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64 साल पहले आज ही के दिन हिंदू धर्म छोड़कर अम्बेडकर ने चुना था बुद्ध का रास्ता

भारत में वर्ण व्यवस्था, जाति आधारित विभाजन और भेदभाव से बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर इतने दुखी हुए कि उन्होंने आस्था और उपासना की पद्धति को ही हमेशा के लिए ही त्याग दिया. 

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संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर
संविधान निर्माता भीमराव अंबेडकर

संविधान निर्माता बीआर अम्बेडकर 64 साल पहले आज ही के दिन गौतम बुद्ध की शिक्षा से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए थे. 14 अक्टूबर 1956 को महाराष्ट्र के नागपुर में बाबा साहेब अपने 3 लाख 80 हजार समर्थकों के साथ हिंदू आस्था को छोड़कर बौद्ध धर्म का पालन करने लगे. 

भारत में वर्ण व्यवस्था, जाति आधारित विभाजन और भेदभाव से बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर इतने दुखी हुए कि उन्होंने आस्था और उपासना की पद्धति को ही हमेशा के लिए ही त्याग दिया. 

गरीबी, बहिष्कार और लांछन से भरा बचपन गुजारने वाले अंबेडकर का जन्म हिन्दुओं में अछूत और निचली माने जाने वाली महार जाति में हुआ था. 

तिरस्कारपूर्ण बचपन जीकर जवान होने वाले अंबेडकर ने एहसास किया कि शिक्षा ही भारत में उन जैसे लाखों-करोड़ों लोगों के जीवन में प्रकाश ला सकती है. इस दौरान उन्होंने महसूस किया की धर्म के झूठे आवरण ने मानव-मानव के बीच गहरा भेदभाव पैदा किया है. धर्म का चोला कई बार इस गैर बराबरी वाले भाव को कवच प्रदान करता है. यह समझ आते ही बाबा साहेब के मन में हिंदू धर्म को लेकर विरक्ति होने लगी.  

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'हिंदू पैदा हुआ, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं'

भेद-भाव और छुआछूत का अंत करने के लिए भीम राव अंबेडकर ने कानून का सहारा लिया. इसमें उन्हें सफलता भी मिली. लेकिन हिंदू समाज में जड़ जमा चुके छुआछूत, गैर बराबरी जैसी कुरीतियों को वे जड़ से मिटा नहीं पा रहे थे. इसी दौरान उन्होंने ऐतिहासिक वक्तव्य दिया और कहा कि मैं हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं.

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14 अक्टूबर 1956 को जब उन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा ली तो कई हिंदू मान्यताओं को सिरे से खारिज कर दिया. उन्होंने बौद्ध धर्म स्वीकारते हुए कहा, "मैं मानव मात्र के विकास के लिए हानिकारक और मनुष्य मात्र को ऊंचा नीचा मानने वाले अपने पुराने हिंदू धर्म को पूर्णत: त्यागता हूं और बुद्ध को स्वीकार करता हूं."

बौद्ध धर्म की दीक्षा लेने के लिए उन्होंने और उनके समर्थकों ने 22 प्रतिज्ञाएं ली. इनमें हिंदू धर्म की त्रिमूर्ति की अवधारणा यानी की ब्रह्मा, विष्ण, महेश में अविश्वास, अवतारवाद का सिरे खंडन, श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान जैसे कर्मकांडों का बहिष्कार शामिल है. 

अपनी प्रतिज्ञा में उन्होंने प्रण लिया कि वे कोई भी क्रिया-कर्म ब्राह्मणों के हाथों से नहीं करवाएंगे. उन्होंने कहा कि वे इस सिद्धांत को मानेंगे कि सभी इंसान एक समान हैं और समानता की स्थापना का प्रयत्न करेंगे. 

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बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा कि उन्हें यह पूर्ण विश्वास है कि गौतम बुद्ध का धम्म ही सही धम्म है और अब उनका नया जन्म हो गया है.

 

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