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Twin Towers Demolition: क्‍यों, कब और कैसे? पढ़ें नोएडा ट्विन टावर डिमोलिशन से जुड़े 10 बड़े सवालों के जवाब

Noida Twin Tower Demolition: नोएडा सेक्‍टर 93 में बनी एमराल्‍ड कोर्ट की बिल्डिंग को रविवार दोपहर ध्‍वस्‍त कर दिया गया. इस इमारत को क्‍यों और कैसे धूल में मिलाया गया और क्‍या है इससे जुड़ा पूरा विवाद, इन 10 सवालों के जवाब में समझें.

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Noida Twin Towers Demolition:
Noida Twin Towers Demolition:

Twin Towers Demolition: भ्रष्‍टाचार की बुनियाद पर खड़ी नोएडा की गगनचुंबी इमारत ट्विन टावर आज दोपहर को जमींदोज कर दी गई. इसे लेकर तैयारियां पूरी की गई थीं और आम लोगों में भी इसे लेकर उत्‍साह दिखाई दिया. लगभग 800 करोड़ (करेंट मार्केट वैल्यू) की इस इमारत को क्‍यों और कैसे धूल में मिलाया गया और क्‍या है इससे जुड़ा पूरा विवाद, इन 10 सवालों के जवाब में समझें.

1. क्‍या है ट्विन टावर्स निर्माण को लेकर विवाद?
23 नवंबर 2004 को नोएडा प्राधिकरण ने सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के लिए जमीन आवंटन किया था. इसमें सुपरटेक बिल्डर को कुल 84,273 वर्गमीटर जमीन आवंटित की गई और 16 मार्च 2005 को इसकी लीज डीड हुई. उस दौरान जमीन की पैमाइश में लापरवाही के कारण कई बार जमीन बढ़ी या घटी हुई भी निकल आती थी. इसी के चलते यहां पर प्लॉट नंबर 4 में आवंटित जमीन के पास ही 6556.61 वर्गमीटर जमीन का एक टुकड़ा निकल आया, जिसे बिल्डर ने अपने नाम अलॉट करा लिया. इसके लिए 21 जून 2006 को लीज डीड की गई. लेकिन, इन दो अलग-अलग प्लॉट्स को नक्शा पास होने के बाद एक प्लॉट बना दिया गया जिसपर सुपरटेक ने एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट लॉन्च कर दिया.

2. क्‍यों बार बार बढ़ रही थी इमारत की ऊंचाई?
नक्शे के हिसाब से आज जिस स्थान पर 32 मंजिला ट्विन टावर खड़े हैं, वहां पर ग्रीन पार्क दिखाया गया था. इस प्रोजेक्ट में बिल्डर ने 11 मंजिल के 16 टावर्स बनाने की योजना तैयार की थी. 2008-09 में इस प्रोजेक्ट को नोएडा प्राधिकरण से कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी मिल गया. लेकिन इसी बीच 28 फरवरी 2009 को उत्तर प्रदेश शासन के नए नियम के चलते बिल्डरों को अधिक फ्लैट्स बनाने की छूट मिल गई. इसके बाद सुपरटेक ग्रुप को भी इस बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई. लेकिन इसके बाद तीसरी बार जब फिर से रिवाइज्ड प्लान में बिल्डिंग की ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के साथ ही 121 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति सुपरटेक को मिली तो होम बायर्स का सब्र टूट गया.

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3. होम बायर्स ने क्‍यूं शुरू किया विरोध?
RWA ने बिल्डर से बात करके नक्शा दिखाने की मांग की. लेकिन बायर्स के मांगने के बावजूद बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया. तब RWA ने नोएडा अथॉरिटी से नक्शा देने की मांग की. यहां भी बायर्स को कोई मदद नहीं मिली. कानूनी लड़ाई में शामिल रहे प्रोजेक्ट के निवासी यू बी एस तेवतिया का कहना है कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलीभगत करके ही इन टावर्स के निर्माण को मंजूरी दी थी. उनका आरोप है कि नोएडा अथॉरिटी ने नक्शा मांगने पर कहा कि वो बिल्डर से पूछकर नक्शा दिखाएगी, जबकि किसी भी निर्माण की जगह पर नक्शा लगा होना अनिवार्य है. इसके बावजूद बायर्स को प्रोजेक्ट का नक्शा नहीं दिखाया गया. बायर्स का विरोध बढ़ने के बाद सुपरटेक ने इसे अलग प्रोजेक्ट बता दिया.

4. क्‍यों अवैध है टावर्स का निर्माण?
टावर्स की ऊंचाई बढ़ने पर दो टावर के बीच दूरी को बढ़ाया जाता है. खुद फायर ऑफिसर ने कहा कि एपेक्स और सियाने टावर के बीच की न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए. लेकिन एमराल्ड कोर्ट के टावर एक दूसरे से महज 9 मीटर दूर हैं. जब मामला हाईकोर्ट पहुंचा तब इमारत सिर्फ 13 मंजिल ऊंची थी. कोर्ट के आदेश से पहले काम निपटा देने की नीयत से बिल्‍डर ने दोगुना तेजी से काम शुरू कर दिया और महज़ डेढ़ साल में 32 मंजिलों का निर्माण पूरा कर दिया. इसके बाद कोर्ट का आदेश आ गया और काम रुक गया. जानकारों के अनुसार, अगर टावर 24 मंजिल पर रुक जाते तो 2 टावर्स के बीच की दूरी का नियम टूटने से बच जाता और यह मामला सुलझ सकता था.

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5. कैसे कोर्ट पहुंचा पूरा मामला?
कोई रास्ता दिखाई न देने के बाद, 2012 में बायर्स ने इलाहाबाद हाई कोर्ट जाने का फैसला किया. कोर्ट के आदेश पर पुलिस जांच के आदेश दिए गए और पुलिस जांच में बायर्स की बात को सही पाया गया. तेवतिया का कहना है कि इस जांच रिपोर्ट को भी दबा दिया गया. इस बीच बायर्स अथॉरिटी के चक्कर लगाते रहे लेकिन वहां से नक्शा नहीं मिला. इस बीच खानापूर्ति के लिए अथॉरिटी ने बिल्डर को नोटिस तो जारी किया लेकिन कभी भी बिल्डर या अथॉरिटी की तरफ से बायर्स को नक्शा नहीं मिला.

6. कोर्ट ने क्‍या लिया फैसला?
कोर्ट ने माना कि होम बायर्स की सभी दलीलें सही थीं. बिल्डिंग का निर्माण अवैध तरीके से किया गया. टावर्स की ऊंचाई तय नियम से अधिक बढ़ाई गई. ऐसे में इन टावर्स को कानूनी देखरेख में ध्‍वस्‍त करने का आदेश दिया गया. इसमें होने वाला खर्च भी एमराल्‍ड को वहन करना होगा.

7. सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, टावर्स को पहले 21 अगस्‍त को गिराया जाना था, मगर नोएडा प्राधिकरण के अनुरोध के बाद इसकी तारीख 28 अगस्‍त कर दी गई. इमारत को आज 28 अगस्‍त को कंट्रोल्‍ड ब्‍लास्टिंग की मदद से दोपहर 2:30 बजे गिरा दिया गया.

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8. कितना होगा बिल्डिंग गिराने में खर्च?
ट्विन टावर्स को गिराने में करीब 17.55 करोड़ रुपये खर्च होंगे. यह खर्च भी बिल्‍डर से ही वसूला जाएगा. बता दें कि दोनों टावर्स के निर्माण में बिल्‍डर ने लगभग 300 करोड़ रुपये खर्च किए थे. हालांकि, इसकी इवेल्‍युएशन बढ़कर 800 करोड़ हो चुकी है.

9. सिलसिलेवार धमाकों से दोनों टावर जमींदोज़

बिल्डिंग गिराने का काम एडिफाइस (Edifice) कंपनी को सौंपा गया था. कंपनी के भारतीय ब्‍लास्‍टर चेतन दत्‍ता तय समय पर डेटोनेटर का बटन दबाया और पूरी इमारत सिलसिलेवार धमाकों के चलते जमींदोज़ हो गई.

10. कैसे सुरक्षित किया गया ब्‍लास्टिंग एरिया?
चेतन दत्‍ता ने बताया था कि डायनमो से करेंट पैदा किया जाएगा और फिर बटन दबाते ही सभी शॉक ट्यूब्‍स् में 9 सेकेंड में डेटोनेटर एक्टिव हो जाएंगे और पूरी बिल्डिंग गिर जाएगी. ब्‍लास्‍टर की टीम इलाके से लगभग 50-70 मीटर दूर रहेगी. ब्‍लास्टिंग एरिया को लोहे की जाली की 4 परतों और कंबल की 2 परतों से ढका जाएगा. इससे इमारतों का मलबा नहीं उड़ेगा, हालांकि, धूल उड़ सकती है. धड़ाम के वक्त भी कुछ ऐसा ही नजारा था.

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