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अमेरिका में नया नहीं नस्लीय भेदभाव, पहले भी सामने आए हैं शर्मनाक मामले

अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ ये दोहरा रवैय्या बहुत पुराना है. ये ज़ख्म जब बढ़ते बढ़ते नासुर बन गया तो गुस्से की शक्ल में यूं फूटा. गुस्साए लोगों ने दुकानों, शॉपिंग मॉल्स, दफ्तरों, इमारतों और दूसरी जगहों को आग के हवाले कर दिया.

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स्टोरी हाइलाइट्स
  • अश्वेत नागरिक की मौत के बाद भड़की हिंसा
  • कई शहरों में हो रहे हैं हिंसक प्रदर्शन
  • 40 शहरों में बेकाबू हुए प्रदर्शनकारी

मिनेपॉलिस पुलिस के अफसर डैरक शॉविन की वजह से पूरी अमेरिकी पुलिस इस वक्त लोगों के निशाने पर है. हालांकि ये कोई पहला मामला नहीं था, जब पुलिस ने किसी अश्वेत को यूं बेरहमी से मारा हो. जॉर्ज की मौत अमेरिका में नासूर की तरह फैले नस्लीय भेदभाव का चेहरा है. जो अब पूरी दुनिया के सामने बेनकाब हो चुका है. ये उसी अमेरिका में हो रहा है जो खुद को छोड़कर दूसरे तमाम देशों को लोकतंत्र की नसीहत देता है.

अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ ये दोहरा रवैय्या बहुत पुराना है. ये ज़ख्म जब बढ़ते बढ़ते नासुर बन गया तो गुस्से की शक्ल में यूं फूटा. गुस्साए लोगों ने दुकानों, शॉपिंग मॉल्स, दफ्तरों, इमारतों और दूसरी जगहों को आग के हवाले कर दिया. जब प्रदर्शनकारी व्हाइट हाउस की दहलीज़ तक आ पहुंचे तो अमेरिकी प्रशासन की हालत खराब हो गई. राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को व्हाइट हाउस में मौजूद बंकर में छुपाया गया. जिसके बाद बिगड़ते हालात को देखते हुए ना सिर्फ वॉशिंगटन बल्कि अमेरिका के करीब 40 शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया.

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अमेरिका में विद्रोह की तस्वीरें पूरी दुनिया में सोशल मीडिया के ज़रिए वायरल है.. अब तक इस विद्रोह में मरने वालों की तादाद 7 तक पहुंच चुकी है.. जबकि करोड़ों की संपत्ति तबाह हो चुकी है. डोनाल्ड ट्रंप इस विद्रोह को एक सोची समझी साज़िश करार दे रहे हैं. उनकी दलील है कि ये ऑर्गेनाइज़ आंदोलन उनकी सरकार की पॉपुलेरिटी को कम करने और सरकार को कमज़ोर करने की सोची समझी साज़िश है. ट्रंप ने कहा कि अगर ये हिंसा नहीं थमी तो इसे रोकने के लिए सड़कों पर सेना भी उतारी जा सकती है.

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जॉर्ज की मौत के बाद अमेरिका में चल रहे इस आंदोलन को उन्हीं के नाम से जाना जा रहा है. और अब मिनिसोटा से निकलकर जॉर्ज फ्लायड प्रोटेस्ट पूरे अमेरिका में फैल चुका है. अमेरिका में अश्वेतों का ये गुस्सा इसलिए भी है क्योंकि पुलिस का अक्सर उनके खिलाफ दोहरा रवैय्या रहता है.

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एक आंकड़े के मुताबिक 2013 से 2019 के बीच महज़ 6 साल में अमेरिकी पुलिस कार्रवाई में 7666 अश्वेत लोग मारे गए हैं. ये आंकड़े इसलिए चौंकाते हैं क्योंकि अमेरिका में अश्वेतों की आबादी महज़ 13 फीसदी है. फिर भी पुलिस के हमले उन पर ज्यादा होते हैं. श्वेत अमेरिकियों की बनिस्बत ढाई गुना ज्यादा अश्वेत पुलिस की गोली से मारे गए हैं. साल में ऐसा एक भी महीना नहीं बीता. जब पुलिस के हाथों किसी अश्वेत की मौत न हुई हो. दिसंबर, 2019 में तो एक ही दिन में 9 से ज्यादा अश्वेत नागरिकों की मौत हुई.

इससे पहले 2014 में एरिक गार्नर नाम के एक अश्वेत को भी न्यूयॉर्क पुलिस ने जॉर्ज की तरह ऐसे ही गला दबाकर मार डाला था. तब भी अश्वेतों के खिलाफ अमेरिकी पुलिस की ये क्रूरता कैमरे में कैद हो गई थी. एरिक भी मरते वक्त वही कह रहे थे, जो जॉर्ज ने कहा था आई कान्ट ब्रीद. और ये कहते कहते वो मर गए. इस वीडियो के सामने आने के बाद भी अमेरिका में काफी दिनों तक प्रदर्शन होते रहे. मगर उसके बाद भी मिनेपॉलिस जैसी घटनाए अमेरिका में लगातार जारी है.

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