मुंबई 26/11 हमले इसलिए हुए कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी भारत के खिलाफ परमाणु हथियार का पहले इस्तेमाल नहीं (No First Use - NFU) करना चाहते थे. इस बात से नाराज होकर पर पाकिस्तान सेना और आईएसआई ने भारत पर हमला करने लिए ठानी. जरदारी के प्रवक्ता का कहना है कि मुंबई 26/11 हमले पाकिस्तान के राष्ट्रपति के भारत को परमाणु हथियारों का 'नो फर्स्ट यूज' प्रस्ताव का जवाब थे.
'द जरदारी प्रेसिडेंसी: नाउ इट मस्ट बी टोल्ड' नाम की किताब में फरहतुल्लाह बाबर लिखते हैं कि जरदारी ने दिल्ली में एक मीडिया हाउस द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में वरिष्ठ भारतीय पत्रकार करण थापर को सैटेलाइट लिंक से साक्षात्कार देते हुए यह एनएफयू प्रस्ताव दिया.
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भारत और पाकिस्तान ने मई 1998 में कुछ दिनों के अंदर परमाणु हथियारों का परीक्षण किया था. भारत की परमाणु नीति कहती है कि वह किसी भी संघर्ष में परमाणु हथियारों का पहला इस्तेमाल नहीं करेगा. पाकिस्तान की कोई ऐसी नीति नहीं है. उसके नेताओं ने भारत के साथ युद्ध की शुरुआत में परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की खुली धमकी दी है. पाकिस्तान एकमात्र परमाणु हथियार वाला देश है जहां सेना सीधे परमाणु हथियारों को नियंत्रित करती है.

पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की कथित 'रेड लाइन्स' 2002 में लेफ्टिनेंट जनरल खालिद किदवई ने बताई थीं. वे पाकिस्तान की सेना के स्ट्रेटेजिक प्लान्स डिवीजन के प्रमुख थे. सभी इस्तेमाल के मामले भारत की पारंपरिक कार्रवाइयों के जवाब में है- जैसे क्षेत्र पर कब्जा, सैन्य हमले, राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक युद्ध.
बाबर लिखते हैं कि उस (जरदारी के) साक्षात्कार के चार दिनों के अंदर 26 नवंबर 2008 को बंदूकधारियों ने मुंबई में तीन दिनों तक समन्वित हमले किए. उन्होंने दो होटलों, एक यहूदी केंद्र, एक पर्यटक रेस्तरां और एक व्यस्त ट्रेन स्टेशन को निशाना बनाया, जिसमें 166 लोग मारे गए. पाकिस्तानी जांचकर्ताओं ने पाया कि हमलावर पाकिस्तानी जमीन से लॉन्च किए गए थे. इसने दोनों देशों को वर्षों में युद्ध के सबसे करीब ला दिया था. शांति की सभी आशाओं को चकनाचूर कर दिया.
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बाबर की यह कहानी तथ्यों से मेल नहीं खाती. लश्कर-ए-तैयबा के दस आतंकवादी 21 नवंबर की शाम को कराची से लेठ के जहाज अल हुसैनी में सवार होकर निकले. जब जरदारी ने 22 नवंबर को शिखर सम्मेलन में बात की, तो दस आतंकवादी पहले ही गुजरात तट से दूर समुद्र में थे. 23 नवंबर को आतंकवादियों ने भारतीय मछली पकड़ने वाले ट्रॉलर कुबेर को अपहरण कर लिया. मुंबई के दक्षिणी तट तक नाव चलाते रहे. 26 नवंबर को वे रबर बोट से दो जगहों पर उतरे.

पाकिस्तान की सेना का आईएसआई ने 2005 में लश्कर-ए-तैयबा के जरिए मुंबई आतंक हमलों की योजना बनानी शुरू की थी. वास्तविक ऑपरेशनल योजना और जमीन पर जासूसी 2006 में शुरू हुई, जब पाकिस्तानी-अमेरिकी डेविड कोलमैन हेडली मुंबई पहुंचा. यह वही साल था जब 11 जुलाई 2006 को मुंबई ट्रेन बम विस्फोट हुए. जिसमें 209 लोग मारे गए.
2006 में पाकिस्तान की सेना के स्पेशल सर्विसेज ग्रुप (एसएसजी) कमांडो और LET ट्रेनरों ने 30 से ज्यादा आतंकियों को चुना और विशेष प्रशिक्षण दिया. 2008 में उनमें से दस को असॉल्ट राइफल, ग्रेनेड और विस्फोटक दिए गए, साथ ही 3000 से ज्यादा गोलियां. उन्हें मुंबई के कई स्थलों पर हमला करने, बंधक बनाने और जितना हो सके उतना देर तक टिके रहने को कहा गया.
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जब दस हमलावरों ने हमला किया, तो यह पाकिस्तान की सेना का तीसरा सबसे बड़ा गुप्त हमला था. पहला 12 मार्च 1993 के मुंबई बम विस्फोट, जिसमें 257 मुंबईवासी मारे गए. 700 से ज्यादा घायल हुए. इसके बाद जुलाई 2006 के ट्रेन बम विस्फोट हैं, जिसमें 200 लोग मारे गए.

बाबर की किताब 60 घंटे लंबे 26/11 हमलों के चारों ओर घूमती है और उन्हें "युद्धप्रिय लोगों" (पाकिस्तानी सेना) का काम कहती है. एक सैन्य नियंत्रित देश में नागरिक से उम्मीद की जाती है. बाबर सेना की राजनीति, विदेश नीति और परमाणु हथियारों के प्रसार में सेना की बड़ी भूमिका का संकेत देते हैं.
बाबर लिखते हैं कि जरदारी का राष्ट्रपति बनना पाकिस्तानी सेना के लिए आश्चर्यजनक था. पाकिस्तान के चौथे सैन्य तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ को फरवरी 2008 में हटा दिया गया. आसिफ अली जरदारी को 9 सितंबर 2008 को राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई.
सेना प्रमुख जनरल कियानी ने मुशर्रफ के हटने पर सहमति दी थी, लेकिन वे जरदारी को उनके स्थान पर नहीं चाहते थे. इसके बजाय उन्होंने पूर्व सिंध सीएम और रक्षा मंत्री आफताब शबान मिरीनी को मुशर्रफ के बाद राष्ट्रपति बनाना चाहा. जरदारी ने खुद एक पार्टी बैठक में यह खुलासा किया था.

जनरल कियानी बाबर की कहानी के केंद्र में हैं. वे पहले डीजी-आईएसआई थे जो सेना प्रमुख बने (फील्ड मार्शल आसिम मुनीर दूसरे हैं). कियानी 2006 के ट्रेन बम विस्फोटों के दौरान आईएसआई प्रमुख थे. 26/11 मुंबई आतंक हमलों की साजिश में भी शामिल थे. बाबर उल्लेख करते हैं कि यह व्यापक रूप से माना जाता था कि कियानी एक सैन्य गुट का हिस्सा थे, जो 2007 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस इफ्तिखार चौधरी को मुशर्रफ के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे.
जनरल मुशर्रफ ने अपनी 2006 की आत्मकथा 'इन द लाइन ऑफ फायर' में पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के प्रसार के बारे में झूठा दावा किया कि उन्हें कोई जानकारी नहीं थी. तानाशाह ने दावा किया कि जब सीआईए निदेशक ने प्रसार के दस्तावेजी सबूत दिखाए- जिसमें ब्लूप्रिंट, पार्ट नंबर्स, तारीखें और हस्ताक्षर शामिल थे जो पाकिस्तान से निर्यात किए गए- तो वे हैरान रह गए.
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मुशर्रफ ने सारा दोष एक व्यक्ति पर डाला- पाकिस्तानी वैज्ञानिक एके खान. बाबर लिखते हैं कि मुशर्रफ की कहानी विश्वसनीयता की सीमा को तनावपूर्ण बनाती है. यह वाकई आश्चर्यजनक है कि एक व्यक्ति अकेले इतना बड़ा प्रसार नेटवर्क चला सके- भारी सेंट्रीफ्यूज मशीनें उठाना, सुरक्षा घेरों से गुजरना, उपकरण को कार्गो प्लेनों में लोड करना और उन्हें लीबिया, उत्तर कोरिया और ईरान भेजना. ये देश उस समय अंतरराष्ट्रीय जांच के दायरे में थे.

बाबर लिखते हैं कि जरदारी को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों को नागरिक निगरानी के तहत लाने के दो अवसर मिले, लेकिन वे खो दिए. पाकिस्तान की सेना का आईएसआई अमेरिकी स्पेशल फोर्सेस के छापे से हैरान रह गया, जिसमें अल कायदा का मास्टरमाइंड ओसामा बिन लादेन मारा गया.
ओबील छापे के दो हफ्ते बाद, टीटीपी और अल कायदा ने पाकिस्तान नौसेना के पीएनएस मेहरान एयरबेस पर हमला किया और दो पी3-सी ओरियन निगरानी विमान नष्ट कर दिए. लगभग दो दशक बाद, जरदारी फिर से राष्ट्रपति बन चुके हैं. इस्लामाबाद में एक नई सैन्य व्यवस्था और आकांक्षी तानाशाह निर्णय ले रहे हैं. पाकिस्तान में इतिहास फिर से दोहरा रहा है.