इज़रायल और फिलीस्तीन एक बार फिर आमने-सामने हैं. इन दोनों मुल्कों के बीच की रार तकरीबन हर साल सामने आती है. खूनी संघर्ष से लेकर गोलीबारी तक इन देशों के बीच युद्ध की सी स्थिति बन जाती है. क्या आपको पता है कि आखिर इन दोनों देशों के बीच इतनी दुश्मनी की वजह क्या है. इन छह प्वाइंट्स में समझिए....
भूमध्य-सागर के किनारे बसे इज़रायल और फिलीस्तीन के बारे में इस तरह की भ्रांति है कि दोनों देशों के बीच की लड़ाई मुख्य रूप से धार्मिक है और हज़ारों वर्षों से चली आ रही है. हालांकि, अगर दोनों देशों के इतिहास को खंगालें तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है. बल्कि ये साफ होता है कि ये लड़ाई सिर्फ और सिर्फ ज़मीन और अपनी पहचान की है, जिसे कई बार धार्मिक रूप से देखा जाता रहा है.
मशहूर इतिहासकार बेनी मॉरिस ने अपनी किताब ‘The Birth of the Palestinian Refugee Problem Revisited’ में इस लड़ाई के बारे में कुछ यूं लिखा है कि पहले विश्व युद्ध, जिसने ओटोमन साम्राज्य को पूरी तरह से खत्म कर दिया था, उसने मिडिल ईस्ट की पूरी तस्वीर को बदल दिया, क्योंकि युद्ध के बाद लोगों में यहां पर राष्ट्रवाद की एक भावना पनपने लगी. तब यहां के लोगों ने भी दुनिया के अन्य देशों की तरह ही अपने अलग देश की मांग करना शुरू कर दिया.
यूं तो इज़रायल और फिलीस्तीन मौजूदा वक्त में दो अलग देश माने जाते हैं, लेकिन ये दोनों देश ही एक दूसरे का वजूद नहीं मानते हैं. हालांकि, दूसरे विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव लाकर दोनों ही देशों को अलग किया, जिसके बाद इज़रायल पहली बार दुनिया के वजूद में आया. सन 1947 में संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव 181 पारित किया, जिसका मूल रूप बंटवारे को लेकर था.
इस प्रस्ताव के तहत ब्रिटिश राज वाले इस इलाके को दो भागों में बांट दिया गया, जिसमें एक अरब इलाका और दूसरा यहूदियों का इलाका माना गया. 14 मई, 1948 को संयुक्त राष्ट्र और दुनिया की नज़र में पहली बार इज़रायल देश का जन्म हुआ, इसी दिन हर साल इज़रायल अपना राष्ट्रीय दिवस मनाता है और जश्न मनाता है. इसी दिन इतिहास की पहली अरब-इज़रायली लड़ाई भी शुरू हो गई. ये लड़ाई करीब एक साल तक चली और 1949 में खत्म हुई जिसमें इज़रायल की जीत हुई थी.
अंत में सिर्फ इतना ही हुआ कि करीब साढ़े सात लाख फिलीस्तीनी लोगों को अपना इलाका छोड़ना पड़ा और अंत में ब्रिटिश राज वाला ये पूरा हिस्सा तीन भागों में बंट गया. जिसे इज़रायल, वेस्ट बैंक और गाज़ा पट्टी का नाम दिया गया. इज़रायल और मिडिल ईस्ट के देशों के बीच हुई कई जंगों में ये से पहली जंग थी, जिसे इज़रायल ने ही जीता था.
याद की जाती है 6 दिनों की जंग...
साल 1948 में इज़रायल के गठन के बाद से ही दोनों देशों में कटुता और भी बढ़ गई थी. दोनों ही देश दुनिया में अपने वजूद को स्थापित करने में लगे रहे और एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला भी जारी रहा. लेकिन इस जंग के करीब डेढ़ दशक के बाद एक ऐसा मौका आया, जब इज़रायल और पड़ोसी देशों में भयंकर युद्ध हुआ, ये जंग 6 दिनों तक चली थी. लेकिन अंत में जीत इज़रायल की ही हुई थी.
दोनों ओर से कौन लड़ रहा है जंग?
इज़रायल और फिलीस्तीन के बीच की जंग दोनों ओर से ही आक्रामक अंदाज में लड़ी जाती है. अगर एक तरफ से एक मिसाइल दागी जाती है, तो दूसरी ओर से उससे कई गुना अधिक ही मिसाइलें दाग कर जवाब दिया जाता है. लेकिन अगर संगठन के तौर पर जंग की बात करें तो इज़रायल की ओर से हर बार की तरह ही मोसाद ने मोर्चा संभाला हुआ है. मोसाद इज़रायल की खुफिया एजेंसी है, जो दुनिया की सबसे खौफनाक एजेंसी के तौर पर मानी जाती है. मोसाद अगर किसी दुश्मन को चुन ले तो खात्मा कर ही देती है, मोसाद के अलावा इज़रायल की अन्य सुरक्षा एजेंसियां फिलीस्तीन के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं.
दूसरी ओर अगर फिलीस्तीन की बात करें तो इस ओर से ये लड़ाई राजनीतिक तौर के अलावा हर उस मोर्चे से लड़ी जाती है, जिससे इज़रायल को मात दी जा सके. इन्हीं में एक हमास संगठन है, जिसे इज़रायल आतंकी संगठन कहता है. जबकि हमास खुद को एक राष्ट्रवादी संगठन बताता है, जो इज़रायल के वजूद को कभी नहीं मानता है. इज़रायल अक्सर यही आरोप लगाता है कि हमास ही उसके इलाकों में मिसाइलें दागता है. हमास का गठन 1987 में हुआ था और तभी से ये अलग-अलग तरीकों से इज़रायल को निशाना बनाने में जुटा हुआ है.
फिलीस्तीन का एक और संगठन जो आजादी के लिए संघर्ष कर रहा है, वह है लिबरेशन ऑफ फिलीस्तीन ऑर्गेनाइज़ेशन (PLO), जिसे यासीर अराफात चलाते थे. ये संगठन भी राजनीतिक और अन्य तौर-तरीकों से इज़रायल का विरोध करता आता है. दुनिया में फिलीस्तीन को मान्यता मिले और दुनिया इज़रायल के वजूद को नकार दे, राजनीतिक तौर पर यही संगठन दुनिया से संपर्क साधता रहा है.