गीता याद तो होगी आपको? जो ना बोल सकती है और ना सुन सकती है. 10-12 साल की उम्र में गीता भटककर पाकिस्तान चली गई थी. वहां एक एनजीओ ने उसे आसरा दिया. उसकी परवरिश की. फिर 2015 में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की कोशिशों से गीता वापस हिंदुस्तान आ गई. लेकिन उसके मां-बाप का कोई सुराग नहीं मिला. मगर अभी एक अच्छी खबर आ रही है कि गीता की मां का पता चल गया है. हालांकि इस मामले में अभी भी पेंच है.
पाकिस्तान से लौटी गीता की कहानी में नया मोड़ आ गया है. महाराष्ट्र के परभणि में गीता की 'असली मां' का पता चल गया है. अपनी मां से मिलकर गीता बेहद भावुक हो गई. लेकिन गीता को घर वापस लौटने में हिचकिचाहट है. उसका परिवार बेहद निर्धन वर्ग से आता है. लेकिन इस बार गीता DNA टेस्ट से बचना चाहती है. सवाल उठता है क्यों?
भोली-भाली सूरत और चेहरे पर हमेशा मैग्नेटिक स्माइल के साथ नज़र आनेवाली गीता पाकिस्तान से आने के बाद से अब तक इंदौर में दिंव्यागों के लिए काम करने वाली संस्था आनंद सर्विस सोसायटी में रह रही थी. लेकिन अब गीता की ज़िंदगी में एक ग़ज़ब का ट्विस्ट आ गया है. ये ट्विस्ट खुशनुमा है. जी हां, एक बार फिर गीता की ज़िंदगी में ये उम्मीद जगी है कि वो अपनी असली मां और घरवालों से वापस मिल सकती है. अपनी मां के साथ बाकी की ज़िंदगी खुशहाली से गुज़ार सकती है.
क्योंकि महाराष्ट्र के परभणि की रहनेवाली 70 साल की एक महिला ने ये दावा किया है कि गीता उनकी उन दो बेटियों में से एक है, जिनमें से एक बचपन में ही खो गई थी. और तब से लेकर आजतक वो गीता से मिलने के लिए बेचैन थी. लेकिन ये पहला मौका नहीं है जब किसी ने खुद को गीता का रिश्तेदार बताया है. खुद को गीता के माता-पिता होने का दावा किया है. इससे पहले भी कम से कम बीस से ज़्यादा परिवारों ने गीता को अपनी बेटी बताते हुए उसे अपनाने की कोशिश की थी, लेकिन डीएनए टेस्ट से लेकर दूसरे जांच में तमाम दावे फेल हो गए.
मगर इस बार परभणि की जिस महिला ने खुद को गीता की मां होने का दावा किया है, फौरी तौर पर उसके दावे में दम नज़र आता है. दम इसलिए कि उसने ना सिर्फ़ पहली नज़र में ही गीता को पहचानने की बात कही, बल्कि गीता के पेट में जले का एक ऐसा निशान होने का खुलासा किया, जिसके बारे में दूसरे लोगों को पता नहीं था. ऐसे में बहुत मुमकिन है अपने मां-बाप या परिवार से हमेशा-हमेशा के लिए मिलने की गीता की ये ख्वाहिश अब करीब बीस सालों के बाद जाकर पूरी हो जाए.
गीता जब गलती से पाकिस्तान पहुंच गई थी, तब उसकी उम्र यही कोई 10-12 साल की रही होगी. तब से लेकर 2015 तक वो पाकिस्तान में ही रही. साल 2015 में गीता को भारत लाए जाने के बाद उसे तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनके मंत्रालय की कोशिशों से इंदौर की आनंद सर्विस सोसायटी को सौंपा गया. इस सोसायटी ने सिर्फ़ से लेकर अब तक गीता का ख्याल रखा, बल्कि मूक-बधिरों की खास भाषा के ज़रिए उससे संवाद भी करते रहे. उसके खोये हुए परिवार को ढूंढ निकालने की कोशिश करते रहे.
इस सिलसिले में संस्थान ने बिहेवियरल एक्टिविटीज़ के कुछ एक्सपर्ट्स के ज़रिए गीता के हाव-भाव पर ग़ौर किया. गीता संस्थान के लोगों से कई बार अपने बचपन की धुंधली यादों का ज़िक्र कर चुकी थी. इन यादों में छोटी नदी, मूंगफली व गन्ने के खेत, डीज़ल ईंजन से चलनेवाली रेल गाड़ी शामिल थी. और इत्तेफ़ाक से ये चीज़े महाराष्ट्र के मराठवाड़ा इलाक़े से मिलती जुलती हैं.
फिर गीता जिस अंदाज़ से चावल खाती है और जिस तरह उसकी दाईं नाक में नोज़पिन के लिए छेद है. वो भी महाराष्ट्र के इसी इलाक़े की सभ्यता संस्कृति से मेल खाती है. ऐसे में लगने लगा कि गीता का ताल्लुक मराठवाड़ा या तेलंगाना के किसी इलाक़े से होगा. इसके बाद आनंद सर्विस सोसायटी ने महाराष्ट्र के परभणि में पहल फाउंडेशन से संपर्क किया और गीता के घरवालों को ढूंढ़ने में उनकी मदद करने की अपील की. ये कोशिश रंग लाई और एक रोज़ कमाल हो गया.
गीता की मां का पता चल गया. सोसायटी के लोग गीता को परभणि के जिंतूर लेकर गए और वहां के लोगों से गीता को पहचानने की अपील की. इत्तेफ़ाक से यहीं गीता की मां मीणा वाघमारे ने अपनी बेटी को पहचान लिया और गीता भी मीणा से मिल कर भावुक हो गई. मीणा ने बेटी के खोने की कहानी सुनाई और बताया कि तब उन्होंने अपने तौर पर गीता के लौट आने की उम्मीद थी, लेकिन बाद में ये उम्मीद टूट गई. उन दिनों में उन्होंने गीता गुमशुदगी की रिपोर्ट तक नहीं लिखवाई थी.
गीता से मिलने पर उसकी मां ने उसके पेट में जले का निशान होने की बात कही और ये बात भी सही निकली. उसकी मां ने बताया कि उनके समाज में परंपरा के मुताबिक बच्चों को ऐसे निशान लगाए जाते हैं और गीता की बहन के पेट में भी ठीक ऐसा ही निशान है. यानी फिलहाल गीता के अपनी मां और खोये हुए परिवार के साथ हमेशा-हमेशा लिए रहने के 90 फ़ीसदी आसार हैं. लेकिन इस कहानी में अभी एक और ट्विस्ट है और वो खुशनुमा नहीं, बल्कि अजीब है.
ये ट्विस्ट झटका देनेवाला भी है और वो कि अब इतने सालों के बाद जब गीता को उसकी असली मां मिली है. मां गीता को अपनाने को भी तैयार है. लेकिन गीता के मन में अपनी मां के पास जाने में झिझक है. वो हिचकिचा रही है. आख़िर क्यों? सुनिए 2015 में गीता के पाकिस्तान से आने से लेकर अब तक गीता की परवरिश और देखभाल करनेवाले उस शख्स से, जिन्होंने गीता की मां को ढूंढ निकाला है.
असल में गीता अपने तीन भाई बहनों में से एक है. गीता की एक और बहन है जो परिवार के साथ रहती है, जबकि गीता एक भाई भी है, लेकिन ठीक गीता की तरह वो भी कुछ साल पहले अपने घर से ऐसा गुम हुआ कि उसके घरवालों को दोबारा ढूंढे नहीं मिला. लेकिन गीता के अपने घर से गायब होने के बाद अब तक पिछले बीस सालों में बहुत कुछ बदल गया. गीता के पिता गुज़र गए और उसकी मां मीणा वाघमारे ने दूसरी शादी कर ली. लेकिन गीता का परिवार पहले भी निर्धन था और अब भी निर्धन है. बल्कि उसका परिवार अब भी औरंगाबाद में सब्ज़ी बेच कर गुज़ारा करता है.
उधर, गीता बेशक अपने मां-बाप से दूर हो, लेकिन पाकिस्तान से लेकर हिंदुस्तान तक गीता की ज़िंदगी अब काफ़ी बेहतर है. एनजीओ में ही सही, लेकिन वो अच्छे माहौल में पली बढ़ी है. अब भी पढ़ रही है, ट्रेनिंग ले रही है. और उसकी जीवन शैली खुद उसके परिवार से बेहतर है. ऐसे में गीता को अपने परिवार में एडस्टमेंट में भी दिक्कत हो सकती है. और इन्हीं सच्चाइयों के बीच एक सच्चाई ये भी है कि गीता अब अपने डीएनए टेस्ट के लिए सैंपल देने से आनाकानी कर रही है.
हालांकि ये भी एक सच्चाई है कि गीता के डीएनए सैंपल पहले ही विदेश मंत्रालय के पास मौजूद हैं, जिन्हें पहले कई बार गीता को अपनी बेटी बताने का दावा करनेवाले लोगों के सैंपल से मैच करवाया गया है. ऐसे में गीता को अब शायद नये सिरे से सैंपल देने की भी ज़रूरत नहीं है. बस, ज़रूरत इस बात की है कि गीता की मां का डीएनए करा लिया जाए और अगर ये मैच हो, तो मां-बेटी को हमेशा-हमेशा के लिए मिला दिया जाए. फिर चाहे गीता जहां भी रहे, खुश रहे. खुद गीता की मां भी यही चाहती है.