आज दीनदयाल उपाध्याय की जयंती है. वे एक प्रखर विचारक, उत्कृष्ट संगठनकर्ता और एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे, जिन्होंने अपने जीवन में व्यक्तिगत ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को महत्व दिया. उनके ऐसे कई किस्से हैं, जो लोग उनकी ईमानदारी के बारे में सुनाते हैं, जिनमें एक किस्सा उनकी रेल यात्रा का है.
बताया जाता है कि एक बार पंडित दीनदयाल उपाध्याय रेल से यात्रा कर रहे थे. इत्तेफाक से उसी ट्रेन मे गुरू गोलवरकर भी यात्रा कर रहे थे और गोलवरकर को गोलवलकर को यह पता चला कि उपाध्याय भी इसी ट्रेन में हैं तो उन्होंने खबर भेजकर उनको अपने पास बुलवा लिया. उपाध्याय आए और लगभग एक घंटे तक सेकेंड क्लास के डिब्बे में गुरू गोलवलकर के साथ बातचीत करते रहे.
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उसके बाद वह अगले स्टेशन पर थर्ड क्लास के अपने डिब्बे में वापस चले गए. अपने डिब्बे में वापस जाते समय टीटीई के पास गए और बोले- श्रीमान मैंने लगभग एक घंटे तक सेकेंड क्लास के डिब्बे में ट्रैवेल किया है, जबकि मेरे पास थर्ड क्लास का टिकट है. नियम के हिसाब से मेरा एक घंटे का जो भी किराया बनता है. वह आप मेरे से ले लीजिए.
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पंडित जी की इस बात पर टीटीई ने कहा- कोई बात नहीं आप अपने डिब्बे में चले जाइए. आखिर जब दीनदयाल नहीं माने और पीछे ही पड़ गए तो टीटीई ने दो घंटे का किराया जोड़ा और उनसे ले लिया. बता दें कि उनकी मौत एक रेल यात्रा के दौरान ही हुई थी, जब मुगल सराय स्टेशन (अब दीनदयाल उपाध्याय स्टेशन) के पास रेलवे ट्रैक पर मिली थी.