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कोटा: NEET-JEE एस्प‍िरेंट्स के 'डिप्रेशन' की असली वजहें क्या हैं? छात्रों ने बताई मन की बात

सुसाइड की घटनाएं छात्रों को भीतर से बहुत परेशान करती हैं. कई छात्र इस तरह की घटनाओं के बाद कई कई दिनों तक पढ़ नहीं पाते. वहीं कोटा के हॉस्टल्स और पीजी में कई बदलाव लाए गए हैं. यहां कमरों में पंखो में स्प्रिंग लगाने के साथ-साथ बालकनी में भी जाली लगाकर कवर कर दिया गया है ताकि कोई भी सुसाइड ना कर पाए.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

कोटा में रहकर NEET की तैयारी कर रहे ऋषभ ड्रॉपर बैच के हैं. वो यूपी के मैनपुरी के करहल गांव के रहने वाले हैं. कोटा आने से पहले उन्होने कोटा की एक एडवांस शहर की छवि अपने मन में बनाई थी. कोटा आने पर उन्हें गलाकाट प्रतिस्पर्धा का अंदाजा हुआ. वहीं एक और छात्र तुषार इसके पीछे छात्रों की थोड़ी गलती मानते हैं. आइए जानें- कोटा के माहौल पर छात्र क्या सोचते हैं. 

ऋषभ कहते हैं कि जब वो कोटा आए तो उन्हे पढ़ाई में अपने टीचर्स का बहुत साथ मिला. कोचिंग वाले उन पर अपने पूरे एफर्टस लगा रहे हैं. वो आगे कहते हैं कि फिर भी कभी-कभी प्रेशर तो होता ही है. मगर जैसे-जैसे हम टीचर्स के कहने पर काम करते हैं और साथ-साथ सिलेबस कवर करते हैं तो दिक्कत नहीं आती. हमारे टीचर्स और कोचिंग वालों का हमें पूरा सपोर्ट है. सब कुछ रूटीन के ऊपर डिपेंड करता है. अगर आप जितना पढ़ाया गया है, उतना पढ़ो और साथ-साथ रेगुलेरली कवर करते रहो तो ये ज्यादा मुश्क‍िल नहीं होता. इसके अलावा पढाई के साथ-साथ एंजॉय करना भी जरूरी है.

बदल गया है यहां का माहौल 
सुसाइड की घटनाएं छात्रों को भीतर से बहुत परेशान करती हैं. कई छात्र इस तरह की घटनाओं के बाद कई कई दिनों तक पढ़ नहीं पाते. वहीं कोटा के हॉस्टल्स और पीजी में कई बदलाव लाए गए हैं. यहां कमरों में पंखो में स्प्रिंग लगाने के साथ-साथ बालकनी में भी जाली लगाकर कवर कर दिया गया है ताकि कोई भी सुसाइड ना कर पाए. ऋषभ कहते हैं कि सुसाइड के मामलों को पंखे कम नहीं कर पाएंगे. कई बार तनाव में आकर बच्चे की मानसिकता ही ऐसी बन जाती है और वो खुद को रोक नहीं पाता. अगर समय रहते उसको गाइड किया जाए या उसकी दिक्कत सुनकर सॉल्व कर दी जाए. तभी ये मामले कम हो सकते हैं. 

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लगता है पढाई बहुत फास्ट हो रही है... 
ऋषभ बताते हैं कई बार उन्हें भी परेशानी महसूस होती है. लगता है चीजें बहुत तेज हो रही हैं. पढाई फास्ट हो रही है. मुझसे कुछ छूट रहा है और मैं समय रहते कवर नहीं कर पा रहा हूं. मगर उस समय मैं अपने मां-पापा से बात करता हूं. मेरे पापा किसान हैं और वो मेरा साथ देते हैं. वो मुझसे किसी तरह की टेंशन ना लेने को कहते हैं. मेरे दिमाग में बस पढाई करने का लक्ष्य रहता है. 

ऋषभ, कोटा में रहकर NEET की तैयारी कर रहे हैं.

टाइम मेनेजमेंट और कांउसलिंग बदल सकती है तस्वीर
एक दूसरे छात्र तुषार कहते हैं कि ये प्रेशर ही है कि यहां 16-16 साल के बच्चे दिन में 10-10 सिगरेट पीते हैं. दुकानों पर बैठे रहते हैं. इसे लेकर कोई एक्शन भी नहीं लिया जाता. उन्हें समझाया नहीं जाता. कुछ गलती बच्चों की भी है. उन्हें भी इन रास्तों पर जाने से बचना चाह‍िए. तुषार अप्रैल 2023 में JEE की तैयारी के लिए कोटा आए थे. मूल रूप से वो आगरा के अकोला गांव के रहने वाले हैं. आंखों में कुछ कर दिखाने का सपना लेकर छोटी सी उम्र में कोटा पहुंच गए. तुषार बताते हैं कि कोटा जाने से पहले इस शहर के बारे में मन में कोई छवि नहीं थी. यहां आकर मुझे अच्छा लगा. मुझे लगा कि यहां मैं अपने सपने पूरे कर सकता हूं.

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तुषार अभी 11वीं क्साल में पढ़ रहे हैं. वो कहते हैं कि उन्हें तो अभी तक किसी तरह के प्रेशर का सामना नहीं करना पड़ा. मगर उनके कुछ दोस्त कभी-कभी तनाव में आ जाते हैं तो उनके घर वाले उनका साथ देते हैं. तुषार 5 घंटे की कोचिंग के अलावा 6-7 घंटे सेल्फ स्टडी करते हैं. वो कहते हैं कि जिस दिन मुझे किसी तरह का प्रेशर फील हुआ तो मैं भी सबसे पहले अपने मां-बाप से बात करूंगा. पढ़ाई के अलावा तुषार वॉकिंग, गाने सुनकर खुद के दिमाग को फ्रैश रखते हैं.

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पंखा कब तक रोक लेगा और कितना रोक लेगा
स्प्रिंग लोडेड पंखे की बात आने पर तुषार कहते हैं कि ये इस समस्या का समाधान नहीं है. आत्महत्या करने के और भी तरीके हैं. जब तक स्टुडेंट्स और टीचर्स मिलकर इस मुद्दे पर काम नहीं करेंगे तब तक कुछ नहीं होगा. बच्चों को भी अपने मन की बात कहनी चाहिए. हमारे लिए मेन्टॉर्स रखे गए हैं. हमारे टाइम मैनेजमेंट से लेकर पढ़ाई या किसी भी तरह की दिक्कत आने पर उस समस्या का हल उन लोगों द्वारा निकाला जाता है. उनसे अगर बात की जाए तो काफी कुछ सुलझ सकता है.

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रिपोर्ट: अंकु चाहार
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