पाकिस्तान के जेल में बंद पूर्व पीएम इमरान खान इन दिनों वहां एक मुद्दा बने हुए हैं. उनके परिवार का आरोप है कि काफी दिनों से उन्हें इमरान खान से मिलने नहीं दिया गया है. इस वजह से अब उनकी जान की सुरक्षा का परिवार वालों को डर सताने लगा है. वहीं दूसरी ओर इमरान के समर्थक सड़कों पर उतर आए हैं.
पाकिस्तान में इमरान को लेकर बने हालात के बीच कई सवाल उठते हैं. क्या इमरान के समर्थक पाकिस्तान में एक सियासी तूफान ला सकते हैं, जिसे रोक पाना आसिम मुनीर के बस की बात भी नहीं होगी? आखिर इमरान के समर्थकों के गुस्से से पाकिस्तान के सियासी गलियारों में सन्नाटा क्यों छा जाता है? क्या इमरान की पकड़ वाले खैबर पख्तून इलाके का पूरे देश में दहशत है या फिर इमरान उस कबीले से आते हैं, जिसका कनेक्शन अफगानिस्तान से भी है.
इन सवालों के जवाब ढूंढते हुए इमरान खान के पाकिस्तान के एक खास इलाके और कबीलाई लोगों में मजबूत पकड़ की बात सामने आती है, जिनके गुस्से से पाकिस्तानी सेना भी डरती है.
2023 से अदियाला जेल में बंद हैं इमरान
इमरान खान 2023 से अदियाला जेल में बंद हैं. भ्रष्टाचार के मामले सहित विरोध प्रदर्शन से जुड़े आतंकवाद विरोधी कानून के तहत उन पर लगाए गए आरोपों का भी उन्हें सामना करना पड़ रहा है. अभी जब अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर दोनों देशों के बीच झड़पें शुरू हुई तो इमरान खान ने पाक सरकार को एक ऑफर दिया.
अफगानिस्तान से सुलह कराने का इमरान ने क्यों दिया ऑफर
डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, इमरान के साथ बैठक के बाद अदियाला जेल के बाहर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए बैरिस्टर गोहर ने कहा कि,इमरान ने यह संदेश भेजा है. मैं आप लोगों को प्रस्ताव देता हूं कि मुझे पैरोल पर रिहा कर दें और मैं आपके लिए अफगानिस्तान समस्या का समाधान कर दूंगा.
कुछ समय पहले इमरान की बहन नोरीन नियाजी ने भी यही बात कही थी, जिन्होंने कहा था कि पीटीआई संस्थापक को अफगान शरणार्थियों को जल्दबाजी में वापस भेजने से दुख हुआ है, जबकि पाकिस्तान ने दशकों तक उन्हें शरण दी थी.
नोरीन के अनुसार, इमरान ने कहा कि शांति स्थापित करना राजनेताओं का काम है और उन्होंने पैरोल पर रिहा होने पर इस प्रयास में अपनी भूमिका निभाने की पेशकश की.
अफगानिस्तान से पाकिस्तान में बस गया था नियाजी कबीला
इमरान खान का जन्म 1952 में खैबर पख्तूनख्वा मियांवाली में इकरामुल्लाह खान नियाज़ी और शौकत खानम के घर हुआ था. उनके पिता शेरमनखेल वंश के पश्तून नियाजी कबीले के वंशज थे. सैकड़ों साल पहले नियाजी कबीला अफगानिस्तान से आकर खैबर पख्तूनख्वा के मियांवली इलाके में बस गया था. आज भी दोनों देशों में फैले इस कबीले के लोगों के बीच एक सदभाव कायम है.
लड़ाका ट्राइब है नियाजी कबीला
नियाजी खुद को खूंखार लड़ाका मानते हैं. यह हमेशा युद्ध के लिए तैयार रहने वाले लड़ाके होते हैं. इनका इतिहास भी कुछ इस तरह का ही है. इसलिए इस पश्तून कबीले से उलझने से पहले पाक सेना को भी सोचना पड़ता है.
नियाजियों पर इमरान की पकड़ काफी मजबूत है
इन दिनों खैबर पख्तूनख्वा के कुर्रम जिले में पाकिस्तानी सेना और अफगान तालिबान के बीच रह-रहकर झड़प हो रही है. दोनों तरफ के लोग एक ही कबीले के लोग हैं. इनके बीच सिर्फ दो देशों को अलग करने वाली सीमा की एक लकीर खींच दी गई है. बाकी, सांस्कृतिक रूप से दोनों तरफ के लोग एक हैं और इन लोगों पर इमरान की पकड़ काफी मजबूत है. इमरान खान की नियाजियों के साथ-साथ अन्य पश्तूनों पर अच्छी पकड़ है.
पाकिस्तान से अफगानिस्तान तक फैली है इनकी साझी विरासत
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पश्तूनों को दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम कबीला माना जाता है. यहां कम से कम 30 प्रमुख जनजातियाँ और अनगिनत उपजातियां और कुल हैं. नियाजी इनमें से ही एक है.
पश्तून, एक विशाल भौगोलिक क्षेत्र में फैले और सामाजिक-आर्थिक, राजनीतिक, जनजातीय और भाषाई मतभेदों से बंटे हैं. फिर भी पश्तून एक विशिष्ट पहचान की भावना साझा करते हैं. पश्तूनों की पहचान के चार तत्व महत्वूर्ण है - विरासत (एक ही पूर्वज की संतान), इस्लाम (99.9% मुस्लिम), पश्तूनवाली सम्मान संहिता और भाषा (पख्तू या पश्तो).
क्या इमरान के साथ है अफगानिस्तान की सहानुभूति
ऐसे में समझा जा सकता है कि आखिर क्यों इमरान खान अफानिस्तान के साथ सुलह कराने में मदद करने का प्रस्ताव पाकिस्तान सरकार को दिया था. इमरान से अफगानिस्तान का एक बड़ा जनजातीय समूह सांस्कृतिक और जातीय सहानुभूति रखता है. यही वजह है कि अगर पाकिस्तान में इमरान के लोग सड़कों पर उतरते हैं तो अंदर ही अंदर उन्हें अफगानी कबिलाईयों का समर्थन भी मिल सकता है.
इमरान खान क्यों नहीं करते नाम में नियाजी का इस्तेमाल
इमरान खान अकेले नियाजी कबीले से आने वाले पाकिस्तान के प्रबुद्ध शख्सियत नहीं हैं. इनसे पहले पाकिस्तान के एक जनरल इसी नियाजी कबीले से हुए थे, जिन्हें उनके देश में हिकारत की निगाह से देखा जाता है. इनका नाम था लेफ्टिनेंट जनरल एके नियाजी.