scorecardresearch
 

न डिग्री थी-न जेब में पैसे, ₹25 से इस शख्स ने शुरू किया गरीब बेटियों को ट्रेनिंग देना, आज करोड़ों में है कमाई

ऐसे बहुत से कम लोग होते हैं जो दूसरों के लिए जीते हैं. जय सिंह भी उनमें से एक है जो कहते हैं कि हर इंसान को भगवान कुछ ना कुछ हुनर देकर भेजता है, उसका सही इस्तेमाल आना चाहिए. आप कितने ही गरीब हो या आप कितने पढ़े लिखे हो यह सब मैटर नहीं करता. अगर आपके पास हुनर है तो आप फर्श से अर्श तक जा सकते हो.

Advertisement
X
ट्रेनिंग देते हुए जय सिंह (aajtak.in)
ट्रेनिंग देते हुए जय सिंह (aajtak.in)

संगरूर की पहचान बन चुका ये शख्स आज सफलता की जीती-जागती मिसाल है. खाक से उठकर किसान का यह बेटा आज बेहद गरीब परिवारों की लड़कियां को बिजली उपकरणों की ट्रेनिंग देकर उनकी शादी तक करके माता-पिता का फर्ज भी निभा रहा है. आइए जानते हैं 43 साल पहले ₹25 उधार लेकर अपना काम शुरू करने वाले इस शख्स के बारे में जिनका आज करोड़ों का कारोबार है. 

यह कहानी है संगरूर के कक्कड़बाल गांव के रहने वाले जै सिंह की, जिसने आज से 43 वर्ष पहले महज ₹25 उधार लेकर एक ड्रिल मशीन खरीदी थी. उनका आज करोड़ों का कामकाज है. वह अपने गांव में ही मराहड पावर कंट्रोल लिमिटेड नाम की इंडस्ट्री चलाते हैं और आज भी हजारों बच्चों को मुफ्त में वहां पर ट्रेनिंग देते हैं. इतना ही नहीं जो बेहद गरीब परिवार की लड़कियां वहां पर ट्रेनिंग के लिए आती हैं. उनको यहा न सिर्फ ट्रेनिंग दी जाती है बल्क‍ि पढ़ाई भी कराई जाती है. यही नहीं, हुनरमंद होने के बाद जय सिंह उनकी शादी तक कराते हैं. 

जय सिंह बताते हैं कि उनका मैट्रिक की पढ़ाई में मन नहीं लगा इसलिए नौकरी नहीं मिली. पढ़ाई में मन न लखने की वजह यह थी कि मेरे दिल और दिमाग में कुछ और चल रहा था. फिर ₹30 की एक छोटी नौकरी की और वहां से एडवांस में ₹25 लेकर एक ड्रिल मशीन खरीदी. फिर क्या था उनकी गाड़ी चल पड़ी और आज पूरे इंडिया में इलेक्ट्रिक कंट्रोल पैनल बनाकर सप्लाई कर रहा है. इसके साथ ही हजारों लड़के-लड़कियों को मुफ्त में ट्रेनिंग दे रहे हैं. दर्जन से ज्यादा लड़कियों की खुद पिता बनकर शादी का खर्च वहन कर चुके हैं. 

Advertisement

दूसरी कंपनियों में भी नौकरी के मौके
उनके यहां काम करने वाले जिन युवाओं को आगे जाकर किसी और कंपनी में काम करना है उनको भी नौकरी दिला रहे हैं. वो किसी से ट्रेनिंग के नाम पर एक पैसा तक नहीं ले रहे. बच्चों का जहां रहने-खाने के लिए बिल्कुल मुफ्त है और जय सिंह की एक और खास बात है कि उनकी इस इंडस्ट्री में ट्रेनिंग के लिए आई हुई लड़कियां ही यह पूरा कामकाज देखती है. लड़कियां खुद ऑटोमेटिक मशीन पर लोहे की प्लेटों की कटाई करती हैं. उनके यहां इलेक्ट्रिक कंट्रोल पैनल बनाए जाते हैं जो बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज की बिल्डिंग्स में लगते हैं. जय सिंह बताते हैं कि वह यहां से अपने लिए कोई मुनाफा नहीं कमाते जो पैसा आता है वह यहीं पर लग जाता है, वो इन बच्चों पर लगाते हैं. 

हरेक में कोई न कोई हुनर: जय सिंह
जय सिंह की कहानी बेहद दिलचस्प है. उनका तर्क है कि जो बच्चा पढ़ लि‍ख नहीं पाता. जो कभी स्कूल नहीं गया, उसको लोग किसी काम का नहीं समझते. उनकी नजर में वो निकम्मा होता है. लेकिन जय सिंह समझते हैं कि भगवान ने अगर उसको धरती पर भेजा है तो उसमें कोई ना कोई ऐसा हुनर है जिसमें उसका दिल लगता है. जय सिंह मानते हैं कि उन्होंने मैट्रिक तक पढ़ाई की लेकिन उसके बाद नौकरी नहीं मिली. लेकिन उनका लगाव बिजली के कामों की ओर ज्यादा था इसीलिए उन्होंने इसी काम को सीखने की तरफ रुख किया. सबसे बड़ी बात उन्होंने इसके लिए कोई डिप्लोमा हासिल नहीं किया. न किसी इंडस्ट्री में गए. किसी से कुछ सीखा भी नहीं. वो बताते हैं कि उनकी ड्राइंग अच्छी थी, जिसके चलते वह आगे जाकर प्रोजेक्ट बनाने लगे. आज पूरे इंडिया में उनके बनाए हुए कंट्रोल पैनल जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि जो बच्च‍ियां हमारे पास ट्रेनिंग के लिए आ रही है,  उनमें से कई बहुत ज्यादा पढ़ी-लिखी है और कुछ वो लड़कियां भी हैं जो कभी स्कूल ही नहीं गईं. 

Advertisement

मेरे पिता से बड़ा कोई अध्यापक नहीं
जय सिंह की बेटी खुशप्रीत कौर अपने पिता का कामकाज देखती है. वो कहती हैं कि मेरे पिता से बड़ा कोई अध्यापक नहीं हो सकता. जिस सोच को लेकर वो चले थे उसने सभी को गौरव महसूस कराया. मुझे अपने पिता पर गर्व है. हमारे पास लड़कियों की एक टीम है जो हमारी इंडस्ट्री में जो कंट्रोल पैनल बनते हैं, उनको देखती हैं. ये वही लड़कियां हैं जो हमारे जहां आकर ट्रेनिंग लेती हैं. कई ऐसी लड़कियां है जो विदेशों में चली गई तो वहां बैठकर भी हमारा कामकाज देखती हैं. मुझे बहुत खुशी होती है जब कोई बेटी अपने ससुराल से मायके आती है तो वो अपने घर से पहले हमारे यहां जाकर पापा को मिलती है. यह मेरे पापा की 43 वर्ष की मेहनत है. 

जय सिंह के पास पिछले दो साल से ट्रेनिंग के लिए आई पलविंदर कौर बताती हैं कि जब वो यहां आई थीं तो उनको इस काम का कुछ भी नहीं पता था. लेकिन आज वो जहां पर कंट्रोल पैनल बनते हैं उस डिपार्टमेंट की हेड हैं. यहां जो फाइबर लेजर मशीन हैं, लड़कियां ही उसको चलाती हैं. उसका डिजाइन वह बनाती हैं यानी क‍ि जो असली दिखते है जहां से पूरा काम शुरू होता है वो पलविंदर कौर देखती हैं. पलविंदर कहती हैं कि मेरा यहां पर बहुत मन लगता है और हमारी इस यूनिट में सभी लड़कियां ही काम कर रही हैं. मेरे अंडर में 10 लड़कियां हैं जो अलग-अलग मशीनों पर काम करती हैं. हमें बहुत अच्छा लग रहा है यहां पर हमसे कोई पैसा नहीं लिया जाता. 

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement