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जब भी लड़ा, तब मात खाया... पुरानी जंगों में इंडियन आर्मी के सामने कितनी देर टिक पाया था पाकिस्तान?

भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक चार युद्ध हो चुके हैं. पहला और दूसरा युद्ध कश्मीर को लेकर हुआ था. इन दोनों युद्ध में भारत और पाकिस्तान दोनों देशों ने कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया था. चारों युद्ध कब तक चले और कितने दिनों में पाकिस्तानी आर्मी पीछे हटी, आइए जानते हैं.

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India Pakistan Previous Wars
India Pakistan Previous Wars

India Pakistan Previous Wars: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव एक बार फिर चरम पर है. पाकिस्तान को भारत के संभावित जवाबी हमले का डर सता रहा है. भारत की ओर से सिंधु जल संधि की समीक्षा, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करने और पाक कलाकारों के अकाउंट्स बंद करने जैसे कड़े कदम उठाए गए हैं. इस बीच सवाल उठ रहा है क्या भारत और पाकिस्तान एक और युद्ध की ओर बढ़ रहे हैं?

हालांकि, अगर ऐसा हुआ, तो यह पहली बार नहीं होगा, इससे पहले भी चार में युद्ध में भारत पाकिस्तान को पछाड़ चुका है. इसके साथ ही यह भी जानते हैं कि किस युद्ध में पाकिस्तान ने कितने दिनों बाद भारत के आगे अपने घुटने टेक दिए थे.

1947-1948 का युद्ध – 1 साल चला (कश्मीर युद्ध)

भारत-पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध जम्मू-कश्मीर को लेकर हुआ. यह युद्ध 1947 में शुरू हुआ और 1 जनवरी 1949 को रात 11:59 बजे युद्धविराम के साथ समाप्त हुआ. इसमें भारत ने कश्मीर के दो-तिहाई हिस्से पर नियंत्रण बनाए रखा, जबकि पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पर कब्जा कर लिया. 

भारत और पाकिस्तान साल 1947 में आजाद हुए थे, लेकिन आजादी के कुछ दिन बाद ही भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई के बादल मंडराने लग गए थे. इस युद्ध की वजह भी कश्मीर ही थी. आजादी के बाद 1947 में ही कश्मीर में दंगे फैल गए थे और बढ़ते विद्रोह के बीच पाकिस्तान ने कश्मीर में कबायली सेनाओं को भेजा था और उसके बाद लड़ाई हुई थी. उस दौरान कश्मीर में भारतीय सेना ने मोर्चा संभाला. यूएन के माध्यम से इस युद्ध को शांत करवाया गया. 

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1965 का युद्ध – 17 दिन चला (दूसरा कश्मीर युद्ध)

यह युद्ध 5 अगस्त 1965 को शुरू हुआ और 23 सितंबर 1965 को युद्धविराम के साथ समाप्त हुआ. इसमें भारत ने लाहौर तक बढ़त बनाई थी, लेकिन संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप और ताशकंद समझौते के बाद दोनों देश पीछे हटे.  युद्ध नहीं रुका होता तो आज लाहौर भारत के कब्जे में होता. संयुक्त राष्ट्र ने युद्ध विराम की घोषणा की थी और इसके बाद ताशकंद में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ था. इस समझौते में दोनों देशों ने क्षेत्रीय दावों को छोड़ दिया और विवादित इलाके से अपनी सेनाएं वापस ले ली. 

इस युद्ध में भारत को पाकिस्तान की जमीन लौटानी पड़ी. भारतीय फौज पाकिस्तान के लाहौर के करीब पहुंच चुकी थी. तब जाकर 23 सितंबर 1965 को युद्ध विराम की घोषणा की गई. इस युद्ध में भारत की जीत ने दुनिया में भारत का कद बढ़ाया और उसे नई पहचान दिलाई. अगर दोनों देशों के बीच 23 सितंबर को युद्ध विराम नहीं हुआ रहता और ताशकंद समझौते की शर्तें नहीं मानी गई होतीं, तो आज भारत के पास लाहौर होता. 

India Pak First War

कैसे शुरू हुआ 1965 का युद्ध

20 मार्च 1965  में पाकिस्तान ने जानबूझ कर कच्छ के रण में झड़पें शुरू कर दी. शुरू में इनमें केवल सीमा सुरक्षा बल ही शामिल थे.  बाद में दोनों देशों की सेना भी शामिल हो गयी. फिर 1  जून 1965 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री हैरोल्ड विल्सन ने दोनों पक्षों के बीच लड़ाई रुकवा कर इस विवाद को हल करने के लिए एक निष्पक्ष मध्यस्थ न्यायालय की स्थापना कर दी. 

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1971 का युद्ध – 13 दिन चला (बांग्लादेश मुक्ति युद्ध)

यह युद्ध भारत की अब तक की सबसे बड़ी सैन्य जीत माना जाता है. 3 दिसंबर से 16 दिसंबर 1971 तक चले इस युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी और बांग्लादेश का गठन हुआ. ढाका में पाकिस्तान की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया. 1971 का साल बांग्लादेश के साथ-साथ भारत और पाकिस्तान के लिए भी काफी अहम था. इस साल बांग्लादेश ने अपने वजूद की लड़ाई लड़ी. बांग्लादेश ने पाकिस्तान के साए से अलग होकर नए राष्ट्र के रूप में उभरने की जंग लड़ी, जिसमें भारत ने बखूबी उसका साथ दिया. 

1947 में बंगाल का पूर्वी और पश्चिमी बंगाल में विभाजन हुआ था. पश्चिम बंगाल भारत के अधीन ही रहा जबकि पूर्वी बंगाल का नाम बदलकर पूर्वी पाकिस्तान हो गया, जो पश्चिमी पाकिस्तान (पाकिस्तान) के अधीन था. यहां एक बड़ी संख्या बांग्ला बोलने वाले बंगालियों की रही और यही कारण था कि भाषाई आधार पर पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) ने पाकिस्तान के प्रभुत्व से बाहर निकलने की कोशिश की और आजादी का बिगुल बजाया. 

इस दौरान आजादी का सूरज देखने के लिए बांग्लादेश को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. इस दौरान बड़े पैमाने पर कत्लेआम हुआ, तकरीबन दो लाख महिलाओं का रेप किया गया. आलम ये था कि एक तरफ शेख मुजीबुर्रहमान की अगुवाई में 1971 का युद्ध लड़ा जा रहा था. तो दूसरी तरफ महिलाएं अपनी गरिमा और सम्मान को बचाने की जंग लड़ रही थीं. 

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1999 का करगिल युद्ध – करीब 60 दिन चला

3 मई से जुलाई 1999 तक चले इकी. भास युद्ध में पाकिस्तान ने करगिल की ऊंचाइयों पर कब्जा करने की कोशिश रतीय सेना ने ऑपरेशन विजय के ज़रिए इन चोटियों को दुबारा हासिल किया. 26 जुलाई 1999 को युद्ध समाप्त हुआ, जिसे आज करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है. 84 दिनों तक चले इस युद्ध की कहानी आज से 25 साल पुरानी है.

करगिल की सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि दुश्मन ऊपर पहाड़ों पर बैठा था और भारतीय सैनिक नीचे थे. ऐसे दुश्मनों से निपटने के लिए भारतीय सेना के लिए सबसे ज्यादा मददगार हथियार बोफोर्स तोपें ही थीं. इन तोपों की खासियत थी कि ये काफी ऊंचाई वाले टारगेट पर भी गोले दाग सकती थीं. बोफोर्स वजन में बहुत हल्की थीं. मई में शुरू हुआ युद्ध अब जून महीने तक पहुंच गया.

जुलाई में भारतीय सैनिकों ने टाइगर हिल पर पाई थी विजय

7-8 जुलाई 1999 की रात को भारतीय सैनिकों ने धावा बोलते हुए 8 जुलाई को 8 बजे तक रिवर्स स्लोप्स, कट और कॉलर के क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया. इसका मतलब था कि अब टाइगर हिल पूरी तरह से भारत के कब्जे में था.  इसके बाद दिल्ली को टाइगर हिल्स पर फतह के बारे में जानकारी दी गई. खबर की पुष्टि हो जाने के तुरंत बाद तत्कालिन जनरल मलिक ने प्रधानमंत्री के सुरक्षा सलाहकार बृजेश मिश्र ओट प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी को इसकी सूचना दी. टाइगर हिल्स पर फतह के बाद भारतीय फौज ने दक्षिण-पश्चिमी टास्ते से आगे बढकर दुश्मन को दूसरी चोटियों से भी खदेड दिया था.

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करीब 3 महीने तक चले इस युद्ध में देश के कई सैनिकों ने अपनी जान गंवाई, लेकिन इस पूरी जंग में एक अहम भूमिका टाइगर हिल की भी रही. टाइगर हिल और इस पूरे युद्ध में शहीद हुए सैनिकों की शहादत को पूरा देश नमन करता है. 

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