ये ग्लेशियर ग्राफ्टिंग तकनीक का एक रूप है.
इस बर्फ- स्तूप की देख- रेख स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (एसईसीओएमएल) करता है.
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एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख के संस्थापक-निदेशक भी हैं.
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यह प्रॉजेक्ट अक्टूबर 2013 में शुरू किया गया था और  जनवरी 2014 में द आईस स्तूप प्रोजेक्ट के अंतर्गत एक परीक्षण की शुरूआत हुई थी.
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कमाल की बात ये हैं कि वांगचुक ने ये स्तूप बिना किसी मशीनरी मदद के बनाया था. इसे बनाने के लिए उन्होंने झाड़ और पाइपों की मदद ली थी.
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इस बर्फीले स्तूप के जरिए ड्रिप एरिगेशन सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए सिंचाई की जाती है.
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वांगचुक ने बताया एक स्तूपा 30 लाख लीटर से ज्यादा पानी जमा किया जा सकता है. आसान शब्दों पर कहे तो 300 टैंकर में जितना पानी आता है वह एक स्तूप में जामा कर सकते हैं. बता दें, इस वजह से उन्हें "आइस मैन ऑफ इंडिया'' भी कहा जाता है..


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वांगचुक ने अपने स्तूप के लिए पानी की व्यवस्था समीप के गांव से की, जो ऊंचाई पर बसा है. वहां से अंडरग्राउंड पाइप के जरिए आया पानी एक सीधे खड़े पाइप से होते हुए फौव्वारे की तरह उछलता है. इसके बाद पानी बूंदों के रूप में वहां जमाए गए सूखे झाड़-झंखाड़ पर गिरता रहता है. बूंदों के रूप में पानी जल्दी जमता है. इस तरह वहां एक कोन के आकार का बर्फीला स्तूप तैयार हो जाता है.
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जानें कैसे बनता है आइस स्तूप:- आइस स्तूप बनाने में झांड़-झंखाड़ और पाइपों का इस्तेमाल होता है. सोनम की तकनीक के कारण इसमें किसी मशीन या बिजली की जरूरत नहीं पड़ती. इसके लिए एक अंडरग्राउंड पाइप के जरिए उस जगह तक पानी पहुंचाया जाता है. पानी ऐसे किसी जलस्रोत से आना चाहिए, जो ग्राउंड लेवल से 60 मीटर ऊंचा हो. दरअसल, ऊंचाई से आने वाला पानी उसी ऊंचाई तक उछलता भी है.
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