प्रदूषण के खतरों के बारे में हम रोज सुनते हैं. प्रदूषण का स्तर खतरनाक होने पर ये धीरे-धीरे हमारे नाक, कान के रास्ते पूरे जिस्म में घुसकर खून तक पहुंच जाता है. एक स्वस्थ व्यक्ति को भी प्रदूषण का स्तर यानी एक्यूआई (एअर क्वालिटी इंडेक्स) बढ़ने पर बीमार करने लगता है. वहीं फेफड़े, हृदय रोगों या सांस रोगियों के लिए तो ये काल ही बन जाता है. दुनिया भर में हुई स्टडी बताती हैं कि कैसे तमाम बीमारियों से मरने वालों लोगों के आंकड़ों में प्रदूषण भी एक कारक बना है. यहां हम विस्तार से प्रदूषकों के शरीर पर प्रभाव से लेकर विशेषज्ञों की राय दे रहे हैं.
सस्पेंडेट पार्टिकुलेट मैटरः सामान्य व्यक्ति के एक बाल की मोटाई 50 से 70 माइक्रॉन्स होती है. वहीं हवा में घुले पार्टिकुलेट मैटर यानी PM 10 और उससे भी सूक्ष्म PM 2.5 क्रमशः 10 और ढाई माइक्रॉन्स के होते हैं. ये धूल, धुआं और धातु के मिश्रित कण ही हवा को जहरीला बनाते हैं. हवा में घुले इन प्रदूषकों और उनके शरीर पर हानिकारक प्रभावों के बारे में नीचे पढ़िए.
क्या है PM 2.5, कैसे करता है नुकसान
पीएम 2.5 इतने सूक्ष्म होते हैं कि आसानी से सांस के जरिये हमारे शरीर में पहुंचकर खून में घुल सकते हैं. हवा में पीएम 10 की सेफ लिमिट 100 माइक्रोग्राम्स प्रति घन मीटर और PM 2.5 की 60 माइक्रोग्राम्स मानी जाती है. प्रदूषित हवा में इनकी मौजूदगी का सही-सही पता लगाना पूरी दुनिया में एक चुनौती बना हुआ है. हवा में इनकी मात्रा इससे ज्यादा बढ़ते ही ये श्वसन तंत्र के लिए समस्या पैदा करने लगते हैं.
हेल्थ पर असरः आंखों में खुजली और जलन, नाक में सूखापन और खुजली, गले में खराश, खांसी, दमा या सांस के अन्य रोगियों को सांस लेने में दिक्कत, अस्थमा, क्रोनिक ब्रोन्काइटिस, फेफड़े के ऊतकों को नुकसान. किडनी के डैमेज होने का खतरा, लिवर के टिश्यू को नुकसान, कार्डियोवस्कुलर डिजीज के अलावा हेवी मेटल प्वाइजनिंग और कैंसर का भी खतरा.
नाइट्रोजन ऑक्साइडः
प्रदूषित हवा में कई तरह की जहरीली गैसें घुली होती हैं. इनमें नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड भी होती है जो वातावरण में धुंध पैदा करती है. ये पराली से लेकर गाड़ियों के ईंधन और इंडस्ट्री के धुएं से निकलकर हवा में घुलती है.
हेल्थ पर असर: ये फेफड़े के ऊतकों को नुकसान पहुंचाती है. फेफड़ों की क्षमता घटाती है. स्किन कैंसर का महत्वपूर्ण कारक बनती है, इसके अलावा रोमछिद्रों को ब्लॉक करती है, जिससे सूजन जैसी दिखती है. ये नर्व्स को भी डैमेज करती है, इससे नसों से संबंधित बीमारियां पैदा होती हैं.
कॉर्बन मोनोऑक्साइडः
हवा में घुली इस रंगहीन गैस की कोई गंध भी नहीं होती. ये खासकर वाहनों में जलने वाले फ्यूल से निकलती है. ये हवा में घुले सबसे घातक प्रदूषकों में से एक है.
हेल्थ पर असर: इससे आंखों की देखने की क्षमता प्रभावित होती है. इसके कण आंखों में सीधे पहुंचकर विजन को धुंधला कर देते हैं. इसकी मात्रा अधिक होने पर ये कानों के सुनने की क्षमता भी नष्ट कर देती है. ये सांस के जरिये खून में पहुंचकर शरीर पर कई तरह के दुष्प्रभाव डालती है, जिससे सिर दर्द और आलस्य महसूस होता है. श्वांस नली में प्रवेश कर ये कई बार सीने में दर्द का भी कारण बनती है.
सल्फर डाई आक्साइड (SO2):
एक रंगहीन गैस है जो कि बहुत खतरनाक प्रदूषक होती है. ये पानी के कणों की तरह हवा में घुलकर हवा को एसिडिक बनाती है. ये ईंधन के जलने, इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों जैसे फ्रिज, माइक्रोवेव, एसी के अधिक इस्तेमाल से व इंडस्ट्री के धुएं से निकलती है.
हेल्थ पर असरः ये फेफड़ों को बीमार करती है, जिससे खांसी आना, सांस से घरघराहट की आवाज जैसे लक्षण होते हैं. इससे श्वसन तंत्र प्रभावित होता है, सांस में घुलकर ये सांस लेने में दिक्कत पैदा करती हैं. सांस के मरीजों के लिए ये बहुत घातक प्रदूषक होती है.
ओजोन (O3):
पोस्फेरिक या जमीनी स्तर की ओजोन, सीधे हवा में उत्सर्जित नहीं होती है, बल्कि नाइट्रोजन के ऑक्साइड (एनओएक्स) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) के बीच रासायनिक प्रतिक्रियाओं द्वारा बनती है. यह तब होता है जब कार, बिजली संयंत्र, औद्योगिक बॉयलरों, रिफाइनरियां, रासायनिक संयंत्रों और अन्य स्रोतों से उत्सर्जित प्रदूषक सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में रासायनिक प्रतिक्रिया करते हैं.
हेल्थ पर असरः ओजोन युक्त हवा में सांस लेने से सबसे अधिक जोखिम में अस्थमा के मरीज, बच्चे, बुजुर्ग और बाहर काम करने वाले लोग होते हैं. आंखें अगर हर वक्त नीली रहती हैं तो ये ओजोन का प्रभाव हो सकता है. ये गले में खराश और इरिटेशन का अहसास कराती है, कुछ गटकने तक में दिक्कत महसूस होती है. ओजोन फेफड़ों को संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकती है, इसमें अस्थमा, वातस्फीति और क्रोनिक ब्रोंकाइटिस जैसे फेफड़ों के रोग बढ़ जाते हैं.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
बच्चों के लिए खतरनाक प्रदूषण- जाने-माने शिशु व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ आलोक द्विवेदी के मुताबिक एक नए अध्ययन में सामने आया है कि वायु प्रदूषण के चलते बच्चों में एलर्जी का जोखिम बढ़ रहा है. उच्च स्तर के वायु प्रदूषण के संपर्क के दीर्घकालिक असर में कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली भी संभावित समस्या होती है. इसके अलावा बच्चों में अस्थमा, फेफड़ों की समस्या और आंखों में दिक्कत आ सकती है. बच्चों को वायु प्रदूषण से बचाने के लिए खतरनाक स्तर पर एक्यूआई होने पर उन्हें घर में रखना ही इकलौता विकल्प है. घर में एअर प्यूरीफायर या ऑक्सीजन देने वाले पौधे लगाकर रखें. जीरो से 3 साल तक के बच्चों का विशेष ध्यान रखें. बड़ी उम्र के बच्चों को घर से मास्क पहनाकर ही बाहर ले जाएं.
पहले से रोगी हैं तो- डिपार्टमेंट ऑफ मेडिसिन, केजीएमयू लखनऊ के प्रो कौसर उस्मान कहते हैं कि जिन लोगों को पहले से ही एलर्जिक राइनाइटिस और ब्रोंकल अस्थमा है, प्रदूषण में उनकी मुसीबत बढ़ रही है. सामान्य लोगों में भी एलर्जिक कंजक्टिवाइटिस की समस्या देखी जा रही है. जो बुजुर्ग पहले से सीओपीडी यानी क्रोनिक ब्रोंकाइटिस से जूझ रहे हैं, प्रदूषण उनके लिए जानलेवा साबित होता है. प्रदूषण के कारण कैंसर के मामले भी बढ़े हैं.
गर्भ के बच्चे पर भी असर- एसएन मेडिकल कॉलेज आगरा की स्त्री व प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ निधि गुप्ता कहती हैं कि एअर क्वालिटी इंडेक्स यानी एक्यूआई जिस तरह नीचे जाकर बहुत खराब और कभी-कभी खतरनाक स्तर तक पहुंच रहा है, ये गर्भवती महिलाओं के लिए बड़ी समस्या है. पहले से अस्थमा या अन्य श्वसन रोगों से जूझ रही मांओं में गर्भकाल के दौरान ब्रोंकाइटिस से न सिर्फ उन्हें बल्कि गर्भस्थ शिशु को भी नुकसान पहुंच रहा है. ऑक्सीजन स्तर होने से क्रोनिक हाइपोक्सिया की स्थिति में गर्भस्थ शिशु की मेंटल हेल्थ बिगड़ जाती है. एक्यूआई बढ़ने पर मांओं को सुबह जल्दी उठकर टहलने से बचना चाहिए.
कैसे प्रदूषण हो रहा खतरनाक
हार्ट अटैक से 18 लाख मौतें
जब हृदय की धमनियां संकुचित हो जाती हैं, तो हृदय की मांसपेशियों तक कम रक्त और ऑक्सीजन पहुंचता है. इसे "कोरोनरी आर्टरी डिजीज" और "कोरोनरी हार्ट डिजीज" कहा जाता है, जो अंतत: इस्केमिक हृदय रोग हो सकता है, जो दिल के दौरे का कारण बनता है. साल 2019 में, पूरी दुनिया में 90 लाख से ज्यादा मौतों के लिए इस्केमिक हृदय रोगों को ही जिम्मेदार ठहराया गया था, इनमें से 20% यानी करीब 18 लाख वायु प्रदूषण की वजह से हुई थीं.
ब्रेन स्ट्रोक से 17 लाख मौतें
जब मस्तिष्क के किसी हिस्से में रक्त की आपूर्ति अचानक बाधित हो जाती है या मस्तिष्क में कोई बड़ी रक्त वाहिका फट जाती है, तो मस्तिष्क की कोशिकाओं के आसपास रक्त फैल जाता है. रक्त से ऑक्सीजन और पोषक तत्व नहीं मिलने या अचानक रक्तस्राव होने से दिमाग की कोशिकाएं मर जाती हैं. साल 2019 में, 65 लाख वैश्विक मौतें ब्रेन स्ट्रोक से हुईं, जिनमें से 26% मामले यानी 17 लाख वायु प्रदूषण से जुड़े थे.
डायबिटीज से तीन लाख मौतें
पूरी दुनिया में प्रदूषण के बढ़ते स्तर ने टाइप टू डायबिटीज के मामले बढ़ाने में योगदान किया है. साल 2019 में 15 लाख से ज्यादा वैश्विक मौतों में मधुमेह को जिम्मेदार ठहराया गया था. इनमें से 19% मौतों के मामले यानी 3 लाख वायु प्रदूषण से जुड़े थे.
COPD से 13 लाख मौतें
क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) फेफड़े की बीमारी है जो प्रदूषण का स्तर बढ़ने के साथ खतरनाक हो जाती है. साल 2019 में दुनिया में करीब 33 लाख वैश्विक मौतें सीओपीडी कारण हुईं. इनमें से 40% मरीज यानी 13 लाख वायु प्रदूषण से प्रभावित थे.
लंग कैंसर से चार लाख मौतें
फेफड़े का कैंसर होने पर सामान्य कोशिकाओं के विपरीत, कैंसर कोशिकाएं बिना क्रम के बढ़ती हैं. ये फेफड़ों के आसपास के अच्छे ऊतकों को नष्ट करती हैं, पॉल्यूशन इस स्थिति को और भी क्रिटिकल बना देता है. साल 2019 में, दुनिया में 20 लाख से ज्यादा मौतें फेफड़ों के कैंसर के कारण दर्ज की गईं. इनमें से 19% मामले यानी करीब 4 लाख वायु प्रदूषण से जुड़े थे.
निमोनिया से साढ़े सात लाख मौतें
एक्यूट लोअर रेस्पिरेटरी लंग इनफेक्शन जो निमोनिया (फेफड़ों की एल्वियोली का संक्रमण) है. एक्यूट ब्रोंकाइटिस और ब्रोंकियोलाइटिस, इन्फ्लूएंजा और काली खांसी इस तरह के संक्रमण का एक प्रमुख कारण है. दुनिया भर में बच्चों और वयस्कों की मौतों की बात करें तो साल 2019 में, करीब 25 लाख लोग इसका शिकार हुए. इसमें 30% मामलों यानी साढ़े 7 लाख में वायु प्रदूषण कारक रहा.