Ambedkar Jayanti: भारत के संविधान निर्माता, समाज सुधारक डॉ. भीमराव अंबेडकर की आज (14 अप्रैल) जयंती है. उनका जन्म मध्य प्रदेश के महू में 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था. उन्होंने अपने जीवन में दलितों एवं दलित आदिवासियों के मंदिर प्रवेश, पानी पीने, छुआछूत, जातिपाति, ऊंच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों को मिटाने के लिए कई काम किए. अंबेडकर ने मनुस्मृति दहन (1927), महाड सत्याग्रह (1928), येवला की गर्जना (1935) आदि जैसे कई अहम आंदोलन चलाए, जिसमें लोगों का काफी सहयोग मिला.
29 अगस्त, 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के संविधान के लिए संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था और स्वतंत्रता के बाद, उन्हें भारत के कानून मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया. भारतीय संविधान लिखकर उन्होंने दलितों को शिक्षित करने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने का आग्रह किया. इसके अलावा, न सिर्फ सभी को समान अधिकार दिए, बल्कि हिंदू ब्राह्मणों के एकाधिकार को भी समाप्त कर दिया.
अंबेडकर ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधियां प्राप्त कीं. इसके अलावा, विधि, अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में शोध कार्य भी किए थे. वे अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे और वकालत भी की. उन्होंने कमजोर वर्गों के छात्रों को अध्ययन करने और आय अर्जित करने के लिए उनको सक्षम बनाया. साल 1945 में उन्होंने पीपुल्स एजुकेशन सोसायटी के जरिए मुंबई में सिद्धार्थ महाविद्यालय और औरंगाबाद में मिलिंद महाविद्यालय की स्थापना की.
उन्होंने शोषितों को जागरूक करने के लिए कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया. साल 1927 से 1956 के बीच मूल नायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत नामक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया.
छुआछूत के खिलाफ लड़ी लड़ाई
छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले अंबेडकर का कहना था कि 'छुआछूत गुलामी से भी बदतर है.' बॉम्बे हाई कोर्ट में विधि का अभ्यास करते हुए उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बढ़ावा देने की काफी कोशिशें कीं. उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जुलूसों द्वारा पेयजल के संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिए खुलवाने के साथ अछूतों को भी मंदिर में प्रवेश दिलानें के लिए संघर्ष किया.
हिंदू धर्म को त्याग अपना लिया बौद्ध धर्म
बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया. 1950 के दशक में ही वे बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए श्रीलंका चले गए. बौद्ध धर्म अपनाने के दौरान उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएं लीं.