Ambedkar Jayanti 2023: आधुनिक भारत के शिल्पकारों में से एक बाबासाहब भीमराव आंबेडकर देश के सबसे महान राजनेताओं में से एक हैं. बचपन से ही जातिगत भेदभाव का शिकार हुए भीमराव ने समाज को छूआछूत और अस्पृश्यता से छुटकारा दिलाने में ही अपना जीवन लगा दिया. उन्होंने पाया कि देश की आबादी के बड़े हिस्से को नीचा और पिछड़ा बताकर विकास की धार से अलग रखा जा रहा है. उन्होंने कानून के तहत, हर जाति के लोगों को पढ़ाई और नौकरी में आरक्षण दिलाने का काम किया. आज उनकी जयंती के मौके पर बताते हैं उनके बचपन का वो किस्सा, जिसका उनके जीवन पर गहरा असर पड़ा.
क्रिस्तोफ़ जाफ़्रलो द्वारा लिखी गई उनकी जीवनी के अनुसार, बचपन में एक बार भीमराव अपने भाई और बहन के साथ रेल में सवार होकर अपने पिता से मिलने के लिए रवाना हुए. उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में सिपाही थे और एक छावनी में काम करते थे. जब वह ट्रेन से उतरे तो स्टेशन मास्टर ने उन्हें पास बुलाकर कुछ पूछताछ की. जैसे ही स्टेशन मास्टर को उनकी जाति का पता चला, वह 5 कदम पीछे हट गया.
इसके आगे जाने के लिए उन्होंने तांगा लेने की कोशिश की, मगर कोई तांगेवाला उनकी जाति के चलते उन्हें ले जाने को तैयार नहीं होता था. एक तांगावाला तैयार हुआ मगर उसने शर्त रखी कि तांगा बच्चों को खुद ही हांकना होगा. भीमराव खुद तांगे को हांककर ले गए. बीच रस्ते तांगेवाला तो खुद उतरकर एक ढाबे पर उतरकर भोजन करने लगा, मगर बच्चों को अंदर नहीं घुसने दिया गया. उन्हें पास ही बह रही एक रेतीली धारा से अपनी प्यास बुझानी पड़ी.
भीमराव के दिलो-ज़ेहन में अपने हालात का यह भीषण एहसास बेहद तीखा घाव कर गया. वह समझ गए कि छूआछूत की दीवार को गिराने के लिए शिक्षा की चोट करनी जरूरी है. उन्होंने बम्बई से मेट्रिकुलेशन की और फिर वजीफ़ा पाकर BA किया. छात्रवृत्ति के दम पर ही वह अमेरिका और फिर लंदन पढ़ने गए. उनकी अकादमिक उपलब्धियों के चलते उन्होंने अंग्रेजो का ध्यान अपनी ओर खींचा और आगे चलकर देश की राजनीति को बदलकर रख दिया.