scorecardresearch
 

कम कमाई, दिन-रात मेहनत: डिलीवरी पार्टनर्स की हड़ताल, ये है असली हाल

घर-घर सामान पहुंचाने वाले डिलीवरी पार्टनर्स ने नए साल की पूर्व संध्या पर हड़ताल कर अपनी मुश्किलों को उजागर करेंगे. लंबे घंटे, कम कमाई और लगातार बढ़ते डिलीवरी टारगेट्स ने वर्कर्स पर दबाव इतना बढ़ा दिया कि कई महीनों से उनकी इनकम और सुरक्षा को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. रिपोर्ट बताती है कि अधिकांश वर्कर्स रोज़ाना ₹400 से कम कमाई करते हैं, छुट्टी लेना उनके लिए मुश्किल है और कंपनियों से पर्याप्त सपोर्ट नहीं मिलता.

Advertisement
X
भारत में डिलीवरी पार्टनर्स का हाल बताती है ये रिपोर्ट (Photo - Pixabay)
भारत में डिलीवरी पार्टनर्स का हाल बताती है ये रिपोर्ट (Photo - Pixabay)

घर-घर सामान पहुंचाने वाले डिलीवरी वर्कर्स ने पिछले कुछ सालों में शहरी जीवन की रफ्तार बदल दी है. किराना, पार्सल और तैयार भोजन की होम डिलीवरी अब रोज़मर्रा की जरूरत बन चुकी है, खासकर कोविड-19 महामारी के बाद. इसी बदलाव के साथ ऐप-आधारित डिलीवरी प्लेटफॉर्म्स पर काम करने वाले वर्कर्स की संख्या में भी लगातार बढ़ोतरी देखी गई है. नीति आयोग के अनुमान के मुताबिक, 2030 तक भारत में डिलीवरी पार्टनर्स की संख्या 2.3 करोड़ तक पहुंच सकती है.

त्योहारों और पीक सीज़न के दौरान इनकी डिमांड और भी बढ़ जाती है, लेकिन वर्कर्स की सैलरी, काम के घंटे और बेसिक सुरक्षा को लेकर सवाल बने हुए हैं. इन चिंताओं को उजागर करने के लिए, इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स ने नए साल की शाम पर हड़ताल की घोषणा की, जिससे क्रिसमस की डिलीवरी भी प्रभावित हुई थी.

यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, कई डिलीवरी वर्कर्स लंबे समय तक काम करने के बावजूद सीमित कमाई कर पा रहे हैं. ईंधन, वाहन रखरखाव और अन्य खर्चों को निकालने के बाद, कई वर्कर्स के हाथ रोज़ाना सिर्फ कुछ सौ रुपये ही बचते हैं और उन्हें ज्यादा पैसे कमाने के लिए वे छुट्टी भी नहीं लेते. रिपोर्ट बताती है कि ज़्यादातर डिलीवरी पार्टनर्स कम दैनिक आय वाले वर्ग में आते हैं.

Advertisement

DIU

आंकड़े बताते हैं कि ज़्यादातर डिलीवरी पार्टनर्स की रोज़ाना कमाई सीमित रहती है. लगभग 30 प्रतिशत लोग दिन भर में ₹201 से ₹400 ही कमा पाते हैं, जबकि 20 प्रतिशत की कमाई ₹401 से ₹600 के बीच रहती है. ठीक-ठाक कमाई करने वालों की संख्या कम है, सिर्फ़ 15 प्रतिशत डिलीवरी पार्टनर्स ₹601 से ₹800 और केवल 10 प्रतिशत ही ₹801 से ₹1,000 तक रोज़ कमा पाते हैं. इसका मतलब यह है कि लंबे समय तक काम करने और महंगाई बढ़ने के बावजूद, ज़्यादातर डिलीवरी वर्कर्स की आमदनी न तो ज़्यादा है और न ही स्थिर.

एक आर्डर पर कितनी कमाई?

अगर हर डिलीवरी से होने वाली कमाई देखें तो स्थिति और साफ़ हो जाती है. करीब 35 प्रतिशत डिलीवरी पार्टनर्स को एक ऑर्डर पूरा करने पर सिर्फ़ ₹16 से ₹20 मिलते हैं. लगभग 25 प्रतिशत को ₹21 से ₹25 प्रति डिलीवरी मिलते हैं. यानी कुल मिलाकर ज़्यादातर डिलीवरी पार्टनर्स हर ऑर्डर पर ₹25 से भी कम कमाते हैं. ज़्यादा भुगतान पाने वाले बहुत कम हैं-सिर्फ़ 10 प्रतिशत को ₹36 से ₹40 प्रति डिलीवरी मिलते हैं और महज़ 3 प्रतिशत को ही ₹50 से ज़्यादा मिल पाता है

छुट्टी पर जाना मतलब इनकम घटना

इस नौकरी में छुट्टी लेना एक और बड़ी चुनौती है. लगभग आधे डिलीवरी पार्टनर, 48.72%, कहते हैं कि वे बिल्कुल भी छुट्टियां नहीं लेते हैं. सिर्फ़ 21.63% ही ठीक से छुट्टी ले पाते हैं, जबकि 29.66% कहते हैं कि वे सिर्फ़ कभी-कभी ब्रेक लेते हैं. यह दिखाता है कि डिलीवरी पार्टनर के लिए काम से दूर रहना कितना मुश्किल है, क्योंकि दिन मिस करने का मतलब अक्सर इनकम का नुकसान होता है.

Advertisement

डिलीवरी नोटिफिकेशन का लंबा इंतजार

डेटा डिलीवरी वर्कर्स के लिए वेटिंग टाइम भी एक बड़ी समस्या है. आधे डिलीवरी पार्टनर को काम मिलने से पहले लगभग एक घंटा इंतज़ार करना पड़ता है, जबकि 43% दो घंटे इंतज़ार करते हैं. दूसरे 35% तीन घंटे तक इंतज़ार करने की बात कहते हैं और कुछ तो डिलीवरी पाने के लिए चार से पांच घंटे या उससे भी ज़्यादा इंतज़ार करते हैं. कई बार दिन का लंबा समय बिना किसी इनकम के बीत जाता है, भले ही वर्कर्स उपलब्ध हों और लॉग इन हों. असल में यह इस बात पर भी निर्भर करते हैं कि उस एरिया में लोग कितने आर्डर कर रहे हैं.

DIU

महीने में कितना कमा लेते हैं डिलीवरी पार्टनर्स

डिलीवरी वर्कर्स की महीने की कमाई भी ज़्यादा नहीं होती. करीब 44 प्रतिशत वर्कर्स महीने में ₹10,000 से भी कम कमा पाते हैं. लगभग 30 प्रतिशत की कमाई ₹10,000 से ₹15,000 के बीच रहती है. सिर्फ़ 20 प्रतिशत लोग ही ₹15,000 से ₹20,000 तक पहुंच पाते हैं और बहुत कम—महज़ 5 प्रतिशत—₹20,000 से ₹25,000 के बीच कमा पाते हैं. साफ़ है कि दिन-रात मेहनत करने के बाद भी ज़्यादातर वर्कर्स की महीने की इनकम कम और अनिश्चित रहती है.

काम के दौरान परेशानी और कस्टमर का व्यवहार

Advertisement

कमाई के अलावा, काम के माहौल में भी कई दिक्कतें हैं. करीब 41 प्रतिशत डिलीवरी पार्टनर्स कहते हैं कि उन्हें काम के दौरान हिंसा या बदसलूकी का सामना करना पड़ा है. वहीं 58 प्रतिशत का कहना है कि उनके साथ ऐसा नहीं हुआ. कस्टमर का व्यवहार भी वर्कर्स पर असर डालता है, लगभग 44 प्रतिशत लोगों का कहना है कि इसका उन पर सीधा और नकारात्मक असर पड़ता है, और 23 प्रतिशत कहते हैं कि यह उन्हें कुछ हद तक प्रभावित करता है. सिर्फ़ 32 प्रतिशत को लगता है कि कस्टमर के व्यवहार से उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

सबसे बड़ी बात यह है कि ऐसी घटनाओं के बाद भी कंपनियों से ज़्यादा मदद नहीं मिलती. 64 प्रतिशत से ज़्यादा डिलीवरी वर्कर्स का कहना है कि उन्हें कंपनी की तरफ़ से कोई सपोर्ट नहीं मिलता. सिर्फ़ 17 प्रतिशत को मदद मिलने की बात कहते हैं, जबकि बाकी लोग खुद भी नहीं जानते कि उन्हें सपोर्ट मिलेगा या नहीं.

10-मिनट डिलीवरी टारगेट का दबाव 

बहुत तेज़ी से डिलीवरी का आइडिया भी दबाव बढ़ाता है. 85 प्रतिशत डिलीवरी पार्टनर्स को 10-मिनट की इंस्टेंट डिलीवरी बिल्कुल भी मंज़ूर नहीं है, जो दिखाता है कि ज़मीनी स्तर पर ऐसे टारगेट कितने अवास्तविक और जोखिम भरे लगते हैं. काम के पैटर्न की बात करें तो, ज़्यादातर डिलीवरी पार्टनर्स फुल टाइम काम करते हैं, 91% खुद को फुल-टाइम वर्कर बताते हैं. काम के घंटे लंबे होते हैं, आधे से ज़्यादा लोग दिन में 10-12 घंटे काम करते हैं, और लगभग 20% लोग 12-14 घंटे काम करते हैं. छुट्टियां कम मिलती हैं. सिर्फ़ 25% को ही रेगुलर हफ़्ते में छुट्टी मिलती है, जबकि लगभग आधे लोगों को कोई छुट्टी नहीं मिलती. कुछ लोगों को छुट्टियां मिलती हैं, और बाकी लोगों को ये कभी-कभी ही मिलती हैं.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement