National Solidarity Day 2022: 20 अक्टूबर 1962 को चीन की सेना ने लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार से भारतीय सैनिकों पर हमला शुरू किया था. लगभग एक महीने चले इस युद्ध (India-China War 1962) में वैसे तो हर एक जवान दुश्मन सैनिकों के लिए यमदूत बन गया था लेकिन इनमें से एक नाम ऐसा था जिनके हौंसले की कहानी आज भी रोंगटे खड़े कर देती है. राष्ट्रीय एकजुटता दिवस (National Solidarity Day 2022) पर हम बात कर रहे हैं उस योद्धा की जिसने 123 भारतीय सैनिकों की अगुवाई करते हुए 1300 चीनी सैनिकों को न सिर्फ बुरी तरह रौंदा बल्कि बचे हुए सैनिकों को उल्टे पैर भागने पर भी मजबूर कर दिया था.
चीनी सैनिकों की चाल
यह कहानी है रेजांग-ला में तैनात मेजर शैतान सिंहर और चीनी सेना के बीच हुई लड़ाई की. करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर हाड़ कंपा देने वाली ठंड और बर्फीली हवाओं के बीच कुमाऊं रेजीमेंट की 13वीं बटालियन के 123 जांबाज जवान चुशूल में रेजांग-ला पर पहरा दे रहे थे. 18 नवंबर की सुबह करीब साढ़े तीन बजे चीन की तरफ से रोशनी के साथ कारवां तेजी से आता दिखा. फायरिंग रेंज में आते ही भारतीय जवानों ने फायरिंग शुरू कर दी. जब तक दुश्मन की चाल का पता चलता तब तक सेना की गोलियां काफी हद तक खत्म हो चुकी थीं.
चीनी सैनिकों ने याक और घोड़ों के गले में लालटेन लटकाकर भारतीय सीमा की ओर दौड़ा दिया था. ताकि असला बारूद खत्म करवाया जा सके. उस वक्त 123 जवानों पर करीब 100 हथगोले, 300 से 400 राउंड गोलियां और कुछ पुरानी थ्री नॉट थ्री बंदूकें थी जबकि सामने 13000 से ज्यादा चीनी सैनिक सेल्फ लोडिंग राइफल्स, असलाह बारूद से लैस थे. लेकिन दुश्मन सेना को मेजर शैतान सिंह और उनकी बाटालियन का हौंसले का अंदाजा नहीं था.
जब मेजर ने कहा- जो जाना चाहता है जाए, जो मरना चाहता है मेरे साथ लड़े
सुबह चार बजे 7 पलटन के एक जवाब ने संदेश भेजा कि करीब 300 से 400 चीनी सैनिक उनकी पोस्ट की तरफ आ रहे हैं. तभी 8 पलटन के जवान ने भी मैसेज भेजा कि करीब 800 चीनी सैनिक उनकी पोस्ट की तरफ बढ़ रहे हैं. मेजर ने अधिकारियों से मदद मांगी लेकिन हालात को देखते हुए अधिकारियों ने उन्हें बटालियन के साथ पीछे हटने और जान बचाने का आदेश दे दिया. तब मेजर ने अपने जवानों से कहा.. जो जान बचाना चाहता है वो जा सकता है और जो मरना चाहता है वो मेरे साथ लड़े. तब सभी जवानों ने दुश्मन का सामना करने की ठान ली थी.
एक गोली के बदले मांगी एक चीनी सैनिक की जान
मेजर शैतान सिंह गोलियां चलाते रहे और बीच-बीच में हर पलटन के पास जाकर जवानों का हौंसला बढ़ाते रहे. उन्होंने जवानों से एक गोली के बदले एक चीनी सैनिक की जान मांगी. इस एक तरफा जंग में भारतीय जवान शहीद हो रहे थे और बचे हुए जवान घायल थे. मेजर शैतान सिंह भाटी खुद खून से लतपत थे. दो जवानों ने घायल मेजर को वापस ले जाने की कोशिश की लेकिन उन्होंने साफ इनकार कर दिया.
हाथ पर चोट लगी तो रस्सी से बांध पैर से की ताबड़तौड़ फायरिंग
घायल मेजर की बांह पर शेल का टुकड़ा लग गया था. एक सिपाही ने पट्टी बांधी, उन्होंने मशीन गन मंगवाई और उसके ट्रिगर को रस्सी से अपने पैर पर बंधवा लिया. उन्होंने रस्सी की मदद से अपने पैर से चीनी सैनिकों पर फायरिंग करनी शुरू दी. इस बीच एक गोली उनके पेट में लगी, आंखों के सामने अंधेरा छा रहा था, सांसें टूट रही थी लेकिन हौसला कम नहीं हुआ. उन्होंने सुबेदार रामचंद्र यादव से नीचे लौटने को कहा. मेजर शैतान सिंह भाटी और उनके 123 जवान चीन के हजारों सैनिकों पर भारी पड़े. जब आखिरी 20 जवान बचे तब उन्होंने अपनी खाइयों से बाहर निकलकर चीनी सैनिकों के साथ हाथ से लड़ना शुरू कर दिया. इस जंग में 123 सैनिकों में से 109 जवाब शहीद हो गए थे. मेजर शैतान सिंह भाटी की वीरता और देशप्रेम के लिए 1963 में मरणोपरांत भारत सरकार ने परमवीर चक्र से सम्मानित किया था.
बता दें कि भारत-चीन युद्ध 1962 में 1383 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे. वहीं चीन के लगभग 722 सैनिक मारे गए थे. 21 नवंबर 1962 को चीन ने युद्ध विराम की घोषणा नहीं की थी.
पिता से मिली देश सेवा की प्रेरणा
मेजर शैतान सिंह भाटी का जन्म 01 दिसंबर 1924 को राजस्थान के जोधपुर जिले के बंसाल गांव के एक राजपूत परिवार में हुआ था. 10वीं तक की पढ़ाई जोधपुर से हुई थी. शैतान सिंह स्कूल के दिनों में एक अच्छे फुटबॉल खिलाड़ी थे. 1947 में उन्होंने ग्रेजुएशन की. पिता लेफ्टिनेंट कर्नल हेम सिंह ने पहले विश्व युद्ध के दौरान फ्रांस में भारतीय सेना के साथ सेवा की थी और ब्रिटिश सरकार द्वारा ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर से सम्मानित थे. मेजर शैतान सिंह को बचपन में शायद उन्हीं से देश सेवा की प्ररेणा मिली होगी. इसलिए उन्होंने ग्रेजुएशन के दो साल बाद अगस्त 1949 में जोधपुर राज्य बल में अधिकारी के पद पर सेना ज्वाइन की.