बात 21 दिसंबर साल 1902 की है. मैरी और पियरे को अपनी प्रयोगशाला में साथ काम करते हुए पूरे तीन साल नौ महीने बीत चुके थे. आखिर एक दिन दानों ने पीचब्लेंड के शुद्ध किए अंश में कुछ चमकते कण देखे. आसमान में जैसे तारे चमकते हैं, वैसे ही. अपने पूरे सौंदर्य सहित रेडियम आज मानव की पकड़ में आ गया था. मैरी और पियरे ने इसे मापकर देखा, उसका परमाणु भार 226 था.
यह रेडियम की खोज वाला दिन था जब दोनों पति-पत्नी को दुनिया में सफलता के नये मुकाम पर पहुंचने की मानों सीढ़ी मिल गई थी. गीता बंदोपाध्याय ने अपनी किताब में मैरी की पूरी कहानी लिखी है, जिसमें उन्होंने रेडियम के अविष्कार का भी जिक्र किया है. वो लिखती हैं कि इस एक खोज के साथ ही अब तो जैसे पूरे वैज्ञानिक जगत ने मैरी और पियरे के सम्मान में सिर झुका दिया. रेडियम के अविष्कार से वैज्ञानिकों को ऐसी अजीब अजीब बातें मालूम हुई कि उन्हें तुम विज्ञान का जादू भी कह सकते हो. उन्हें मालूम हुआ कि रेडियम और दूसरे जिन रेडियो एक्टिव मूल तत्वों का पता लगा है, उनका एक और भी गुण है. गुण यह कि अपने भीतर से तेज बिखेरते बिखेरते वे दूसरे तत्वों में बदल जाते हैं. इससे पहले वैज्ञानिक समझते थे कि मूल तत्व सदा एक जैसे रहते हैं, कभी किसी तरह बदलते नहीं, लेकिन रेडियम ने उनकी इस धारणा को भी बदल दिया.
रसायन विज्ञान के इतिहास में रेडियम के अविष्कार का बहुत भारी महत्व था. मूल तत्व के गठन को जांचते जांचते मालूम हुआ कि उसके केंद्र में दो तरह के कण जुड़े होते हैं. एक होता है न्यूट्रॉन और दूसरा प्रोटॉन. रेडियम के केंद्र में बहुत सारे न्यूट्रॉन-प्रोटान होते हैं.
उन्होंने लिखा कि ये तो हुआ वैज्ञानिक पहलू, लेकिन जिस रात मैरी और पियरे ने रेडियम का अविष्कार किया, सोचो दोनों उस रात कैसे लग रहे होंगे. काम के पीछे पागल दो व्यक्ति, कवि या दार्शनिक जैसे, परस्पर प्रेम और अनुभूति में डूबे दो निराले जीव. मेरी अभी घर लौटी ही थी कि बेटी आइरीन ने मां... मां.. की रट लगा दी. मेरी उसके सिरहाने बैठीं और मीठी मीठी थपकियां देकर सुलाया. वो सो गई तो मेरी उसकी फ्रॉक सीने लगी. सीते सीते उन्होंने अचानक अपने पति पियरे से कहा कि 'चलो, एक बाद फिर उसे देख आएं'
टूटी-फूटी बर्फ जैसी ठंडी प्रयोगशाला, उसमें भी था नन्हा शिशु 'रेडियम' , वो भी मां मां पुकार रहा था. प्रयोगशाला में दोनों पहुंचे तो मैरी ने पियरे को रोकते हुए कहा कि लाइट मत जलाना. प्रयोगशाला में घुप्प अंधेरा था. इस अंधेरे में बूंद-बूंद रेडियम की चमकती आंखें ऐसी लग रही थीं जैसे कोई नन्हा शिशु उनकी ओर टकटकी बांधे देख रहा रहो. कड़ी मेहनत के चार साल! इन चार वर्षों के बाद प्रकृति के हाथों से उन्होंने रेडियम के जो गिने चुने कण छीने थे, वे सचमुच अनमोल थे. घर पर जैसे बेटी आइरीन के मुंह की ओर दोनों स्नेह से देखते रह गए थे, ठीक वैसे ही चमकीले रेडियम के कणों पर दोनों की आंखें गड़ी थीं. आखिर में चुप्पी तोड़ते हुए मेरी ने कहा कि, 'अहा! देखो कितना सुंदर है!'.
मैडम क्यूरी और पियरे को मिला नोबेल पुरस्कार
आपको यह भी बता दें कि रेडियम के अविष्कार ने दुनिया के बहुत देशों में हलचल पैदा कर दी थी. लेकिन फ्रांस ही एक ऐसा देश था जहां शुरू शुरू में इस अविष्कार की कद्र नहीं हुई, पियरे को नौकरी में कोई तरक्की नहीं हुई. जहां थे, वहीं रहे. मामूली टीचर की तनख्वाह, घर का सारा खर्च और मैरी को विश्वविद्यालय में काम दिलाने की समस्या. रेडियम की खोज करके मैरी वहां पहुंच गई थीं जहां उस दौर में कोई स्त्री इनते ऊंचे आसन पर नहीं बैठ सकी थी, खासकर वैज्ञानिकों के बीच. 1902 में हुई इस खास खोज को चंद ही दिनों में हर जगह पहचान मिलने लगी. साल 1903 में पति-पत्नी दोनों को इसके लिए नोबल प्राइज भी मिला. हालांकि मैरी क्यूरी को 1911 में एक बार फिर नोबल प्राइज मिला था.
कैंसर के इलाज में इस्तेमाल
बता दें कि रेडियम की खोज ने उस जमाने में कैंसर का इलाज आसान बना दिया था. रेडियम आमतौर पर रेडियम क्लोराइड या रेडियम ब्रोमाइड के रूप में होता है, जिसका उपयोग दवा में रेडॉन गैस का उत्पादन करने के लिए किया जाता है और यह कैंसर के उपचार को बहुत ही आसान बना देता है. वैसे कैंसर की इलाज के लिए दवाओं में आज भी रेडियम का उपयोग किया जाता है.
(भारत ज्ञान विज्ञान समिति की पुस्तक 'रेडियम महिला मारी क्यूरी' से यहां कई तथ्य लिए गए हैं. यह किताब गीता बंदोपाध्याय ने लिखी थी, जिसका अनुवाद त्रिभुवन नाथ ने किया है.)